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मीट खाना अस्वाभाविक और 'देशविरोधी' है: मेनका गांधी

भारत की खातिर और जानवरों के जिंदगी के लिए दूध, अंडे और मीट खाना बंद करिए.

Maneka Gandhi

अमेरिकन जनरल ऑफ क्लीनिकल इन्फॉर्मेशन के अनुसार औसतन इंसान के हर दिन के खाने का 2.5 प्रतिशत हिस्सा प्रोटीन होना चाहिए.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 150 पाउंड यानी 68 किलोग्राम के व्यक्ति को हर दिन के खाने में 4.5 प्रतिशत प्रोटीन या 128 कैलोरी होनी जरूरी है.


प्रोटीन के लिए खाने की जो चीजें बताई जाती है उनमें मीट, अंडा और डेयरी फूड प्रमुख हैं. लेकिन अगर आप फल, ताजा सब्जियां, गेंहू, अलग अलग अनाजों से बना ओटमील या कद्दू भी खाते हैं, तो आपको हर दिन जरूरी प्रोटीन मिल जाएगा. अगर आप पत्ता गोभी भी खाएंगे, तो जितना जरूरी है, उससे दोगुना प्रोटीन आपको मिल जाएगा. सब कुछ छोड़ दीजिए, अगर आपने आलू भी खाएं हैं तो उससे भी आपको पर्याप्त प्रोटीन मिल जाएगा.

प्रचार का हथकंडा

हमें बताया जाता है कि पशुओं के मीट से मिलने वाला प्रोटीन सब्जियों से मिलने वाले प्रोटीन से ज्यादा अच्छा होता है. इस बात को अमेरिका में 1940 के दशक में खूब प्रचारित किया गया. यह बात चूहों पर हुए कई प्रयोगों के आधार पर कही गई. लेकिन इन प्रयोगों को इंसानों पर किया ही नहीं जा सका. इसलिए इंसानों की डायट तय करने के लिए इसे कैसे आधार बनाया जा सकता है.

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अगर आपको पर्याप्त कैलोरी मिल रही है तो आपको जरूरी प्रोटीन भी मिल सकता है.

शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिलने का पूरा मुद्दा ही असल में प्रचार का हथकंडा है. इसके पीछे ठोस तो क्या आंशिक रूप से भी सच्चाई नहीं है. इससे सिर्फ तीन उद्योगों के हित सध रहे हैं- मीट, अंडा और दूध उद्योग. ये तीनों सबसे महंगे खाद्य पदार्थ हैं.

मीट और अंडा खाने वाले, दूध पीने वाले या अन्य दुग्ध उत्पाद खाने वाले लोगों को मिलने वाले जरूरी अमीनो एसिड के बारे में हुए क्लीनिकल अध्ययन बताते हैं कि इन तीनों समूहों के लोगों को जरूरत से दोगुना अमीनो एसिड मिल रहा था. कुछ लोगों को जरूरत से पांच गुना अमीनो एसिड मिल रहा था.

टॉप एथलीट शाकाहारी

एक सामान्य शुद्ध शाकाहारी डायट मे 9 प्रतिशत से कम प्रोटीन मिलना मुश्किल है! आपको प्रोटीन की कमी सिर्फ तभी हो सकती है जब सिर्फ एक साथ व्हाइट ब्रेड, पैस्ट्री, तला हुआ खाना और कैंडी खाएं. या फिर सिर्फ फल खाएं. या सिर्फ कसावा रूट खाएं. लेकिन ऐसे में आपको सिर्फ प्रोटीन ही नहीं, बल्कि कार्बोहाइड्रेड, विटामिन, फाइबर और खनिज तत्वों की भी कमी हो जाएगी.

अपने जमाने में सबसे तेज धावक रहे कार्ल लुईस शाकाहारी थे.

हमें बताया जाता है कि अगर हमें मसल्स यानी मांसपेशियां चाहिए, अगर हम बहुत मेहनत वाला काम करते हैं, बहुत खेलते हैं, तो हमें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है. यह भी एक भ्रम है. हमें एंजाइम की जगह प्रोटीन की जरूरत होती है. बाल उगाने के लिए और एंटीबॉडी मुहैया कराने के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है. मसल्स के लिए, खेलने के लिए, खाने को ऊर्जा में तब्दील करने के लिए हमें कार्बोहाइड्रेड की जरूरत होती है. यही कारण है कि दुनिया के टॉप एथलीट शाकाहारी होते हैं.

देश की दौलत चरती बकरियां

बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन लेने के क्या परिणाम होते हैं?

चलिए पहले देखते हैं कि हम भारत के साथ क्या कर रहे हैं, फिर देखेंगे कि हम अपने साथ क्या कर रहे हैं.

भारत में जंगलों की भारी पैमाने पर कटाई के लिए दूध और मीट उद्योग जिम्मेदार है. कोई भी बकरी मारे जाने से पहले चार हेक्टेयर जमीन चर लेती है. उपग्रह से मिली तस्वीरें दिखाती हैं कि लगभग 16 करोड़ हेक्येटर जमीन बंजर पड़ी है. इसमें ज्यादातर इलाका बकरियों के चरने वाली जगह में आता है.

