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वो वजहें जो आपको बाहुबली देखने को मजबूर करती हैं

पूरा देश जानना चाहता है कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा और इसका जवाब पाने का वक्त आ गया है.

Pradeep Menon

2015 से काफी पहले यहां तक बाहुबली के रूप में देश की सबसे बड़ी फिल्म फ्रेंचाइजी देने के जरिए देश के हर घर का जाना पहचाना नाम बनने से भी पहले एसएस राजामौली के कुछ कामों को देश के लोग देख चुके थे. आपको राउडी राठौर याद है? या मक्खी (तेलुगु में ईगा)?

राउडी राठौर राजामौली की विक्रमाकुडु का रीमेक थी और हालांकि, राउडी राठौर से उन्हें राष्ट्रीय लेवल पर बतौर डायरेक्टर बड़ी पहचान नहीं मिली लेकिन मक्खी को पूरे देश में नोटिस किया गया. मक्खी को अभी भी लोग वीकेंड पर सुपर-फन मूवी के तौर पर देखना पसंद करते हैं.


राजामौली की कृतियां

सिनेमा की जानकारी रखने वाले काफी लोग राजामौली को उनकी साल 2009 की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'मगधीरा' से जानते हैं. बाहुबली के आने से पहले उनकी सबसे बड़ी फिल्म 'मगधीरा' एक बड़ी लेकिन मजाकिया पुनर्जन्म वाली ड्रामा फिल्म थी.

जो कि वीएफएक्स और फिल्मी दोनों लिहाज से काफी दमदार मूवी थी. इससे तेलुगू सिनेमा में राजामौली का दर्जा एक ब्लॉकबस्टर फिल्ममेकर के तौर पर कायम हो गया लेकिन इससे पॉपुलर हिंदी सिनेमा के लोग उनके फैन नहीं हुए.

बड़ी हिंदी फिल्मों (जैसे सुल्तान या दंगल) के बारे में चर्चा इनके ऐलान होने के साथ ही शुरू हो जाती है और फिल्म बनने के साथ-साथ यह चर्चा और बड़ी हो जाती है. इन फिल्मों की चर्चा फिल्म के रिलीज होने के कुछ महीनों पहले अपने चरम पर पहुंच जाती है.

इसमें कुछ मदद कपिल शर्मा और इस तरह के रियलिटी शो से भी मिलती है. और इसके बाद इन फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त ओपनिंग होती है और इनसे तगड़ा रिटर्न मिलता है.

इसके मुकाबले में बाहुबली साल 2015 में पहले पार्ट के रिलीज होने के चंद महीनों पहले ही लोगों की नजरों में आई इसके बाद भी ज्यादातर लोगों ने इसकी रिलीज का इंतजार करने की बजाय इसके वीएफएक्स की क्वॉलिटी पर जोर दिया.

बाहुबली थिएटरों में बजरंगी भाईजान के कुछ दिनों बाद ही आई थी. बजरंगी भाईजान जितनी बड़ी फिल्म थी उसे देखते हुए कोई भी प्रोड्यूसर उसके साथ टकराव से बचने की कोशिश करता.

ऐसे में तब तक केवल एक तेलुगू फिल्म दे चुके पूरे देश में मशहूर स्टार्स के बिना और अपेक्षाकृत उच्च दर्जे के संगीत के साथ राजामौली किस तरह से नए दौर में भारतीय महागाथा के सबसे बड़े रचयिता बन गए.

साथ ही बाहुबली के वीएफएक्स आमतौर पर हॉलिवुड की किसी सुपरहीरो फिल्म जैसे नहीं हैं. यह सोचने वाली बात है कि किस तरह से बाहुबली 2: द कनक्लूजन एक ऐसी फिल्म बन गई जिसका पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है?

राजामौली ने कैसे बनाई बाहुबली

इसके पीछे कई फैक्टर हैं जिनमें स्केल, विजन और दृढ़ निश्चय शामिल हैं.

मिसाल के तौर पर पीटर जैक्सन की 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' की तीन फिल्मों की पूरी सीरीज 15 से ज्यादा साल में शूट हुई और इसका बजट बाहुबली की दोनों फिल्मों के बजट से चार गुना ज्यादा था.

इसमें प्रिंसिपल फोटोग्राफी में करीब 300 दिन लगे जिसमें पैचवर्क अगले कुछ साल तक हर साल कुछ हफ्ते शूट हुआ. इसके मुकाबले प्रभास ने दोनों बाहुबली के लिए कुल 613 दिन शूटिंग की जो कि तकरीबन चार साल में हुई.

इस दौरान उन्होंने कोई और फिल्म शूट नहीं की. साथ ही उन्होंने यह बताने का कोई मौका नहीं छोड़ा कि किसी एक प्रोजेक्ट में इतनी आस्था केवल निर्देशक के दृढ़ निश्चिय से ही पैदा हो सकती है. बाहुबली की टीम ने एक साल से ज्यादा वक्त प्री-प्रोडक्शन में गुजारा. लेकिन राजामौली के लिए यह सफर कहीं पहले शुरू हो चुका था.

