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सबकी भौजाई नहीं है गरीब की जोरू: अनारकली ऑफ आरा

अनारकली जैसी महिला को कोई ‘ईजी मीट’ न समझे

Ravindra Choudhary

बॉलीवुड में बह रही नए सिनेमा की हवा का ताजा झोंका इस बार बिहार के आरा से आया है. मीडिया और ब्लॉगिंग वर्ल्ड में अपनी छाप छोड़ चुके अविनाश दास ने ‘अनारकली’ के रास्ते सिनेमा में भी उसी धमक के साथ एंट्री मारी है. उन्होंने   अपनी पहली ही फिल्म से भविष्य के लिए उम्मीदें जगा दी हैं. सिनेमा प्रेमी शुक्रगुजार हैं अविनाश जैसे साहसी फिल्मकारों के जो छोटे शहरों की कहानियों को हमारे सामने लेकर आए.

कहानीः रंगीला औरकेस्ट्रा बैंड पार्टी  की कलाकार अनारकली (स्वरा भास्कर) तमाम लटकों-झटकों के साथ डबल मीनिंग वाले गाने गाती है. बैंड का मालिक और को- स्टार रंगीला (पंकज त्रिपाठी) भी स्टेज पर उसका साथ देता है. सत्ता और शराब में चूर वाइस चांसलर धर्मेन्द्र चौहान (संजय मिश्रा) एक प्रोग्राम में अनारकली के साथ जौर-जबरदस्ती करता है. जब वह सारी हदें पार कर जाता है तब अनारकली उसे चांटा मार देती है.


यहीं से अनारकली के स्वाभिमान और वीसी की मर्दवादी सत्ता का संघर्ष शुरू होता है, जिसे अनारकली दिलचस्प अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेती है. इस संघर्ष में उसे अपने ढोलकिया अनवर (मयूर मोरे) और रिकॉर्डिंग स्टूडियो के हीरामन तिवारी (इश्तियाक़ ख़ान) का साथ मिलता है.

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एक्टिंगः अनारकली के रोल में स्वरा को वो ड्रीम रोल मिला, जिसके लिए कोई भी एक्टर अपने सारी फिल्में कुर्बान करने को तैयार हो जाए. और इस ड्रीम को स्वरा ने ऐसी रियलिटी के साथ परदे पर साकार किया है कि मुंह से बस यही निकलता है वाह!

उनके अनारकली के विद्रोहिणी रूप को देखकर बस मिर्च मसाला की सोनबाई (स्मिता पाटिल) याद आ गईं. दोनों के रोल में काफी समानता भी है और स्वरा ने साबित कर दिया है कि वो स्मिता-शबाना की परंपरा को जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ा सकती हैं.

पंकज त्रिपाठी और संजय मिश्रा के अभिनय के बारे में हमें कुछ कहने की जरूरत नहीं है और अगर किरदार उनकी अपनी मिट्टी में रचे-बसे हों तो फिर तो कहने ही क्या! इनके अलावा, हीरामन के रोल में इश्तियाक़ और भ्रष्ट इंस्पेक्टर बुलबुल पांडे के रोल में विजय कुमार भी बेहतरीन हैं. इस हीरामन के माध्यम से अविनाश ने तीसरी कसम और उसके किरदारों को श्रद्धांजलि भी दी है.

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और हां! अनारकली के सभी किरदारों को इतना विश्वसनीय रूप देने में कॉस्ट्यूम डिजाइनर रूपा चौरसिया का भी खास योगदान है.

फिल्म के डायलॉग्स बेहद सहज-सरल, मारक और चुटीले हैं, जो गुदगुदाने के साथ-साथ आपको बेचैन भी करते हैं. गीत-संगीत तो खैर है ही फिल्म की आत्मा, लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक जरूर कई दृश्यों पर बेमेल लगता है.

अंत में: अनारकली का संदेश बिल्कुल साफ है- 'मैं अपनी मर्जी से सौ लोगों से संबंध बनाउंगी लेकिन मर्जी के बगैर मुझे किसी एक का छूना तक पसंद नहीं.' 

परदे पर लगा उसका तमाचा असल में उन सभी मर्दों के मुंह पर है, जो गरीब की जोरू को पूरे गांव की भौजाई समझते हैं.

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इसलिए अनारकली जैसी महिला को कोई ईजी मीट’ न समझे. वो क्यूं...बूझे? ईजी मीट समझ के खाओगे तो हड्डी दांत में अटक जाएगा और बहोते दर्द करेगा.

तो अनरकलिया के इस पिरोगराम से खुस हो के हम दे रहे हैं चार सितारे. तालियां...तालियां!