भारत सरकार का वेस्टलैंड बोर्ड एक एकड़ जमीन को फिर से हरा भरा बनाने के लिए छह हजार रुपए देता है. लेकिन ज्यादातर इसका कोई फायदा नहीं होता क्योंकि जमीन की ऊपरी मिट्टी वहां से हट चुकी होती है. इसलिए हर बकरी घास से ढके मैदान और नन्हे पौधों के रूप में साठ हजार रुपये की राष्ट्रीय संपत्ति को चर जाती है.

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हमने अरावली की पहाड़ियों को फिर से हरा भरा बनाने के लिए चार सौ करोड़ रुपये का लोन लिया है. इस इलाके को सिर्फ बकरियों ने उजाड़ बनाया है क्योंकि मीट की भारी मांग को पूरा करने के लिए उनका बड़ी संख्या में जबरन प्रजनन कराया जाता है. मुझे और आपको यह लोन बढ़े हुए टैक्स, किराए, बिजली और पानी के बिल और स्कूल फीस के रूप में चुकाना होगा.

दुश्मन बने बाघ और शेर

हमारे राष्ट्रीय अभ्यारण्यों में बाघ, तेंदुए और शेरों पर संकट मंडरा रहा है क्योंकि किसान अपने दुधारू पशुओं को वहां चराने ले जाते हैं. इसका नतीजा यह होता है कि बाघ, तेंदुए और शेर दुश्मन समझे जा रहे हैं. किसान उन्हें कभी जहर देकर मार रहे हैं तो कभी डायनामाइट के जरिए ताकि फिर अभ्यारण्य में वे अपनी गायों को आसानी से चरा सकें.

क्या आप अपने खाने में मीट और दूध की मात्रा के लिए इसे उचित ठहरा सकते हैं? क्या इससे जानवरों की पूरी प्रजाति का विनाश नहीं हो रहा है? क्या इससे भारत का कर्ज नहीं बढ़ रहा है? क्या इससे जमीन का वह बड़ा हिस्सा बंजर नहीं हो रहा है जो इस कृषि प्रधान और जरूरत से ज्यादा आबादी वाले इस देश की बुनियादी पूंजी है?

हम जानवरों को बड़ी मात्रा में अनाज, सोयाबीन और दालें खिलाते हैं. जिनसे हम गरीब लोगों का पेट भर सकते हैं. यह अप्राकृतिक और देश विरोधी भी है कि आप एक किलो मीट खाएं जिसे बनने में 11 किलो अनाज लगा है.

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विटामिन, स्ट्रॉइड्स और हार्मोंस जैसी दवाओं पर खर्च होने वाले पैसे को गरीब लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने पर खर्च किया जा सकता है.

चिकन की कीमत

हम रोजाना लाखों जानवरों को भारी पीड़ा और कष्ट देते हैं. मुर्गे मुर्गियों को डिब्बे के आकार वाले पिंजड़ों में रखा जाता है. उनकी चोंच काट दी जाती है. उन्हें रोज पीरियड कराने के लिए इंजेक्शन से हार्मोन दिए जाते हैं. आखिकार अंडे क्या है, सिर्फ पीरियड में जमा होने वाला खून ही होता है.

उन्हें लगातार चकाचौंध करने वाली रोशनी में रखा जाता है. क्योंकि उनके अंडे एक कन्वेयर बेल्ट के सहारे जमा किए जाते हैं. अंडे नहीं देने वाली मुर्गियों को टोकरियों में भरकर रखा जाता है. या साइकल पर उल्टा पुल्टा रखा जाता है. और उन्हें पंखों से पकड़ कर सड़क किनारे मीट की दुकान लगाकर बैठे लोगों को दिया जाता है. जंग वाले धारदार हथियारों से उनकी उनकी गर्दन काटी जाती है. हर मुर्गी को मरने में आधा घंटा लगता है.

बूचड़खानों का हाल

क्या आपने कभी बूचड़खानों में बकरियों, भेड़ों और बैलों/भैसों को कटते देखा है? उन्हें सैकड़ों मील दूर से ट्रकों में ठूसकर लाया जाता है. इस दौरान कई बार उनकी टांगें टूट जाती हैं. उन्हें अक्सर उनकी पूंछ से खींचा जाता है. एक दूसरे के ऊपर पटक दिया जाता है. वे कई दिनों तक इसी अवस्था में रहते हैं क्योंकि बूचड़खाने में जानवरों का ढेर लगा होता है.

बूचड़खाने से निकलने वाली खून की नालियों के बीच ये जानवर कई दिनों तक भूखे प्यासे पड़े रहते हैं. जब उनकी बारी आती है तो उन्हें खींच कर अंदर ले जाया जाता है. उनकी आंखों में तंबाकू और एसिड डाला जाता है ताकि वे खड़े हो जाएं. उसके बाद तेज धार वाले जंग लगे ब्लेड से उनकी गर्दन अलग कर दी जाती है.

