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Sarkar 3 Review: इस सरकार को इसकी कहानी ही गिराती है

फिल्म की कहानी में दिलचस्पी पैदा करने की जरा भी कोई कोशिश नहीं की गई है

Anna MM Vetticad

सीरिज में बनने वाली फिल्मों की अपनी ही समस्या है. जब किसी फिल्म का क्लाइमेक्स 2005 की फिल्म सरकार जैसी दमदार तो उसके सीक्वल से कुछ ज्यादा ही उम्मीद हो जाती है.

लोग पूछेंगे ही कि सीक्वल में फिल्म के निर्देशक वैसा ही कमाल दिखा पाएंगे या नहीं? क्या वो दर्शकों को चौंका पाएंगे?


कई बार दर्शक, फिल्म के क्लाइमेक्स को लेकर तमाम अटकलें लगाते रह जाते हैं. ऐसे में आपको कामयाब होना है ऐसा ही क्लाइमेक्स सोचना होगा, जो किसी के दिमाग में न आया हो.

निर्देशक रामगोपाल वर्मा की फिल्म सरकार-3 का अंत ठीक-ठाक है. ये फिल्म 2008 में आई सरकार राज के आगे की कहानी है. सरकार-3 के आखिर में कम से कम एक ऐसी बात तो है जो चौंकाती है.

हालांकि सीक्वल होने की वजह से फिल्म में वो ताजगी नहीं है, जो आम तौर पर होनी चाहिए. रामगोपाल वर्मा ने सरकार और सरकार राज की कामयाबी को दोहराने की कोशिश तो बहुत की है लेकिन उनके निर्देशन में ताजगी की भारी कमी दिखती है.

पहले के दो घंटे बोरिंग

इसी तरह फिल्म के लेखक पी जयकुमार के लेखन में गहराई नहीं है. कुल मिलाकर ये फिल्म अपने पहले की फिल्मों की कामयाबी दोहराने की थकी हुई कोशिश मालूम होती है. इसीलिए क्लाइमेक्स भले ही शानदार हो, मगर उसके पहले के दो घंटे सरकार 3 को बोरिंग बना देते हैं.

इस फिल्म में अमिताभ बच्चन महाराष्ट्र के माफिया जैसे राजनेता के किरदार में एक बार फिर दिखे हैं. उनके किरदार सुभाष नागरे को सब 'सरकार' कहते हैं. लोगों के बीच वो बेहद लोकप्रिय हैं. वहीं कई लोग ये भी सोचते हैं कि उनकी अंडरवर्ल्ड की गतिविधियों को छुपाने के लिए ही उन्होंने जननेता का चोला पहन रखा है.

उनके दोनों बेटों शंकर और विष्णु की मौत हो चुकी है. बीवी का रोल निभाने वाली सुप्रिया पाठक बिस्तर से लग चुकी हैं. ऐसे में नागरे अपने विश्वासपात्र गोकुल साटम (रोनित रॉय) पर निर्भर हैं.

इस फिल्म में सुभाष नागरे के बेटे विष्णु के बेटे शिवाजी नागरे (अमित साध) की एंट्री होती है. विष्णु को सरकार फिल्म में उसके भाई शंकर ने ही मार डाला था. शिवाजी अपने दादा के कारोबार में शामिल होना चाहता है. लेकिन शिवाजी के आने से सुभाष नागरे के खेमे में उठा-पटक शुरू हो जाती है. विरोधी इसका फायदा उठाना चाहते हैं. सवाल उठते हैं कि आखिर कौन सरकार का भरोसेमंद है? और कौन सिर्फ इसका नाटक कर रहा है? फिल्म में ये सवाल बार-बार उठते हैं.

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फिल्म से ऐश्वर्या का किरदार गायब

नौ साल पहले आई सरकार राज में अनिता के किरदार में आई ऐश्वर्या राय बच्चन ने सरकार का काम काफी हद तक संभाला था. मगर इस फिल्म से अनिता का किरदार एकदम गायब है. शायद इसकी वजह ये है कि ऐश्वर्या ने फिल्म में काम करने से मना कर दिया होगा.

