दुनिया भर के ऐसे करिश्माई मगर असमय मार दिए गए नेताओं की लिस्ट में जॉन एफ कैनेडी निश्चित रूप से काफी उंची जगह रखते हैं.
हम सभी ने वो वीडियो देखा होगा जिसमें, खुली सफेद कार में पहली गोली चलने के बाद एक ओर झुकते हुए कैनेडी का सर दूसरी गोली छितरा देती है.
दुनिया के सबसे ताकवर आदमी एक सेकेंड में राजनीति शास्त्र से इतिहास की किताब का हिस्सा बन जाता है. इस हत्याकांड से अलग भी लगभग 3 साल राष्ट्रपति रहे कैनेडी की जिंदगी में कई पहलू थे. कुछ स्याह, कुछ सफेद और कुछ ग्रे.
भारत का करीबी अमेरिकी
चीन के साथ अमेरिका की दुश्मनी, कम्युनिज़म से उसकी चिढ़ और उसी बीच भारत पर चीन का हमला. कैनेडी ने उस समय भारत की काफी सहायता की. 1951 में कैनेडी जब कांग्रेस मेन के तौर पर भारत आए थे तो नेहरू से उनकी मुलाकात कुछ खास नहीं रही थी. मगर तमाम वजहों से जेएफके नेहरू को पसंद करते रहे.
उनके जरिए हिंदुस्तान को सालाना एक बिलियन डॉलर की सहायता मिली. 60 के दशक में इस अथाह राशि से हिंदुस्तान को न सिर्फ चीन से मिले झटके से उबरने में मदद मिली बल्कि तारापुर परमाणुघर, आईआईटी कानपुर, नागार्जुन सागर बांध जैसे संस्थान भी स्थापित हुए.
उसे चांद चाहिए था
कैनेडी 1961 से 1963 तक व्हाइट हाउस में रहे. शीत युद्ध का दौर था. रूस और अमेरिका में होड़ थी कि पहले चांद पर कौन कदम रखेगा. जाहिर सी बात है कि कैनेडी को भी चांद चाहिए था.
मगर 1961 में रुस ने अपने कॉस्मोनॉट (ऐस्ट्रोनॉट अमेरिकियों के लिए इस्तेमाल होता है.) यूरि गैगरिन को अंतरिक्ष में भेज कर अमेरिका को शिकस्त दी. 1969 में अमेरिका चांद पर पहुंचा मगर तब तक खुद जेएफके किसी दूसरी दुनिया में थे.
मगर सितारे उसके पहलू में रहे
कैनेडी की जीवनी लिखने वाले रॉबर्ट डेलेक की माने तो जेएफके बड़े वुमेनाइजर थे. सत्ता की ताकत का एक अलग आकर्षण होता है. यदि वो ताकत 43 साल की मोहक मुस्कान वाले जॉन एफ कैंनेडी की शक्ल में हो तो इसके पहलू में बड़े-बड़े नाम आते हैं.
बताया जाता है कि कॉन्ग्रेस मेन की पत्नियों, स्कूल की छात्राओं से लेकर स्ट्रिपर्स और एयर होस्टेस तक से उनके संबंध रहे. इनमें सबसे बड़ा नाम हॉलीवुड स्टार मर्लिन मुनरो का है.
मुनरो की जीवनी लिखने वाली जे रैंडी ने जिक्र किया है कि मई 1962 में कैनेडी के जन्मदिन पर मर्लिन ने मैडिसन स्क्वायर में कैनेडी के लिए अति चर्चित ‘हैपी बर्थडे’ गाया. इसने तमाम अफवाहों को हवा दे दी. कैनेडी के लिए मर्लिन उनपर मरने वाली तमाम लड़कियों में से एक थीं. मगर मर्लिन इस रिश्ते को लेकर गंभीर थीं.
नौजवान राष्ट्रपति ने हिरोइन से दूरी बना ली. मर्लिन मुनरो व्हाइट हाउस में कैनेडी को किसी स्टॉकर की तरह फोन करती रही. बाद में कैनेडी ने एक दोस्त को भेज कर मामला शांत करवाया.
कहा जाता है कि कैनेडी के बाद मर्लिन की नजदीकियां उनके छोटे भाई बॉबी कैनेडी के साथ हुई. कुछ समय बाद बॉबी की भी हत्या हो गई.
इसके अलावा कुछ कॉन्सपिरेसी थ्योरी ये भी कहती हैं कि मर्लिन अमेरिका के इस चर्चित परिवार के कई अंतरंग राज जानती थीं जिसके चलते सीआईए ने उनकी हत्या करवा कर उसे सुसाइड का जामा पहना दिया.
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क्यूबा का संकट
कैनेडी जब राष्ट्रपति बने तो अमेरिका सोवियत संघ से मिसाइल क्षमता में बहुत आगे था. माना जाता है कि अमेरिका के पास कम से कम 170 मिसाइलें थी और यूएसएसआर के पास महज दर्जन भर. मगर रूस ने क्यूबा के साथ बैठक की और अमेरिका को निशाने पर लेते हुए कई मिसाइलें क्यूबा-अमेरिका के बीच लगा दीं.
दुनिया को लगने लगा कि शीत युद्ध अब न्यूक्लियर विश्वयुद्ध में बदल जाएगा. इसके बाद घटनाओं का लंबा सिलसिला चला. अंत में तय हुआ कि अमेरिका क्यूबा पर कभी हमला नहीं करेगा और रूस सारी मिसाइलें हटा लेगा.
मामला बराबरी पर छूटा था मगर इसका प्रचार कुछ इस तरह से हुआ कि दुनिया को लगा, जेएफके ने सोवियत प्रधानमंत्री निकिता खुश्चेव को हरा दिया.
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वियतनाम का संकट 1955 से चल रहा था. कैनेडी से पहले राष्ट्रपति रहे आइज़नहावर कम्युनिजम को खत्म करना चाहते थे. कैनेडी भी उनकी राह पर चल रहे थे.
कैनेडी डॉमिनो थेओरी पर विश्वास रखते थे. उनका मानना था कि अगर दक्षिण वियतनाम से कम्युनिजम खत्म हो जाएगा तो इसके चलते एक-एक कर दुनिया के सारे देशों से हो जाएगा. इसके साथ ही 60 के दशक के क्यूबन संकट और भारत चीन युद्ध का असर वियतनाम भी की स्थिति पर भी पड़ा.
जेएफके के तुरंत बाद अमेरिका ने वियतनाम की सेना और जनता पर बम बरसाने शुरू किए और अगले नौ साल (1964-73) तक लाओस पर हर आठ मिनट में एक बम गिराता रहा. इसमें कोई शक नहीं कि जॉन एफ कैनेडी की लोकप्रियता भारत में भी अच्छी खासी है. लेकिन कैनेडी की हिंदुस्तान के साथ नजदीकियों का जिक्र कम ही सुनने को मिलता है.
दरअसल उनके एक दशक बाद राष्ट्रपति रहे रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को बिच कहा, 71 युद्ध में पाकिस्तान का साथ दिया. इसके साथ ही भारत की सोवियत संघ को दोस्ती बनने के चलते कैनेडी की हिंदुस्तान को दी हुई सौगातों को एक तरह से छिपा दिया गया.
मगर नेहरू और कैनेडी के समय अमेरिका और हिंदुस्तान के संबंध कुछ ऐसे थे कि दोनों देशों के राजदूत एक दूसरे के नेताओं के पास डायरेक्ट ऐक्सेस रखते थे.
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