बाहुबली की तरह से ही 'ईगा' और 'मगधीरा' को भी पुनर्जन्म की थीम पर बनाया गया था. रवि तेजा के डबल रोल वाली विक्रम-आरकुडु भी इसी तर्ज पर थी. मगधीरा भी माइथोलॉजी और स्केल पर थी.

ईगा ने घरेलू वीएफएक्स की अपनी तब की सीमाओं के बावजूद कल्पनाओं को नई ऊंचाइयां दीं. कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि इन सब फिल्मों के साथ राजामौली बाहुबली के लिए खुद को तैयार कर रहे थे.

बाहुबली की सबसे बड़ी ताकत इसकी कल्पना में व्यापक लेवल पर मौजूद डिटेल्स हैं. मिसाल के तौर पर पहले पार्ट में हुए युद्ध में कालकेय की भाषा पर नजर डालें. यह फिल्म के लिए विकसित की गई एक वास्तविक भाषा है जिसमें करीब 750 शब्दों का शब्दकोष और व्याकरण के वैध नियम इस्तेमाल किए गए. (क्लिंगन या डोथराकी, कोई भी?)

इसके अलावा फिल्म में जेंडर डायनेमिक्स को भी बेहद सावधानी से डिजाइन किया गया है.

बाहुबली और बहादुरी

बाहुबली के महिला चरित्र- शिवगामी (राम्या), अवंतिका (तमन्ना) और देवसेना (अनुष्का शेट्टी) सभी मजबूत कैरेक्टर हैं और इन सभी में योद्धाओं वाली खूबियां हैं. इसके बावजूद ये साफतौर पर या तो माएं हैं या पत्नी हैं.

इन्हीं महिलाओं को प्रभावित करने के लिए भल्लालदेव, बाहुबली और शिवुडू कोशिश करते हैं. फिल्म निश्चित तौर पर बहादुरी की गाथा है और बड़े तौर पर पुरुषों के शौर्य पर टिकी है.

ऐसे वक्त पर जबकि देश में दक्षिणपंथी हवा बह रही हो और उसमें महिलावाद केवल एक मुश्किल शब्द हो उस वक्त में बाहुबली देश को एक सुरक्षित जेंडर डायनेमिक्स देता है भले ही इसमें महिलावाद के हिसाब से कुछ न हो. साथ ही यह ऐसे वक्त पर आ रही है जबकि देश में राष्ट्रवादी सेंटीमेंट एक बार फिर से उठ खड़े हुए हैं.

देशभक्ति के चिर-परिचित अलंकार

मिलेनियल्स पीढ़ी के माता-पिता बताते हैं कि किस तरह से रामायण और महाभारत 80 के दशक में पूरे देश को रविवार को टीवी के सामने इकट्ठा कर देते थे.

बाहुबली अपने हिंदू प्रतीकों और कल्पनाओं (जो कि बड़े तौर पर रामायण और महाभारत से प्रेरित हैं) के साथ बड़े तौर पर एलओटीआर को देश के जवाब के रूप में प्रचारित करती है.

यह ऐसे वक्त पर हो रहा है जबकि देशभक्ति को यह मानकर चला जा रहा है कि हिंदुस्तान को एक महान देश और सभ्यता के तौर पर खुद को फिर से स्थापित करना चाहिए.

बाहुबलीः द बिगनिंग ने देश का ध्यान जिस तरह से अपनी ओर खींचा था उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. करण जौहर के फिल्म के रिलीज से पहले ही इसके हिंदी डब के डिस्ट्रीब्यूशन अधिकार लेने से भी इसे मदद मिली.

फिल्म के बारे में कोई क्या सोचता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन फिल्म के शुरू होने से पहले धर्मा प्रोडक्शंस का नाम पर्दे पर दिखना बड़ी है, क्योंकि लोग इस नाम से  परिचित हैं और दर्शकों के लिए इसका बड़ा महत्व है.

अनुकूल परिस्थितियों के साथ क्रिएटिव और मार्केटिंग जगत के दिग्गजों ने राजामौली के विजन को हकीकत बनाने में मदद की. पहली फिल्म के अंत में वादा किया गया कि पार्ट- 2 एक साल के भीतर आ जाएगा. यह वादा पूरा किए जाने की स्थिति में नहीं था दूसरी फिल्म को आने में पूरे दो साल का वक्त लग गया.

इसके बावजूद बाहुबली 2: द कनक्लूजन, लोगों को अपना इंतजार कराने और उनमें उत्सुकता बनाए रखने में सफल रही है. साथ ही इस चीज को भी पूरा क्रेडिट मिलना चाहिए कि पूरा देश यह जानने के लिए बेकरार है कि आखिर कटप्पा ने धोखा क्यों दिया और अमरेंद्र बाहुबली की हत्या क्यों की.

शायद यही उन कुछ चीजों में से है जिन्हें इस समय पूरा देश जानना चाहता है और इसका जवाब पाने का वक्त अब आ गया है.