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मॉर्गन फ्रीमैन: जो फिल्में करते हुए 'भगवान' बन गए...

लगभग चार दशक के करियर में 50 के करीब फिल्में करने वाले फ्रीमैन ऐक्टिंग को अपना एकमात्र हुनर मानते हैं

Animesh Mukharjee

टॉम स्वायर मिसिसिपी नदी के किनारे रहता था. वो लड़का जो अपने स्कूल के दोस्तों को जो कहता वो मान लेते. उसकी आवाज में जैसे जादू था. शायद ये मिसिसीपी के पानी का ही कमाल है कि उसके किनारे बचपन गुजारने वाले मॉर्गन फ्रीमैन की आवाज में वैसा ही जादू है.

मॉर्गन फ्रीमैन मतलब चुभती हुई आंखों और अथॉरिटेटिव आवाज व बेहतरीन एक्टर. जो शॉशैंक रिडंप्शन में अपने किरदार की सालों की हताशा और पश्चाताप को चेहरे से जाहिर किए बिना कहता है कि ‘उम्मीद एक खतरनाक चीज है’. या ब्रूस ऑलमाइटी में महंगे थ्री पीस सूट में भगवान बनकर आता है.


आजकल चिल्लाकर दूसरों को अपना ज्ञान बांटने वाले टीवी एंकर्स (न्यूज ही नहीं रियलिटी शो वाले भी ) को शायद मॉर्गन की फिल्में बार-बार दिखानी चाहिए कि कैसे आवाज को बिना नाटकीय उतार-चढ़ाव दिए प्रभावी हुआ जा सकता है.

80 के दशक में सहायक भूमिकाओं में आए नजर

इस एक जून को 80 साल के हो रहे फ्रीमैन ने फौज की नौकरी के बाद थिएटर शुरू किया. सत्तर के दशक में गुमनाम रोल करते हुए वो 80 के दशक तक सहायक भूमिकाओं में आ पाए. रंगभेद अमेरिका के इतिहास का एक सच है और मॉर्गन इससे लगातार लड़ रहे हैं, फिल्मों के अंदर भी और बाहर भी.

मगर ये उनकी प्रतिभा ही थी कि शॉशैंक में रेड के किरदार और सूत्रधार के रूप में उन्होंने अभूतपूर्व छाप छोड़ी. ये छाप सेवेन और मिलियन डॉलर बेबी जैसी फिल्मों के साथ गहराती रही.

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फिर रिलीज हुई ‘ब्रूस ऑलमाइटी’, जिस हॉलीवुड में नायक का किरदार किसी अश्वेत को मिलना मुश्किल होता है वहां फ्रीमैन भगवान बने. और कुछ इस तरह से वो किरदार निभाया कि अब किसी और को भगवान के कैरेक्टर में देखना और सुनना भी अजीब लगता है.

मैं आपको गोरा आदमी कहना तब बंद करूंगा जब आप मुझे काला आदमी कहना बंद करेंगे

मॉर्गन के व्यक्तित्व का एक बड़ा पहलू उनके सरनेम से पता चलता है. फ्रीमैन सरनेम वो अश्वेत इस्तेमाल करते हैं जिनके पूर्वजों ने खुद को गोरों की गुलामी से आजाद कर लिया. मॉर्गन आज भी जिस शिद्दत से रंगभेद के खिलाफ बोलते हैं वो उनके कद के अभिनेता के लिए आसान बात नहीं है.

वो ब्लैक हिस्ट्री मंथ मनाने के खिलाफ हैं. मॉर्मन का कहना है कि अमेरिका की हिस्ट्री अमेरिकन हिस्ट्री है. अगर व्हाइट हिस्ट्री मंथ नहीं हो सकता है तो ब्लैक हिस्ट्री मंथ क्यों रहे. मॉर्गन पुलिस के अश्वेतों पर अत्याचार को लेकर खुल कर बोले हैं. आज की तारीख में कोई भारतीय अभिनेता ऐसा करने की कल्पना भी कर सकता है, सोचना मुश्किल है.

मॉर्गन की खरी-खरी कहने की आदत कई जगह दिखती है. नेशनल जिओग्राफिक की टीवी सीरीज में भगवान की तलाश करते हुए वो पूरी दुनिया घूमें, हिंदुस्तान भी आए. जब भगवान पर उनकी राय पूछी गई तो बोले.

'मैं भगवान को नहीं मानता. मुझे लगता है कि भगवान का आविष्कार हमने किया है. सच कहूं तो मैं ही भगवान हूं.'

नेल्सन मंडेला को पर्दे पर जीने वाले मॉर्गन के हिस्से नायक बनने के मौके अपेक्षाकृत कम ही आए, मगर तब भी वो आज हॉलीवुड के सबसे ज़्यादा बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड वाले अभिनेताओं में से एक हैं.

2005 की डॉक्युमेंट्री ‘मार्च ऑफ द पेंग्विन’ को मॉर्गन ने आवाज दी थी

हिंदी सिनेमा के महानायक की तरह उनके पास अभी भी फिल्मों में वो सुविधा नहीं दिखती जहां सिर्फ और सिर्फ उनकी भूमिका को केंद्र में रखकर रोल लिखे जाते हों. मगर ऐसे मौके आए हैं जब मॉर्गन और अमिताभ की तुलना अपने आप हो गई है.

2005 की डॉक्युमेंट्री ‘मार्च ऑफ द पेंग्विन’ को मॉर्गन ने आवाज दी थी. उसके हिंदी वर्जन के लिए अमिताभ को चुना गया. ब्रूस अलमाइटी को जब हिंदी में गॉड तुस्सी ग्रेट हो बनाकर पेश किया गया तो अमिताभ बच्चन के हिस्से ही गॉड का किरदार आया. मगर फिल्म हर पहलू में नाकाम रही.

लगभग चार दशक के करियर में 50 के करीब फिल्में करने वाले फ्रीमैन ऐक्टिंग को अपना एकमात्र हुनर मानते हैं. बताते हैं कि अगर आज भी अगर किरदार उनकी समझ में न आए तो वो निभा नहीं सकते.

उम्र के 8वें दशक की दहलीज पर खड़े होकर वो कहते हैं कि मुझे जिंदगी भर अपना किराया भरने में दिक्कत नहीं होने वाली तो मैं फिल्में शौक के लिए चुनता हूं. चलिए उनकी दस चुनिंदा परफॉर्मेंस देखते हैं.