एंटी रोमियो ऑपरेशन के खौफ से पहले ही जान पर बन आई थी कि योगीजी ने 'एंटी चीयर्स' का कातिलाना फरमान जारी कर टूटे दिल पर आयोडिन युक्त नमक मल दिया.
जुर्माने के साथ जेल का प्रावधान जोड़कर जीत का पूरा जायका ही बिगाड़ दिया. जवां दिलों की हालत एकतरफा प्यार वाले आशिक की तरह हो गई है. सरकार पर दिल लुटाए बैठे हैं और सरकार है कि दिल पर छुरियां चलाए जा रही है.
वादा खिलाफी की बात कौन कहे, सपनों पर पानी फिर रहा है. किससे दिल का हाल सुनाए समझ नहीं आ रहा है. चुनावी रंगत में जमकर शराब की पंगत लगाने वाले भक्त भी आज एंटी चीयर्स ऑपरेशन की शौर्य गाथा गा रहे हैं. सरकार के फैसले से इतने उत्साहित हैं, जितना मंगल ग्रह पर पानी मिलने पर नासा के वैज्ञानिक भी नहीं हुए होंगे.
देश की सभी समस्याओं का अंत
ऐसा लग रहा है कि एंटी चीयर्स ऑपरेशन की सफलता के साथ भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सदस्यता की कक्षा में स्थापित हो जाएगा. भारत को एनएसजी के लिए चीन का समर्थन मिल जाएगा. कुछ तो ऐसे तर्क गढ़ रहे हैं जैसे ऑपरेशन की सफलता के साथ ही देश की सभी समस्याओं का अंत हो जाएगा. पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापना छोड़ देगा. राहुल गांधी बहुमत से पिछड़े के बावजूद भी बहू लाने में सफल हो जाएंगे.
योगी बाबा के समर्थकों का तर्क है कि शराब से नहीं सार्वजनिक जाम छलकाने से परहेज है. इन्हें कौन बताए कि शराब और महफिल का संबंध अन्योनाश्रय है. महफिल बगैर शराब की कल्पना बेमानी है. पुरातन काल से ही शराब ने महफिलों को रौशन किया है. गालिब ने तो मस्जिद तक को भी शराब पीने के लिए मुफीद बताया है. इंद्र देव के दरबारियों ने भी इसे शास्त्र सम्मत बताया है.
धर्म और शराब का नाता नया नहीं, सदियों पुराना है. हिंदू धर्म में इसे काल-भैरव का प्रसाद माना गया तो महायानी तांत्रिकों ने पंच मकारों में सुमार किया. अघोर साधकों ने इसे आनुष्ठानिक प्रक्रिया का अंग बनाया तो कपालिकों ने इसे इष्टदेव के माथे पर उड़ेला. भैरव नाद के मांसल नृत्य से लेकर गिरिजाघरों की खामोशी तक शराब हर जगह मौजूद रही है.
शराब से सहोदर जैसा प्यार
सभ्यता के उद्भव को लेकर इतिहासकारों में भले मतभेद रहा हो पर इस बात को लेकर शायद ही मतभेद होगा कि मानव जाति अनादि काल से मदिरा का सेवन करता आया है. मानव ही क्या, देवताओं और दानवों का सेलिब्रेशन भी 'सोमरस' के बिना अधूरा रहा है. राजा-महाराजा से लेकर नई सदी के राजनेता तक सभी ने शराब से सहोदर जैसा प्यार किया है.
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कवि गोपालदास नीरज ने कविता की उपज का श्रेय शराब को ही दिया. किरदार बदलते रहे लेकिन शराब की मौजूदगी बनी रही. शराब सरकारी योजनाओं का हिस्सा भी बनी तो फिल्म पटकथाओं में भी शामिल हुई. साहित्यकार रवींद्र कालिया ने तो अपनी आत्मकथा शराब के नाम ही कर दी. कालिया ने इसे भोजन से भी जरूरी बताया. उन्होंने तो यहां तक कहा कि, 'मैंने शराब के लिए परिश्रम किया..मुझे रोटी की नहीं शराब की चिंता थी.'
एक-दो नहीं सैकड़ों कामयाब लोगों ने शराब की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है लेकिन विजय माल्या विदेश क्या गए देश में शराब अनाथ हो गई. हर सत्ताधारी शराब को भगोड़ा घोषित करने पर तुला है. कुछ भगवाधारी तो बिना शराब के ही बहक रहे हैं. कुछ तो हैंगओवर की स्थिति में पहुंच गए हैं.
डर लग रहा है कल कहीं हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' और कुमार सानू, पंकज उधास का 'नशा' एल्बम रखना भी अपराध की श्रेणी में ना आ जाए. भविष्यवक्ता बेजान दारूवाला का भविष्य 'सरनेम' के चक्कर में ही बिगड़ जाए.
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मूल्यों को नजरअंदाज करने जैसा
योगीजी को समझना चाहिए कि सार्वजनिक जगहों पर शराबबंदी समतावादी मूल्यों को नजरअंदाज करने जैसा है. शराब से सिर्फ कदम लड़खड़ाते ही नहीं, लड़खड़ाते कदमों को शराब से ठौर भी मिलता है. प्रेम में पराजित आशिक हो या फिर जीत के गुरूर में मगरूर प्रेमी दोनों को शराब ही सहारा देती है. किशोर दिल जब प्रेम परीक्षा में फेल हो जाता है, गुमनामी के अंधेरे में गुम होने लगता है तो वह शराब के सहारे ही उबरता है.
फिर सत्ता के नशा के आगे शराब की क्या बिसात है. वह तो सिर चढ़कर बोलती है. अगर सत्ता के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक नहीं तो फिर शराब को ही कठघरे में खड़ा करना असहिष्णुता नहीं है तो क्या है? हम तो यही कहेंगे सरकार कि बड़ी जीत पर आप भी पटियाला पैग लगाकर 'चीयर्सलीडर' की तरह सत्ता का प्राणोदक प्रदर्शन करिए, जश्न मनाइए और मन ही मन गुनगुनाइए.
'जाहिद शराब पीने से काफिर हुआ मैं क्यूं
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया...''