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आप सोच नहीं सकते कि एक राग के हो सकते हैं इतने चेहरे

राजस्थान की रंग-बिरंगी मिट्टी में बसे राग मांड की कहानी, वहां का मशहूर लोकगीत ‘पधारो म्हारे देस’ इसी राग पर आधारित है

Shivendra Kumar Singh

70 के दशक की बात है. जाने-माने फिल्मकार कमाल अमरोही एक फिल्म बना रहे थे. 1949 में रिलीज हुई फिल्म ‘महल’ के लेखक-निर्देशक वही थे. 1960 में रिलीज हुई ऐतिहासिक फिल्म 'मुगले आजम' के डायलॉग भी कमाल अमरोही की कलम की देन थे. इस फिल्म के बारे में मशहूर कहावत थी कि शाहजहां ने अपनी बेगम के लिए ताजमहल बनवाया था और अब कमाल साहब मीना कुमारी के लिए ताजमहल बनवा रहे हैं.

यूं तो इस फिल्म के दर्जनों किस्से हैं जिनपर किस्सागोई हो सकती है, लेकिन हम अपनी कहानी को फिल्म के संगीत के इर्द-गिर्द रखते हैं. इस फिल्म में संगीत गुलाम मोहम्मद का था. अफसोस कि वो फिल्म के रिलीज होने से पहले ही चल बसे, ऐसे में नौशाद साहब ने फिल्म का संगीत पूरा किया. दरअसल, गुलाम मोहम्मद और नौशाद साहब का साथ कोई बीस बरस का था. गुलाम मोहम्मद ने नौशाद साहब की कई फिल्मों में तबला बजाया था. बाद में वो नौशाद साहब के असिस्टेंट के तौर पर भी काम करते रहे.


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नौशाद साहब कहते थे कि उन्होंने फिल्मी संगीत में इतना कमाल का तबला वादक नहीं देखा. गुलाम मोहम्मद के अब्बा, उनके भाई और परिवार के बाकी लोग भी संगीत से ही जुड़े हुए थे. वो नौशाद साहब की बड़ी इज्जत करते थे और दिल से उन्हें अपना उस्ताद भी मानते थे. जब गुलाम मोहम्मद पाकीजा का संगीत तैयार कर रहे थे तो उन्होंने शास्त्रीय और लोक संगीत का अद्भुत तालमेल किया था. आज फिल्म पाकीजा और गुलाम मोहम्मद के बहाने हम जिस राग की चर्चा करेंगे उससे पहले आप इसी फिल्म का यह गाना सुनिए.

आज हम जिस राग की चर्चा कर रहे वो है राग मांड. जो आपको इस गाने की शुरूआती चार लाइनों में दिखाई देगा. आज की रात बड़ी देर की बात आई है, ये मुलाकात बड़ी देर के बाद आई है. 'आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के बाद, आज की रात बड़ी देर की बात आई है...' इसके बाद का गाना राग मिश्र खमाज की तरफ चला जाता है. राग मिश्र खमाज की बात आने वाले समय में करेंगे आज बात राग मांड की. उससे पहले आपको गुलाम मोहम्मद के बारे में बता दें कि वो बंबई के एक सूफी बुजुर्ग हाजी वली मोहम्मद के बहुत बड़े मुरीद थे और हर जुमेरात को वहां बैठकर ढोलक बजाया करते थे.

हाजी साहब पर जब कैफियत तारी होती थी तो वो गुलाम मोहम्मद से कहते थे कि तेरी ये ढोलक जन्नत जाएगी. यहां तक कि नौशाद साहब भी कहा करते थे कि ये गुलाम मोहम्मद का बड़प्पन है कि वो उन्हें उस्ताद मानते हैं वरना संगीत की बारीकियों की जानकारी उन्हें कहीं ज्यादा है. ‘ठाढ़े रहियो’ महफिल परंपरा की खड़ी महफिल पर आधारित गाना है. आपको बताते चलें कि इस गाने में मीना कुमारी को डांस तैयार कराने की जिम्मेदारी लच्छू महाराज को दी गई थी.

राग मांड पर हिंदी फिल्मों में और भी गीत कंपोज किए गए हैं. इसमें एक खूबसूरत गीत फिल्म 'अभिमान' से है. 1973 में रिलीज हुई इस फिल्म का संगीत एस डी बर्मन ने तैयार किया था. आप इस गीत को सुनिए उसके बाद इसकी कहानी भी सुनाएंगे.

