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दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद राकेश अस्थाना के पास अब क्या विकल्प बचे हैं?

सीबीआई के अंदर दो अधिकारियों की वर्चस्व की लड़ाई की शुरुआत मीट कारोबारी मोईन कुरैशी केस को लेकर ही शुरू हुई थी. सीबीआई के दो पूर्व डायरेक्टरों पर भी इस की जांच को प्रभावित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है.

Ravishankar Singh

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से साफ इंकार कर दिया है. फैसले के बाद राकेश अस्थाना पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है. ऐसे में सवाल उठता है कि अस्थाना की सीबीआई में वापसी के लिए अब क्या-क्या विकल्प बचे हैं?

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि लोक सेवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज होना उसके लिए बहुत ही चिंताजनक और तनावपूर्ण होता है. लेकिन, एफआईआर के तहत लगाए गए आरोप जांच का विषय हैं. सबसे महत्वपूर्ण है कि कानून दोषी साबित होने तक किसी भी व्यक्ति को निर्दोष भी नहीं मानता. इस लिहाज से राकेश अस्थाना और देवेंद्र कुमार पर सीबीआई 10 हफ्तों के भीतर आरोपों की जांच पूरी करे.


पिछले साल अक्टूबर महीने में सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली थी. न्यायमूर्ति नजमी वजीरी ने 20 दिसंबर 2018 को दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

दिल्ली हाईकोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर कुमार फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए इस मामले में राकेश अस्थाना और देवेंद्र कुमार के पास दो विकल्प खुले हुए हैं. पहला, दोनों अधिकारी हाईकोर्ट के जजमेंट का सम्मान करते हुए 10 हफ्ते का इंतजार करें. दिल्ली हाईकोर्ट ने ही जांच के लिए 10 हफ्ते का वक्त मुकर्रर किया है और मेरे हिसाब से दोनों का इंताजर करना चाहिए, क्योंकि दोनों सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी हैं और उनको सीबीआई की विश्वसनीयता और जांच पर पूरा भरोसा रखना चाहिए. दोनों सीबीआई को जांच में सहयोग करें.'

रविशंकर कहते हैं, 'दूसरे विकल्प के तौर पर वह सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध 90 दिनों के अंदर विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर सकते हैं. हो सकता है सुप्रीम कोर्ट कुछ नई व्यवस्था बहाल कर दे, जिसकी संभावना बहुत कम ही नजर आ रही है. ऐसी कम ही उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से अलग कुछ नया फैसला दे दे.’

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बता दें कि सीबीआई ने 15 अक्टूबर 2018 को राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर रिश्वतखोरी के आरोप की जांच शुरू की थी. हैदराबाद के एक कारोबारी सतीश बाबू सना की शिकायत के आधार पर सीबीआई ने यह एफआईआर दर्ज की थी. राकेश अस्थाना की टीम ने मोइन कुरैशी केस की जांच में सतीश बाबू सना से पूछताछ की थी. बाद में सना ने आरोप लगाया था कि दुबई के एक बिचौलिये ने विशेष निदेशक से उसके कथित संबंधों की मदद से दो करोड़ रुपए की रिश्वत के बदले उनके लिए राहत का प्रस्ताव रखा था.

सीबीआई के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था, जब सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर पर करप्शन के चार्जेज लगा कर एफआईआर दर्ज की थी. हालांकि, अस्थाना पर एफआईआर दर्ज करने को लेकर काफी विवाद भी हुआ था. इस एफआईआर के बाद से ही सीबीआई में दो अधिकारियों की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी.

एफआईआर दर्ज करने से शुरू हुई इस लड़ाई का ही परिणाम यह सामने आया कि आज सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की सीबीआई से हमेशा-हमेशा के लिए विदाई हो गई और दूसरे अधिकारी पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने साथ ही राकेश अस्थाना को अंतरिम संरक्षण देने से भी साफ इनकार कर दिया, लेकिन सीबीआई से 2 सप्ताह तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है. फिलहाल दो सप्ताह तक राकेश अस्थाना की गिरफ्तारी टल गई है. सीबीआई को जांच में अगर लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है तो संभव है कि राकेश अस्थाना और देवेंद्र कुमार की गिरफ्तारी भी हो.

हालांकि, आलोक वर्मा के सीबीआई से जाने के बाद ऐसी कम ही संभावना है कि राकेश अस्थाना पर अब किसी तरह की कोई कार्रवाई हो. हां, अगर हाईकोर्ट का यही फैसला आलोक वर्मा के रहते आ जाता तो संभव है अस्थाना गिरफ्तारी से ज्यादा लंबे समय तक बच नहीं सकते थे.

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गौरतलब है कि सीबीआई के उस समय के निदेशक आलोक वर्मा ने कहा था कि अस्थाना के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों में प्राथमिकी दर्ज करते समय सभी अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किया गया. शिकायतकर्ता हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना ने आरोप लगाया था कि उसने एक मामले में राहत पाने के लिए रिश्वत दी थी. सना ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार, जबरन वसूली, मनमानापन और गंभीर कदाचार के आरोप लगाए थे. सीबीआई के डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

सीबीआई के अंदर दो अधिकारियों की वर्चस्व की लड़ाई की शुरुआत मीट कारोबारी मोईन कुरैशी केस को लेकर ही शुरू हुई थी. सीबीआई के दो पूर्व डायरेक्टरों पर भी इसकी जांच को प्रभावित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है. मोईन कुरैशी ही एक बार फिर आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच विवाद की वजह बने.

मीट कारोबारी मोईन कुरेशी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने साल 2015 में मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर एफआईआर दर्ज की थी. अपनी बेटी की आलीशान शादी के दौरान कुरैशी भारतीय जांच एजेंसियों के निशाने पर आया था. बाद में टैक्स चोरी, मनी-लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में इनकम टैक्स विभाग और सीबीआई ने भी कुरैशी के खिलाफ जांच शुरू कर दी.