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नरगिस पुण्यतिथि विशेष: 'इमोशनल ब्लैकमेल' से बनी थी हीरोइन

राज कपूर जब किसी काम के सिलसिले में जद्दन बाई से मिलने उनके घर गए थे तब दरवाजा नरगिस ने ही खोला था

Satya Vyas

फिल्मी अदाकारों में जो मुकाम नरगिस को हासिल हुआ वह बिरला है. फनकारी हो, लोकप्रियता हो या फिर प्रशस्तियां, सबसे ज्यादा नरगिस के हिस्से आईं. लेकिन फिल्मों में ही काम करना है ऐसा नरगिस कभी नहीं चाहती थीं.

डॉक्टर बनने की ख्वाहिश


प्रसिद्ध गायिका जद्दन बाई और डॉ. उत्तमचंद मोहनचंद की बेटी नरगिस का जन्म फातिमा-ए-रशीद के रूप में हुआ था. हालांकि, उन्होंने साल 1935 में आई अपनी मां की ही फिल्म 'तलाश-ए-हक' में बेबी रानी के रूप में फिल्मों में प्रवेश कर लिया था.

वह अपने पिता की तरह डॉक्टरी को ही पेशा बनाना चाहती थीं. चूंकि उनके पिता भी प्रैक्टिस पूरी नहीं कर पाए थे इसलिए भी यह कसक नरगिस के दिल में थी.

महबूब खान की चालाकी

जद्दन बाई भी चूंकि फिल्म निर्माण में उतर चुकीं थी इसलिए निर्देशकों, निर्माताओं का घर पर आना लगा रहता था. महबूब खान फिल्म तकदीर में मोतीलाल के बरक्स नरगिस को परदे पर उतारने का मन बना चुके थे लेकिन नरगिस को इस बाबत कुछ पता नहीं था.

एक दिन 14 साल की नरगिस को फिल्म की शूट पर बुलाया गया. महबूब खान को क्योंकि वह भाई कहती थी इसलिए चली गंई. मोतीलाल हों या महबूब या फिर सेट पर मौजूद अन्य सदस्य, नरगिस किसी से नावाकिफ नहीं थी.

उनसे महबूब खान ने एक संवाद बोलने को कहा तो नरगिस ने कह दिया. फिर क्या था, सेट पर खड़े लोगों ने नरगिस के गले में यह कहकर माला डाल दी कि 'मुबारक हो आप तकदीर की हीरोइन हुईं.'

नरगिस ने जब मना किया तो महबूब खान ने आखिरी दांव रखा. उन्होंने कहा- ठीक है अगर तुम यही चाहती हो की तुम्हारे भाई के लाखों का नुकसान हो जाए तो तुम 'न' कर सकती हो.

इसपर नरगिस 'न' नहीं कह पाईं और इस तरह फातिमा रशीद पहले बेबी रानी और फिर नरगिस के रूप में फिल्मी पर्दे पर जीवंत हुईं.

विविध अदाकारी

नरगिस की सबसे बड़ी खूबी यही थी कि वो नैसर्गिक अदाकारा थीं. उन्हें किसी भी रोल में ढल जाने की उनके गुण ने ही उन्हें अपने वक्त की दूसरी अभिनेत्रियों से ऊपर रखा.

प्रेम त्रिकोण की शुरुआती फिल्मों में से एक 'अंदाज' में उनके तर्जनी से अपने बालों को उठाकर सिर के पीछे करने के अंदाज को बहुत पसंद किया गया.

आह, जोगन और आवारा जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया.

प्यार और शादी

नरगिस और राज कपूर की जोड़ी फिल्म आग से ही पसंद की जाने लगी थी. साल 1940 के बाद और 1950 से पहलवे तक ही इस जोड़ी ने लगभग सोलह फिल्मों में साथ काम कर लिया था.

पचास के दशक में आलम यह था कि इन दोनों अदाकारों में से एक को यदि निर्देशक ने साइन कर लिया तो दूसरे के लिए उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं थी.

कहते हैं राज कपूर जब किसी काम के सिलसिले में जद्दन बाई से मिलने उनके घर गए थे तब दरवाजा नरगिस ने ही खोला था जो उस वक्त पकौड़े तल रही थीं और हाथ से पेशानी के बालों को ठीक करते वक्त अपने माथे पर बेसन लगा बैठी थीं.

राज कपूर ने यही दृश्य फिल्म बॉबी में डिंपल कपाड़िया पर फिल्माया था.

सन 50 के मध्य में जब यह जोड़ी टूटी तब नरगिस भावनात्मक रूप से भी टूटीं. मगर फिर बचाव में महबूब साहब ही आए और साथ लाए मदर इंडिया की स्क्रिप्ट.

मदर इंडिया की स्क्रिप्ट ऐसी थी जिसे शायद ही कोई मना कर पाता. नरगिस भी फिल्म से जुड़ीं. इसी फिल्म से सुनील दत्त भी जुड़े. बताते हैं कि इस फिल्म की शूटिंग के वक्त लगी और आग से घिर नरगिस को सुनील दत्त ने बचाया था और इस तरह दोनों में प्रेम हुआ जो बाद में शादी में तब्दील हो गई.

लेकिन सुनील दत्त इससे अलग राय रखते हैं. बकौल दत्त साहब- मदर इंडिया की शूटिंग के वक्त आग लगी जरूर थी लेकिन उसका उनकी और नरगिस की शादी से कोई सरोकार नहीं था.

दरअसल नरगिस स्वभाव से ही एक परोपकारी महिला थीं और उन्होंने उन्हीं दिनों में सुनील की बहन का इलाज कराया था. सुनील दत्त इस बात से बहुत प्रभावित हुए थे और डरते-डरते ही सही उन्होंने नरगिस के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया और नरगिस मान गईं. 11 मार्च 1958 को उन दोनों की शादी हुई.

फिल्मों से दूर

शादी के बाद नरगिस इस बात को लेकर दृढ़ रहीं कि उनकी प्राथमिकता परिवार है. बकौल नरगिस-वह किरदार में घुस जाती हैं. इस कदर कि जोगन फिल्म के वक्त तो वह संन्यास की सोचने लगी थीं.

यही कारण है जब उन्हें लगा कि फिल्म और परिवार के बीच संतुलन बैठाने में कहीं उनका परिवार न प्रभावित हो तो उन्होंने फौरी निर्णय लिया और फिल्मों को अलविदा कह दिया.

हालांकि मदर इंडिया के बाद भी उनकी फिल्म रात और दिन (1967) सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी.

आखिरी इच्छा अधूरी

अपने आखिरी दिनों में नरगिस पैंक्रियाटिक कैंसर की मरीज हो गईं थीं. विदेशों तक में इलाज के बावजूद कोई फायदा कोई नहीं हुआ.

उन्हीं दिनों सुनील दत्त अपने बेटे संजय दत्त को लॉन्च करने के लिए रॉकी फिल्म बना रहे थे नरगिस की इच्छा थी कि वह अपने बेटे को बड़े पर्दे पर देख पाएं फिर चाहे वीलचेयर पर ही क्यों न हो.

होनी को यह मंजूर नहीं था. 02 मई 1981 को नरगिस कोमा में चली गईं और अगले ही दिन 03 मई 1981 को उनका देहांत हो गया.

रॉकी दिनांक 08 मई 1981 को प्रदर्शित हुई. फिल्म के प्रीमियर के दौरान उनके सम्मान में एक कुर्सी खाली रखी गयी.

नरगिस का जाना एक अदाकारा का जाना ही नहीं था बल्कि ये भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से एक उम्दा इंसान का जाना भी था.