साल 2017 को आए तीन महीने हो गए हैं और अब हमें ऐसी फिल्में देखने को मिलेंगी जो महिलाओं के इर्दगिर्द ही घूमती हैं.
एक के बाद एक हर शुक्रवार को ऐसी तीन फिल्में आ रही हैं. इनमें अनुष्का शर्मा की 'फिल्लौरी', स्वरा भास्कर की 'अनारकली ऑफ आरा' और तापसी पन्नू की 'नाम शबाना' शामिल हैं. इन तीनों फिल्मों की कहानी अलग-अलग है लेकिन उनमें एक समानता है और ये कि ये सभी महिला प्रधान फिल्में हैं.
बॉलीवुड में हाल के सालों में महिला प्रधान फिल्में खूब बनने लगी हैं जबकि पहले कभीकभार ही ऐसी फिल्में देखने को मिलती थीं.
पिछले साल नीरजा, दंगल, पिंक, फोबिया जैसी फिल्में महिलाओं की कहानियों पर ही आधारित थी. इससे पहले हम 'नो वन किल्ड जेसिका', 'कहानी', 'द डर्टी पिक्चर', 'क्वीन' और 'मेरीकॉम' देख चुके हैं जो बॉक्स ऑफिस पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहीं.
धीरे-धीरे ही सही, लेकिन बॉलीवुड अब इस बात को निश्चित तौर पर मान रहा है कि महिला प्रधान फिल्में बनाना कारोबार के नजरिए से अच्छा फैसला है.
प्रड्यूसर अनुष्का
लगभग दो साल पहले अनुष्का शर्मा ने पहली बार फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा था और नवदीप सिंह के साथ मिल कर 'एनएच-10' बनाई थी. यह फिल्म एक युवा दंपत्ति के एक रात के सफर की कहानी है जो ऑनर किलिंग, पित्रृसत्तात्मक समाज और हिंसा को लेकर एक मजबूत संदेश देती है.
बतौर निर्माता 'फिल्लौरी' अनुष्का शर्मा की दूसरी फिल्म है. बॉलीवुड के हिसाब से फिल्म की कहानी थोड़ी ‘हटकर’ हैं. फिल्म के निर्देशक अंशाई लाल हैं और यह एक मांगलिक लड़के की कहानी है, जिसे किसी लड़की से शादी करने से पहले एक पेड़ से शादी करनी होती है.
लेकिन बाद में पता चलता है कि उस पेड़ पर तो एक मजेदार भूतनी (अनुष्का) रहती है और फिर वह लड़का उस भूतनी को भूतलोक में जाने में मदद करता है.
नई प्रतिभाएं
एकता कपूर, गुनीत मोंगा और रिया कपूर को छोड़ दें तो फिल्म निर्माण आम तौर पर पुरुषों के दबदबे वाला इलाका ही माना जाता है. अभिनेत्रियां सिर्फ अपने दम तोड़ते करियर में जान फूंकने के लिए ही फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखती हैं.
लेकिन, 28 साल की अनुष्का तो अपने करियर के चरम पर हैं. बतौर निर्माता उनकी तरफ से दिलचस्प फिल्में देखने को मिल सकती हैं.
बरसों तक बड़े प्रोजेक्ट्स और नामी गिरामी लोगों के पीछे भागने की बजाय वह ऐसे एक्टरों, राइटरों और फिल्मकारों के साथ काम करना पसंद करती हैं जिनके पास सुनाने के लिए तरोताजा कहानियां हैं.
अनुष्का के होम प्रोडक्शन में नई प्रतिभाओं को बॉलीवुड में मौका मिल रहा है. एनएच-10 की सफलता नवदीप को उनकी फिल्म मनोरमा सिक्स फीट अंडर की रिलीज के 12 साल बाद वापस बॉलीवुड में लेकर आई.
इस फिल्म से राइटर सुदीप शर्मा और एक्टर दर्शन कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में अपने पांव जमाने में मदद मिली. फिल्लौरी के निर्देशक के तौर पर अंशाई लाल की पहली फिल्म है जबकि 'लाइफ ऑफ पाई' वाले एक्टर सूरज शर्मा की यह पहली बॉलीवुड फिल्म है.