दरअसल ऐसा कहा जाता है कि यह फिल्म भारत रत्न सितार वादक पंडित रविशंकर और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा देवी की असल कहानी पर आधारित थी. आपको बता दें कि अन्नपूर्णा देवी सुरबहार की बहुत बड़ी कलाकार थीं. वो मैहर घराने के संस्थापक अलाउद्दीन खान की बेटी थीं और अली अकबर खान की बहन थीं लेकिन पंडित रविशंकर से विवाह के बाद बनी स्थितियों के चलते उन्होंने स्टेज परफॉरमेंस करना ही छोड़ दिया.

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फिल्म 'अभिमान' के अलावा फिल्म 'बैजू बावरा' का गीत बचपन की मोहब्बत को दिल से ना जुदा करना, 1971 में रिलीज फिल्म 'रेशमा और शेरा' का तू चंदा मैं चांदनी जैसे लोकप्रिय गाने भी इसी राग पर आधारित है. इसके अलावा राग मांड पर आधारित एक बेहद खूबसूरत गीत फिल्म 'लेकिन' में भी है. इस फिल्म का संगीत लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर ने तैयार किया था.

खास बात यह भी है कि इस फिल्म के निर्माण के लिए लता मंगेशकर ने अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के नाम पर एक फिल्म बैनर भी बनाया था. फिल्म के लेखक, निर्देशक और गीतकार गुलजार थे. आपको इनमें से कुछ चुनिंदा गाने सुनाते हैं.

इस राग का राजस्थान से क्या नाता है वो आप वहां के किसी भी कोने में चले जाएं तो आसानी से समझ जाएंगे. चलिए अब आपको राग मांड के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. राग मांड चंचल किस्म का राग माना जाता है हालांकि इसे गाना-बजाना खासा कठिन है. मांड राजस्थान की मिट्टी में बसा हुआ राग है. वहां का मशहूर लोकगीत ‘पधारो म्हारे देस’ इसी राग पर आधारित है. गुजरात के लोकगीतों में भी इस राग की खनक सुनाई देती है.

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इस राग में सभी स्वर शुद्ध लगते हैं. इस राग की जाति वक्र संपूर्ण है. इस राग को कभी भी गाया बजाया जा सकता है. इस राग का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर मध्यम है. कुछ लोग संवादी स्वर पंचम को मानते हैं. ठीक वैसे ही कुछ कलाकार इस राग में कभी-कभार कोमल ‘नी’ लगाते हैं. यही वजह है कि इस राग के दो आरोह अवरोह-प्रचलित हैं. आइए इस राग के दोनों आरोह-अवरोह भी देख लेते हैं.

आरोह- सा ग, रे म, ग प, म ध, प नी, ध सां

अवरोह- सां ध, नी प, ध म, प ग, रे ग सा.

कुछ कलाकार इस आरोह अवरोह से राग मांड को परिभाषित करते हैं.

आरोह- सा रे म प ध सां

अवरोह- सां नी ध प, प ग रे, सा रे गा, सा

मुख्य स्वर- ध नी प, ध म, प ग रे, सा रे ग सा.

हमेशा की तरह अब आपको राग मांड को शास्त्रीय कलाकारों ने किस तरह निभाया है इसकी झलक दिखाते हैं. आज पहले आपको सुनाते हैं जाने-माने सारंगी वादक सुल्तान खान की सारंगी और उस्ताद जाकिर हुसैन की जुगलबंदी में राग मांड.

राग मांड में आपको पटियाला घराने के जाने-माने शास्त्रीय कलाकार पंडित अजय चक्रवर्ती की एक रिकॉर्डिंग सुनाते हैं. जिसमें वो उस्ताद बरकत अली खान और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब के भारतीय संगीत में योगदान की चर्चा कर रहे हैं. साथ ही यह भी बता रहे हैं कि उन्होंने सुना था कि मांड के 24 प्रकार हैं. जिसको उन्होंने राजस्थान में लंबे समय तक काम कर के तलाशा. राजस्थान की संगीत नाटक अकादेमी में इसकी रिकॉर्डिंग भी है. इस रिकॉर्डिंग को जरूर सुनिए, आपको राग मांड के बारे में इससे बेहतर जानकारी शायद ही कहीं मिलेगी.

अगली बार किसी और शास्त्रीय राग के साथ हाजिर होंगे.