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वरुण धवन बनेंगे अपने जमाने के सलमान खान

पर्दे पर छाने के लिए वरुण धवन को जुड़वां 2 जैसी फिल्मों की जरूरत है

Gautam Chintamani

अगर बॉलीवुड के अभिनेताओं से घटिया जोक और बीटल्स के चर्चित गाने 'यस्टरडे' में से अपना पसंदीदा चुनने को कहा जाए तो बहुत मुमकिन है कि बीटल्स का गाना उनकी पहली पसंद होगा.

यूं भी, बॉलीवुड में इन दिनों पुराने गानों को रीमिक्स करके फिर से पेश करने का दौर चल रहा है. 'लैला मैं लैला' और 'तम्मा तम्मा' गाने खूब लोकप्रिय हो रहे हैं.


अभिनेता वरुण धवन ऐसे रोल कर रहे हैं, जिसमें वो गुजरे जमाने के कलाकारों की कॉपी करते नजर आते हैं.

जैसे 2014 की फिल्म 'मैं तेरा हीरो' में वो गोविंदा की कॉपी करते दिखे. वहीं 2016 में 'ढिशूम' में वो 'मैं खिलाड़ी, तू अनाड़ी' के सैफ अली खान जैसे नजर आए. और 2015 की फिल्म 'बदलापुर' में वो शाहरुख खान के शुरुआती रोल जैसे किरदार में दिखे.

अपनी अगली फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में वो संजय दत्त के 'तम्मा तम्मा' गाने की नकल करते दिख रहे हैं.

अब यूं लग रहा है कि वरुण धवन अपने पसंदीदा कलाकार सलमान खान जैसे रोल करने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. खबर है कि सलमान की 1997 की फिल्म 'जुड़वां' का रीमेक बनने जा रहा है, जिसमें वरुण धवन डबल रोल में नजर आ सकते हैं.

अपनी पीढ़ी के बाकी कलाकारों, सिद्धार्थ मल्होत्रा, आदित्य रॉय कपूर, अर्जुन कपूर और टाइगर श्रॉफ के बीच सिर्फ वरुण धवन ही तमाम तरह के रोल में खुद को आसानी से फिट कर लेते हैं. उनका ऐसा करना सिर्फ सलमान खान नहीं, बल्कि अनिल कपूर और गोविंदा की याद दिलाता है.

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हल्के फुल्के रोल के साथ वो बदलापुर जैसी फिल्म भी कर लेते हैं. इसीलिए अपनी पीढ़ी के तमाम कलाकारों की भीड़ में वरुण धवन एकदम अलग नजर आते हैं.

बॉलीवुड का अपनी पुरानी फिल्मों का रीमेक करने का जुनून और वरुण धवन का तमाम किरदारों में खुद को आसानी से ढाल लेना बताता है कि वरुण अपने दौर के सलमान खान हैं. जिस वक्त वरुण के पिता डेविड धवन ने जुड़वां फिल्म का निर्देशन किया था उस वक्त वरुण दस साल के थे. उन्हें फिल्म की कोई खास समझ नहीं रही होगी.

वरुण धवन स्टारर जुड़वा 2 इस साल 29 सितम्बर को रिलीज होगी (फोटो: फेसबुक)

डेविड धवन के लिए भी जुड़वां फिल्म बेहद अहम थी. क्योंकि उसके पहले बिना गोविंदा के उन्होंने जो भी फिल्में बनाई थीं, उनमें से सिर्फ ऋषि कपूर के साथ 1992 की फिल्म 'बोल राधा बोल' ही कामयाब रही थी. सलमान खान के लिए भी करण-अर्जुन की कामयाबी के दो साल बाद जुड़वां सोलो हीरो के तौर पर पहली बड़ी कामयाब फिल्म थी.

जुड़वां की कामयाबी से डेविड धवन ने अपनी फिल्मों की कामयाबी का नया नुस्खा तलाश लिया था. क्योंकि इसमें सलमान खान के होने की वजह से डेविड धवन को अपने लिए फैन्स की नई खेप मिल गई थी.

जुड़वां के बाद डेविड धवन ने गोविंदा के साथ भी जो फिल्में बनाईं जैसे 1997 की ‘हीरो नंबर 1’ या 1997 की ‘दीवाना मस्ताना’ उनमें भी जुड़वां की छाप नजर आई. उन्हें डेविड धवन की अप-मार्केट फिल्में कहा जा सकता है. अब कामयाबी के लिए डेविड धवन सिर्फ गोविंदा के भरोसे नहीं रह गए थे.

जुड़वां के बाद डेविड ने 26 फिल्में बनाईं. उनमें से सिर्फ तीन में गोविंदा थे.

तो क्या अपनी पीढ़ी के सलमान खान बनने की वरुण धवन की ख्वाहिश उसी तरह की है, जैसे उनके पिता और गोविंदा का चर्चित अलगाव था.

गोविंदा ने हाल ही में कहा था कि वरुण धवन कभी भी उनकी तरह के हीरो नहीं हो सकते. वरुण ने इसका जवाब भी दिया था. वो शायद ये चाहेंगे भी कि उनकी गोविंदा से तुलना न हो.

वरुण की फिल्म 'मैं तेरा हीरो' के बाद कई लोगों ने कहा था कि वो नए दौर के गोविंदा हो सकते हैं. जिस तरह वरुण ने इस फिल्म में, 'मैं तुम लोगों का टचक्रीन फोन हूं क्या कि बार-बार टच किए जा रहे हो', 'मैं दिखता हूं स्वामी टाइप का पर हूं एकदम हरामी टाइप का' जैसे डायलॉग के जरिए लोगों को गोविंदा-डेविड धवन की फिल्मों की याद दिलाई थी.

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जिस तरह करीब बीस साल पहले डेविड धवन को जुड़वां जैसी फिल्म की जरूरत थी, उसी तरह आज वरुण धवन को भी शायद जुड़वां के रीमेक की जरूरत है.

भले ही अर्जुन कपूर, सिद्धार्थ मल्होत्रा और खुद वरुण धवन तरह तरह के किरदार निभा रहे हों, लेकिन उनके ये प्रयोग कामयाब होते नहीं दिख रहे. 'बार बार देखो' और 'फितूर' जैसी फिल्मों की नाकामी इसकी गवाही देती है. कुछ लोग इसके लिए खराब कहानी और स्क्रिप्ट को भी जिम्मेदार ठहराते हैं.

हिंदी फिल्मों में पहले कामयाब हुए नुस्खों को दोहराने का फॉर्मूला खूब चलता है. दर्शकों को भी इसकी आदत सी लग जाती है. कई बार तो ये लगता है कि बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक, रीमेक से आगे की सोच ही नहीं पाते.

इसकी एक वजह ये भी है कि दर्शक ऐसे प्रयोग को हाथो-हाथ लेते हैं. तभी तो बार-बार रीमेक बनाए जाते हैं. अब 'राम लखन' और 'जुड़वां' फिल्मों के रीमेक बनाने की तैयारी है. ये तजुर्बा कामयाब रहा, तो शायद आगे चलकर 'बदलापुर' और 'औरंगजेब' फिल्मो के रीमेक भी हमें देखने को मिलेंगे.

ऐसा नहीं है कि पुरानी आदत जाती ही नहीं. जाती है...मगर इसमें वक्त लगता है.