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भारतीय फिल्म और टेलिविजन इंस्टीट्यूट से 'धर्मराज' चौहान की विदाई

फिल्म इंस्टीट्यूट के छात्रों की यूनियन के प्रमुख नचीमुत्थू का कहना है कि हम सरकार के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं

Prachee Kulkarni

गजेंद्र चौहान भारतीय फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट से विदा ले रहे हैं. शुक्रवार को इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के तौर पर उनका बेहद विवादित कार्यकाल खत्म हो गया.

वो एक साल और तीन महीनों तक इस पद पर रहे. वैसे तो फिल्म इंस्टीट्यूट के चेयरमैन का कार्यकाल तीन साल का होता है मगर पहले डेढ़ साल तक इस पद पर कोई नियुक्त नहीं किया गया था.


वहीं चौहान का कार्यकाल बढ़ाया नहीं गया. गजेंद्र चौहान का कहना है कि, 'मैंने अपने छोटे से कार्यकाल में जितना मुमकिन था उतना काम करने की कोशिश की, मैं संतुष्ट हूं.'

उन्होंने आगे कहा कि, 'मुझे करीब डेढ़ साल का वक्त मिला था. मैंने इंस्टीट्यूट की प्रमुख चुनौतियों से निपटने की कोशिश की. दो साल से इंस्टीट्यूट में जीरो ईयर के दो सेशन हुए थे. लेकिन इस साल हमने सभी बैच का डिप्लोमा पूरा करने पर जोर दिया.'

उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा- 'हमने नए छात्रों को एडमिशन दिया, सिलेबस में बदलाव किए, नई मशीनें खरीदीं, कैंपस में अनुशासन को बेहतर बनाया और 75 फीसद हाजिरी को जरूरी बनाया. नए स्टूडियो बनाने की इजाजत दी. मुझे लगता है कि कम वक्त में मैंने काफी ज्यादा काम किया'.

चेयरमैन की नियुक्ति

गजेंद्र चौहान को 9 जून 2015 को फिल्म इंस्टीट्यूट का चेयरमैन नियुक्त किया गया था. छात्रों ने इसका तगड़ा विरोध किया था, उनका आरोप था कि गजेंद्र चौहान फिल्म इंस्टीट्यूट के प्रमुख होने लायक नहीं है. उन्हें ये पद बीजेपी का करीबी होने की वजह से दिया गया.

गजेंद्र की नियुक्ति के विरोध में छात्रों ने गजेंद्र केृ खिलाफ हड़ताल कर दी. ये हड़ताल 139 दिनों तक चली. इसके बाद ही गजेंद्र चौहान जाकर अपना कार्यभार संभाल सके. ये इकलौता मौका था जब चौहान फिल्म इंस्टीट्यूट आए थे. विरोध के चलते उन्होंने गवर्निंग काउंसिल की बैठकें भी मुंबई में ही कीं.'

उनका विरोध करने वाले एक छात्र का कहना है कि, 'जब उनकी नियुक्ति पर बवाल चल रहा था, तो गजेंद्र चौहान का कहना था कि वो पहले के चेयरमैन की तरह नहीं होंगे कि कैंपस आएं ही नहीं. पहले के प्रमुख अपने दूसरे कामों में व्यस्तता के चलते कैंपस में नहीं आते थे. मगर वो इंस्टीट्यूट को अपनी पूरी ताकत देंगे.

छात्र का सवाल था कि क्या इसे ही वक्त देना कहते हैं? वो तो सिर्फ एक बार यहां आए. गजेंद्र चौहान का दावा है कि, 'उन्होंने इंस्टीट्यूट के कई मुद्दे सुलझाए. छात्रों की दिक्कतें दूर कीं. लंबे वक्त से अटके उनके डिप्लोमा दिलवाए. लेकिन छात्रों का कहना इसके ठीक उलट है.'

फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट के एक पूर्व छात्र का कहना है कि उन्हें रोजाना परेशानियों का सामना करना पड़ता था.

अज्यन अदत की कहानी छात्रों की बात पर मुहर लगाती है. पहले अज्यन का डिप्लोमा रॉटर्डम फिल्म फेस्टिवल में भेजा गया. लेकिन उन्हें वहां बताया गया कि ये डिप्लोमा आधिकारिक एंट्री नहीं हो सकती है क्योंकि ये फिल्म इंस्टीट्यूट ने बनाया है और इसकी इजाजत नहीं ली गई. लेकिन बाद में ये फैसला पलट दिया गया और उसकी बनाई फिल्म को बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला.