नया ट्रेंड
स्वरा भास्कर की 'अनारकली ऑफ आरा' ने बॉलीवुड में महिलाओं से जुड़ी कहानियां कहने के कायदों को तोड़ती है. अनारकली एक ऑर्केस्ट्रा सिंगर है जो कामुक गीत गाती है और सेक्स से जुड़ी बातें भी खुल कर करती है.
स्वरा भास्कर अपने किरदार के बारे में कहती है, सेक्स, अपने शरीर और उसकी इच्छाओं को लेकर उसके विचार खुले हैं.' अनारकली अपनी बात ऐसे शुरू करती हैं, 'मैं चरित्रहीन हूं. यह सब मैं गुजारे के लिए करती हूं. और क्या?'
इस फिल्म में स्वरा का रोल 'द डर्टी पिक्चर' में विद्या बालन के किरदार की याद दिलाता है, जिसमें रेशमा नाम की एक जूनियर आर्टिस्ट सिल्क बन जाती है और 'सेक्स-सिंबल' बनकर छा जाती है.
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अगले हफ्ते, तापसी पन्नु की 'नाम शबाना', लगता है एक नया ही ट्रेंड शुरू करने जा रही है. यह जासूसी फिल्म अक्षय कुमार की 'बेबी' फिल्म से निकली है. तापसी पन्नु ने 'बेबी' में शबाना का एक छोटा सा रोल किया था.
लेकिन तापसी ने बेबी में अपने काम से फिल्म के निर्माता निर्देशक नीरज पांडे पर ऐसी छाप छोड़ी कि उन्होंने 'नाम शबाना' में लीड रोल के लिए तापसी को हरी झंडी दिखा दी.
बॉलीवुड में ऐसा मुश्किल से ही होता है जब किसी फिल्म के एक किरदार को लेकर दूसरी फिल्म बने और वह मुख्य भूमिका में किसी एक्ट्रेस को लेकर.
'महिला प्रधान' टैग क्यों?
अप्रैल में विद्या बालन की बेगम जान आएगी, जिसमें तवायफों के एक समूह को दो देशों से लड़ते हुए दिखाया गया है. फिर सोनाक्षी सिन्हा की नूर रिलीज होगी जिसमें वह एक पत्रकार की भूमिका में दिखेंगी.
इसी साल श्रद्धा कपूर की 'हसीना-क्वीन ऑफ मुंबई' भी आने वाली है जिसमें वह दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पार्कर का रोल कर रही हैं. इसके अलावा कंगना रानौत हंसल मेहता की सिमरन में दिखाई देंगी.
लगता है कि यह साल बॉलीवुड में महिलाओं के लिए अच्छा रहने वाला है. वैसे, अनुष्का और विद्या बालन समेत कई लोगों को बॉलीवुड में ‘महिला प्रधान’ टैग से दिक्कत है और वे इस बात को खुल कर जाहिर भी करती हैं.
अनुष्का कहती हैं, 'इस फिल्म को महिला प्रधान फिल्म बोलकर ऐसा लग रहा है कि इसमें कोई कमी है. जिन फिल्मों में पुरुष हीरो होते हैं उन्हें आप सिर्फ ‘फिल्म’ कहते हैं लेकिन जो फिल्में महिला की कहानी पर बनती है उन्हें आप महिला प्रधान फिल्मों का नाम देने लग जाते हैं.'
अनुष्का ने बिल्कुल सही बात उठाई है, लेकिन इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि अब भी महिलाओं से जुड़ी कहानियों पर बॉलीवुड में बहुत कम फिल्में बनती हैं. बात कैमरे के सामने की है या कैमरे के पीछे ही ज्यादातर यहां पुरुषों का ही राज चलता है.
इसलिए मुख्य भूमिका में महिलाओं को लेकर जो फिल्में बन रही हैं, उनकी बात भी होनी चाहिए और उन्हें सराहा जाना चाहिए.