लेकिन कम से कम फिल्म की कहानी में ये बात होनी चाहिए थी कि अनिता आखिर गई तो कहां गई? फिल्म में बार-बार विष्णु और शंकर का जिक्र तो होता है, मगर अनिता का कोई नामलेवा नहीं.

कहानी को दिलचस्प बनाने की जरा भी कोशिश नहीं

फिल्म की ये इकलौती कमी नहीं. फिल्म की कहानी में दिलचस्पी पैदा करने की कोई कोशिश नहीं की गई है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर फिल्म बनाई किस लिए गई?

शुरुआती आधे घंटे फिल्म रफ्तार में दिखती है. क्योंकि नए-नए किरदार फिल्म में लाए गए हैं. इनमें सबसे दिलचस्प है गोविंद देशपांडे नाम का नेता जिसका रोल मनोज वाजपेयी ने निभाया है. तब आपके जहन में सवाल आता है कि आखिर फिल्म किस दिशा में आगे बढ़ेगी. मगर थोड़ी ही देर में पर्दे पर बोरियत का बोलबाला हो जाता है.

अमिताभ का बोलने का भारी-भरकम अंदाज भी अब नया नहीं रह गया है. गोविंद देशपांडे और सुभाष नागरे की तनातनी भी ज्यादा सनसनीखेज नहीं लगती. राम कुमार सिंह के डायलॉग छिछोरे दर्जे के लगते हैं.

इस फिल्म में अमिताभ बच्चन का रोल भी कमजोर हो गया है. इसकी वजह फिल्म का लेखन है. सरकार 3 में सुभाष नागरे के रोल में अमिताभ बच्चन के पास देने को कुछ भी नया नहीं था.

वहीं अलीगढ़ की शानदार कामयाबी के बावजूद मनोज वाजपेयी की काबिलियत का भी पूरा इस्तेमाल नहीं हो सका है. दुबई स्थित माफिया के रोल में जैकी श्रॉफ कॉमेडियन ज्यादा लगते हैं.

अमित साध इससे पहले की फिल्मों में काफी प्रभावी रहे थे. खास तौर से अभिषेक कपूर की फिल्म काई पो चे (2013) में. फिल्म मैक्सिमम (2012) में भी उनके रोल की तारीफ की गई थी. वो सरकार 3 में शिवाजी नागरे के किरदार में जान फूंकने की कोशिश करते हैं. मगर फिल्म का लेखक ही उनका किरदार मजबूती से नहीं लिख पाया.

फिल्म में शिवाजी नागरे की गर्लफ्रैंड के रोल में यामी गौतम की प्रतिभा भी बर्बाद हो गई. उनका रोल इतना कमजोर है कि फिल्म में यामी गौतम महज एक शो पीस बन कर रह गई हैं.

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'अंडरवर्ल्ड' जैसा मसाला टॉपिक भी नाकाम रहा

अंडरवर्ल्ड और इसकी राजनीति हमेशा से ही लेखकों के लिए एक मसालेदार विषय रहा है. रामगोपाल वर्मा ने इस मुद्दे पर शिवा (तेलुगू 1989), शिवा (हिंदी 1991), सत्या (1998) और कंपनी (2002) फिल्में बनाईं.

आज भी अंडरवर्ल्ड उतना ही दिलचस्प है. आज के अंडरवर्ल्ड के हिसाब से सरकार 3 की कहानी में भी दिलचस्पी पैदा की जा सकती थी. लेकिन फिल्म के लेखक इसमें बुरी तरह नाकाम रहे.

हालांकि सरकार 3 इतनी भी बुरी नहीं है. निश्चित रूप से ये 'रामगोपाल वर्मा की आग' (2007) से काफी बेहतर है.

दिक्कत ये है कि हम रामगोपाल वर्मा को इससे शानदार काम करते हुए देख चुके हैं. पुरानी फिल्मों के मुकाबले रामगोपाल वर्मा का काम इसमें बेहद कमजोर है.

सरकार 3 इसी वजह से बेहद सामान्य सी फिल्म है. रामगोपाल वर्मा की तमाम खराब फिल्मों को देखते हुए, ये कुछ बेहतर जरूर कही जा सकती है.