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छात्रों को वजीफा रद्द होने की चुनौती भी झेलनी पड़ी. एक छात्र का दावा है कि उसने लगातार दो सेशन में टॉप किया फिर भी उसे स्कॉलरशिप नहीं मिली. मगर गजेंद्र चौहान की राय अलग है. वो कहते हैं कि, 'छात्रों ने क्लास में हिस्सा नहीं लिया, इसलिए वो स्कॉलरशिप के हकदार नहीं थे.'

उनके मुताबिक ये अनुशासन का मामला था. एक और फैसला, कैंपस में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती का भी था. हॉस्टल में आने-जाने की एंट्री जरूरी कर दी गई थी. चौहान ने काउंसिल की बैठकों में छात्रों के आने पर रोक लगा दी थी.

चौहान ने कहा कि छात्र इन बैठकों में आ सकते थे. लेकिन जब उन्हें जाने को कहा जाए तो जाना होगा. सिलेबस पर फैसला करते वक्त भी ये रोक लागू होगी. चौहान ने कहा कि हर बैठक में छात्रों को शामिल होने की इजाजत नहीं दी जा सकती.

गजेंद्र चौहान के कार्यकाल में सबसे बड़ा आरोप ये था कि वो कैम्पस का भगवाकरण कर रहे हैं. वहीं चौहान कहते हैं कि भगवाकरण का क्या मतलब है, वो नहीं समझ पाते. चौहान कहते हैं कि उनके मुताबिक भगवाकरण का मतलब बलिदान है. 'मैं अपने देश के लिए बलिदान देने को तैयार हूं. मेरे लिए पिछले सवा साल से फिल्म इंस्टीट्यूट ही मेरा देश था'.

कैंपस का भगवाकरण

कैम्पस में सावरकर की एक मूर्ति लगाना भगवाकरण की मिसाल के तौर पर गिनाया जाता है. एक छात्र ने कहा कि चौहान जब कैंपस का भगवाकरण नहीं कर पाए तो उन्होंने इंस्टीट्यूट की ही बलि चढ़ा दी.

छात्रों के आंदोलन के दौरान कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी कैंपस में आए थे. चौहान कहते हैं कि, 'मैं उन्हें फिर से आमंत्रित करना चाहूंगा ताकि वो देख सकें कि हमने इसे कितना बेहतर बनाया है. वो कहते हैं किृ इंस्टीट्यूट के छात्र राहुल गांधी जैसी ही राजनीति कर रहे हैं. उन्हें इससे कुछ हासिल नहीं होगा. मैं उन्हें सलाह दूंगा कि वो राजनीति से दूर रहें. अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें और कोर्स पूरा करें'.

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लेकिन एक छात्र यशस्वी का कहना है कि राजनीति की वजह से वो गजेंद्र चौहान और उनके फैसलों का विरोध कर सके. अगर राजनीति बुरी है तो वो खुद क्यों राजनीति में हैं इसका जवाब दें. यशस्वी ने कहा कि जिस तरह ये लोग देश चला रहे हैं वैसे ही इंस्टीट्यूट भी चलाना चाहते हैं.

अब छात्र नए चेयरमैन की नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं. वो चेतावनी देते हैं कि पिछले डेढ़ साल के चौहान के कार्यकाल ने उन्हें एकजुट किया है. अगर सरकार फिर से वैसी ही कोशिश करती है तो उसका ऐसा जवाब दिया जाएगा कि वो कोई कदम उठाने से पहले दस बार सोचेंगे.

हालांकि, छात्रों का ये भी कहना है कि उन्हें किसी से शिकायत नहीं. हम इंतजार करेंगे. फिल्म इंस्टीट्यूट के छात्रों की यूनियन के प्रमुख नचीमुत्थू का कहना है कि हम सरकार के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं.

चेयरमैन के हटने का मतलब है कि पूरी गवर्निंग काउंसिल खत्म होगी. इसका नए सिरे से गठन करना होगा. पूरे हालात पर छात्रों की कड़ी नजर है.