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इतनी सब क्रूरता उस चीज के उत्पादन के लिए होती है. जो पूरी तरह से गैर जरूरी है और इंसानी शरीर के लिए नुकसान दायक भी है.

शरीर को नुकसान

पशुओं से मिलने वाले इस गैर जरूरी प्रोटीन से हमारे शरीर को क्या नुकसान होता है? किसी भी चीज की अति नुकसान ही करती है. चाहे वे एस्प्रिन हो, शराब हो, खाना हो या फिर धूप. प्रोटीन की जरूरत से ज्यादा मात्रा से शरीर को क्या नुकसान होता है?

संपन्न समाजों में 25 फीसदी महिलाएं एक बीमारी से पीड़ित होती है. जिसका नाम है ओस्टेरोपोरोसिस. दुनिया में इतनी महिलाएं स्तन और गर्भाश्य के कैंसर से मिलाकर नहीं मरतीं, जितनी ओस्टेरोपोरोसिस के कारण मारी जाती हैं. इस बीमारी में हड्डियां कैल्शियम लेना बंद कर देती हैं.

जब तक महिला 50 वर्ष की होती है तो उसके ढांचे से हड्डियां बनानी वाली 50 प्रतिशत सामाग्री खत्म हो चुकी होती है. यह बीमारी धीरे धीरे असर दिखाती है. इसका पता ही तब चलता है जब दांत गिरने लग जाते हैं, मसूड़े धंसने लगते हैं और हड्डियां आसानी से टूटने लगती हैं. इससे पहले, तक शरीर कैल्शियम की मात्रा सामान्य दिखाता है. जो शरीर की कई अहम गतिविधियों के लिए जरूरी होती है. लेकिन कैल्शियम आपके खाने से नहीं मिलती बल्कि यह हड्डियों से ली जाती है.

हड्डियों पर असर

सभी वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि जितनी ज्यादा मात्रा में प्रोटीन लिया जाएगा, कैल्शियम को जज्ब करने पर उतना ही नकारात्मक असर होगा. इसका मतलब है कि जब आप ज्यादा दूध पीते हैं या ज्यादा मीट खाते हैं तो आपका शरीर उतनी ही कैल्शियम गंवाता है. भले ही आप कितनी भी कैल्शियम लेते हों. इससे हड्डियों का घनत्व कम होता है और घातक बीमारियों का खतरा बढ़ता है.

जो लोग शाकाहारी हैं उनमें मीट खाने वालों की तुलना में हड्डियों के घनत्व की हानि 50 फीसदी कम होती है. दूध, अंडा और मीट न खाने वाले लोगों में यह हानि लगभग नहीं के बराबर होती है. क्यों?

शरीर को न्यूट्रल पीएच पर बनाए रखना होता है. अगर खून एसिडिक हो जाता है तो हम मर जाते हैं. मीट, अंडे, मछले और दूध सबसे ज्यादा एसिड बनाने वाले खाद्य पदार्थ हैं. इसलिए शरीर अपनी समझदारी दिखाते हुए पीएच संतुलन को बनाए रखने के लिए हड्डियों से अल्कालाइन कैल्शियम लेता रहता है.

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एक और अहम बात यह है कि शरीर में कैल्शियम को सोखने के लिए फासफोरस जरुरी नहीं होता है. चिकन, गोमांस, मछली, पोर्क, कलेजी और दूध में सबसे कम फासफोरस होता है. सभी सब्जियों में कैल्शियम-फासफोरस का अनुपात कहीं ऊंचा होता है. मिसाल के तौर पर सलाद पत्ते में किसी भी मीट से 70 गुना ज्यादा कैल्शियम-फासफोरस होता है.

जरा सोचिए

समस्या सिर्फ इतनी सी नहीं है. एक स्थापित तथ्य यह भी है कि किडनी को दूध और मीट से नुकसान होता है. अतिरिक्त प्रोटीन खुद शरीर से बाहर नहीं निकलता. इससे छुटकारा पाने के लिए किडनी को ज्यादा काम करना होता है. इससे किडनी में पथरी, मांसपेशियों में जरूरत से ज्यादा वृद्धि और जलन की समस्या होने लगती है. आपने कभी सोचा है कि जिन लोगों के पास बस एक किडनी होती है उन्हें डॉक्टर क्यों पशुओं से मिलने वाली प्रोटीन खाने से मना करते हैं?

अगर इन बातों से भी आपको संतुष्टि नहीं हुई है तो अमेरिकन इंस्टीट्यूट फॉर कैंसर रिसर्च के वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार की बात सुनिए. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि, ‘खाने में ली जाने वाली प्रोटीन की मात्रा से स्तन, अग्नाश्य और मलाश्य के कैंसर का सीधा संबंध है.’ इसी तरह का बयान इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन न्यूट्रीशन की तरफ से भी जारी किया गया है.

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इसीलिए मैं कहती हूं कि भारत की खातिर और जानवरों को खातिर दूध, अंडे और मीट खाना बंद करिए. जरा जानवरों को होने वाले अनावश्यक कष्ट और अपनी खुद की जिंदगी के बारे में सोचिए.