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लाभ का पद मामला: क्यों अब अगले 4 दिन कुछ नहीं कर पाएगी 'आप'

आम आदमी पार्टी के 20 अयोग्य किए गए विधायकों में से 8 विधायकों ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था

Ravishankar Singh

आम आदमी पार्टी के 'अयोग्य' विधायकों के हाईकोर्ट में जाने के बाद भी राहत मिलती नहीं दिखाई दे रही है. जो थोड़ी बहुत राहत मिली है वह यह है कि हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से सोमवार तक इन 20 विधानसभा सीटों के उपचुनाव की घोषणा नहीं करने को कहा है. हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति के उस आदेश पर कुछ भी नहीं कहा है, जिसमें राष्ट्रपति ने एक नोटिफिकेशन के जरिए 20 विधायकों को 'अयोग्य' ठहरा दिया था.

आम आदमी पार्टी के 20 अयोग्य किए गए विधायकों में से 8 विधायकों ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था.


बीते रविवार को ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चुनाव आयोग की उस सिफारिश को मंजूर कर लिया था, जिसमें लाभ के पद मामले में आप के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की अनुशंसा की गई थी.

बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के सामने अयोग्य ठहराए गए 8 विधायकों ने दलील देते हुए कहा, ‘चुनाव आयोग ने उनकी बात को कभी भी नहीं सुना. देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए ओपी रावत ने भी एक समय में इस मामले से अपने आपको अलग कर लिया था.’

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आम आदमी पार्टी के विधायकों ने हाईकोर्ट में दलील दी कि हमलोगों पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला किसी भी तरह से नहीं बनता है. जानबूझ कर हमलोगों को फंसाया गया है. दिल्ली हाईकोर्ट एक बार फिर से इस मामले की सुनवाई सोमवार को करेगा.

आम आदमी पार्टी की तरफ से लगातार कहा जा रहा है कि नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत भी मीडिया में स्वीकार कर चुके हैं कि चुनाव आयोग ने 20 विधायकों को उनका पक्ष रखने का मौका नहीं दिया है.’

पार्टी के वरिष्ठ नेता और नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद संजय सिंह मीडिया से बात करते हुए कहते हैं, ‘चुनाव आयोग द्वारा विधायकों को सुनवाई के लिए कभी भी नहीं बुलाया गया, जो कि अपने आप में न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.

संजय सिंह का कहना है कि पार्टी के विधायकों को बोलने का और अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया और तुगलकी फरमान सुना दिया गया. चुनाव आयोग ने ही 23 जून 2017 को लिखित में कहा था कि वो आम आदमी पार्टी के विधायकों को सुनवाई के लिए बुलाएंगे, लेकिन आयोग ने ऐसा नहीं किया और अपना एकतरफा फैसला सुना दिया.'

पिछले कुछ दिनों से आप नेताओं के द्वारा कहा जा रहा है कि देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत भी इस मामले अपने आपको किनारा कर लिया था. लेकिन, बाद में आखिरी छह महीने में एक बार फिर से ओपी रावत को शामिल किया गया. चुनाव आयोग की रिपोर्ट में ओपी रावत का भी हस्ताक्षर है. ऐसा क्यों हुआ? इसका कारण समझ से परे है.

पार्टी का आरोप है कि आप विधायकों को अयोग्य ठहराने वाली रिपोर्ट में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी के अलावा वर्तमान चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के भी हस्ताक्षर मौजूद हैं. सुनील अरोड़ा ने विधायकों की इस फाइल को कभी देखा भी नहीं है. ऐसा कैसे हो गया कि सुनील अरोड़ा ने भी उस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए? ये भी समझ से परे है.

आम आदमी पार्टी ने पिछले सप्ताह भी हाईकोर्ट से अपने 20 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी. आप के 20 विधायक 'लाभ का पद' लेते हुए दिल्ली सरकार के मंत्रालयों में संसदीय सचिव पद पर काबिज होने के दोषी पाए गए थे. हाईकोर्ट में बीते शुक्रवार को सुनवाई से ठीक पहले अयोग्य ठहराए गए विधायकों के वकीलों ने याचिका वापस ले ली थी.

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ताजा घटनाक्रम के बाद 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में आप विधायकों की संख्या 66 से घटकर अब 46 हो गई है. 13 मार्च, 2015 को आप की सरकार ने एक आदेश पारित कर अपने 21 विधायकों को सचिव बनाया था. वकील प्रशांत पटेल ने इनकी अयोग्यता को लेकर राष्ट्रपति के पास चुनौती दी थी.

दिल्ली सरकार ने इसे रोकने के लिए 2015 में असेंबली में एक विधेयक पारित किया. मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली (रिमूवल ऑफ डिसक्वालिफिकेशन अमेंडमेंट बिल) के नाम से इस बिल में तत्काल प्रभाव से लाभ के पद से संसदीय सचिवों को बाहर कर दिया गया. हालांकि, बाद में राष्ट्रपति ने इस अमेंडमेंट बिल को रोक लिया और आगे की कार्रवाई के लिए मामले को चुनाव आयोग को सौंप दिया.