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दिग्विजय क्यों कर रहे हैं मां नर्मदा से राहुल गांधी को सदबुद्धि की प्रार्थना

दिग्विजय सिंह ने यह घोषणा कर दी है कि नर्मदा परिक्रमा खत्म होने के बाद वे राज्य की यात्रा पर निकलेंगे, जो पूरी तरह राजनीतिक होगी

Dinesh Gupta

कांग्रेस के बड़े नेता और मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह को आखिर राहुल गांधी की सदबुद्धि के लिए प्रार्थना क्यों करनी पड़ रही है? कहीं कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं की तरह दिग्विजय सिंह का भी राहुल गांधी से मोह भंग तो नहीं हो गया.

दिग्विजय सिंह इन दिनों मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी की परिक्रमा कर रहे हैं. साथ में पत्नी अमृता सिंह भी हैं. अपनी इस यात्रा के दौरान शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार की योजनाओं का भी सर्वेक्षण कर रहे हैं. परिक्रमा में पुराने समर्थक ही उनके सहयात्री हैं.


वह लाख कह लें कि यह राजनीतिक यात्रा नहीं है, लेकिन चर्चा उनके राजनीतिक बयान ही पाते हैं. यात्रा के बीसवें दिन यह बयान देकर राजनीतिक हलचल मचा दी है कि परिक्रमा के दौरान यदि उन्हें राहुल गांधी मिल जाते हैं तो वे मां नर्मदा से उन्हें सद्बुद्धि देने की प्रार्थना करेंगे.

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गौर करने वाली बात यह है कि राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी निकट भविष्य में होनी है. उनकी नई टीम में दिग्विजय सिंह के नाम लेकर संशय बना हुआ है. हाल यह है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में अकेले पड़ गए दिग्विजय के सर लगातार तीन विधानसभा के चुनाव हार का ठीकरा आज भी फोड़ा जाता है.

पूर्व में इस कांग्रेस महासचिव के अल्पसंख्यक समर्थक बयानों से राज्य में हमेशा ही भारतीय जनता पार्टी को लाभ होता रहा है. अपनी परिक्रमा के दौरान उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी सफाई देते हुए कहा कि उन्हें हिंदू विरोधी बताने की साजिश की जा रही है. कहा कि मैं सनातन धर्म को मानता हूं और उसका पालन करता हूं. धार्मिकता के विरोध में कोई एक बयान भी बता दे तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी के नेता तेरह साल बाद भी दिग्विजय के कार्यकाल को मतदाताओं के बीच जीवित रखे हुए हैं.

दिग्गी के बयानों का लाभ आज तक उठा रही है बीजेपी 

वर्ष 2003 में साध्वी उमा भारती ने दिग्विजय सिंह का नामकरण मिस्टर बंटाधार के तौर पर किया था. उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में सड़क और बिजली दोनों ही गायब थे. पानी का संकट भी चौतरफा था. दलित एजेंडा के कारण सवर्ण मतदाता भी नाराज था.

इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला. उमा भारती के नेतृत्व में सरकार बन गई. स्थिति यह है कि पिछले दो चुनाव से कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए कई प्रयोग कर चुकी है. लेकिन, अब तक सफलता नहीं मिल पाई.

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चुनावों में कांग्रेस की हार की एक वजह गुटबाजी भी है. राज्य में जितने बड़े नेता है, उतने गुट हैं. दो बड़े गुट कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के हैं. पिछले कुछ माह से कांग्रेस की राजनीति इन दोनों गुटों के बीच सिमटती जा रही है.

इधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को इन दोनों क्षत्रपों का साथ नहीं मिल रहा. वे दिग्विजय सिंह के साथ अपनी संभावनाओं की तलाश में लगे हुए हैं. अरूण यादव, नर्मदा परिक्रमा में भी हिस्सा ले चुके हैं. लेकिन, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अब तक परिक्रमा को महत्व नहीं दिया है. ना ही इन दोनों नेताओं को यात्रा में शामिल होने का आमंत्रण मिला है.

हालांकि नर्मदा परिक्रमा में कई पूर्व और वर्तमान विधायक अपनी हिस्सेदारी कर चुके है. इससे लगता है कि जल्द ही राज्य कांग्रेस की राजनीति में नए समीकरण उभर सकते हैं.

नर्मदा के बहाने मध्यप्रदेश की परिक्रमा 

दिग्विजय अपनी नर्मदा परिक्रमा को गैर राजनीतिक रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. वे यात्रा में शामिल अपने समर्थकों को राजनीतिक बयानबाजी से बचने की हिदायत भी दे रहे हैं. नर्मदा की यह उनकी पहली परिक्रमा है. इस परिक्रमा के जरिए वे अपनी राजनीतिक लोकप्रियता का आकलन भी करते जा रहे हैं.

परिक्रमा करने वालों का गांव में जिस तरह से स्वागत होता है, दिग्विजय सिंह को भी उसी तरह का महत्व मिल रहा है. वैसे परिक्रमा के व्यवस्थापकों ने भोजन-पानी का इंतजाम भी किया हुआ है. वे जिस गांव में रात्रि विश्राम करते हैं, वहां राजकाज की बातें भी होतीं हैं.

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दिग्विजय सिंह समर्थक एक पूर्व मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि राजा (दिग्विजय सिंह) ग्राउंड पॉलीटिक्स कर रहे हैं. इस नर्मदा परिक्रमा के जरिए वे हिंदू मतदाताओं के बीच अपनी छवि को निखारने की कोशिश कर रहे हैं.

लगभग 110 विधानसभा में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं 

अपनी इस आध्यत्मिक यात्रा में कई बार राजनीतिक तीरांदाजी भी कर लेते हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नर्मदा यात्रा को वे सरकारी बताते हुए कहते हैं कि मां नर्मदा की परिक्रमा पैदल ही की जाती है.

दरअसल, दिग्विजय सिंह नर्मदा पट्टी के लगभग 110 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं. नर्मदा पट्टी में आने वाला महाकौशल का इलाका कमलनाथ के प्रभाव क्षेत्र वाला है.

कमलनाथ ने अब तक अपने राजनीतिक कैरियर में इस पूरे इलाके में कभी दौरे भी नहीं किए हैं. नर्मदा पट्टी के निमाड़-मालवा क्षेत्र में भी कमलनाथ का दखल हैं.

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राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस ने यदि नर्मदा पट्टी के ग्रामीण क्षेत्रों अपनी स्थिति बेहतर कर ली तो अगले चुनाव में वह काफी मजबूत स्थिति में होगी. पार्टी के सामने सबसे बड़ी समस्या उस चेहरे को लेकर बनी हुई है, जो शिवराज सिंह चौहान की काट बन सके.

काट के तौर पर एक मात्र नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का सामने आ रहा है. सिंधिया यदि चेहरा बनते हैं तो दिग्विजय सिंह उनकी मजबूरी बनना चाहते हैं. दिग्विजय सिंह ने यह घोषणा कर दी है कि नर्मदा परिक्रमा खत्म होने के बाद वे राज्य की यात्रा पर निकलेंगे, जो पूरी तरह राजनीतिक होगी.