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नोटबंदी@एक साल: आखिर खुल ही गया काली अर्थव्यवस्था का तिलस्मी दरवाजा

नोटबंदी पर भले ही अभी सवाल उठाए जा रहे हों लेकिन आने वाले दिनों में काला धन रखने वालों के खिलाफ यह एक बड़ी मुहिम मानी जाएगी

Bhuwan Bhaskar

आज से ठीक एक साल पहले रात के 8 बजे थे और पूरा देश इंतजार कर रहा था प्रधानमंत्री के संबोधन का, क्योंकि बताया गया था कि नरेंद्र मोदी कोई बड़ी घोषणा करने वाले हैं. उसी समय कैबिनेट की बैठक चल रही थी और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सामने आए. उस घोषणा के साथ, जिसने अगले कुछ हफ्तों में पूरे देश को और सही मायने में पूरे देश को हिलाकर रख दिया.

प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था में मौजूद 500 और 1000 रुपए के नोटों को उसी दिन यानी 8 नवंबर की रात 12 बजे से बेकार घोषित कर दिया और एक झटके में देश में चल रही मौद्रिक वैल्यू का 86 प्रतिशत खत्म हो गया.


विपक्ष ने दिया असफलता का तमगा

आजादी के बाद से किसी भी सरकार के किसी एक फैसले ने शायद ही देश के लोगों को इस हद तक प्रभावित किया होगा, जितना कि नोटबंदी ने किया. लेकिन आज जब इस फैसले को एक साल पूरा हो गया है. स्वाभाविक तौर पर यह आकलन करने का यह एक सही मौका है कि नोटबंदी अपने उद्देश्य में कितना सफल हुआ या फिर असफल रहा.

विपक्ष ने पिछले साल भर में इस एक फैसले को देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक करार देने का कोई मौका छोड़ा नहीं है. पूर्व प्रधानमंत्री और जानेमाने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने जहां इसे जीडीपी को 2 प्रतिशत नीचे धकेलने वाला घोषित कर दिया, वहीं आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इसके कारण पैदा हुई मुश्किलों को लंबी अवधि के फायदों के मुकाबले कहीं भारी बता दिया.

लगभग 99 प्रतिशत काला धन बैंकों में

सच क्या है, इसके सही विश्लेषण के लिए पहले नोटबंदी के उद्देश्यों को समझना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के वक्त जो उद्देश्य बताए थे, उनमें सबसे ऊपर समानांतर अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर काले धन को बाहर निकालना था.

साथ ही देश में प्रचलन में आ चुके बड़ी मात्रा में नकली नोटों को खत्म करना और आतंकवाद की फंडिंग को नेस्तानाबूत करना इस कदम के दूसरे कुछ प्रमुख उद्देश्य थे. लेकिन आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रचलन से वापस लिए गए 15.44 लाख करोड़ रुपए में से 15.28 लाख करोड़ रुपए वापस बैंकों में जमा हो गए. इन्हीं आंकड़ों के आधार पर विपक्ष का आरोप है कि नोटबंदी अपने तमाम उद्देश्यों में असफल रहा है.

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यह सही है कि खत्म किए गए लगभग सारे नोट बैंकिंग व्यवस्था में वापस आ गए और इसका मतलब यह भी है कि जिन लोगों ने नोटबंदी के पहले काले धन का अंबार खड़ा कर रखा था, लगभग उन सबने अपनी काली कमाई को सफेद करने में सफलता पा ली.

कम से कम आंकड़े तो यही कह रहे हैं. लेकिन ये तस्वीर का केवल एक पहलू है. तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि सरकार ने आरबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग के जरिए उस पूरे नेटवर्क का खाका तैयार कर लिया है, जिसके जरिए काले धन को सफेद बनाया जाता है.

काली अर्थव्यस्था का पूरा खाका तैयार

काले धन की अर्थव्यवस्था को जानने वाले हमेशा से जानते थे कि इसका बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट नेटवर्क के जरिए तैयार होता है. शेल कंपनियों के खेल से भी सब परिचित थे. लेकिन सरकार के पास अब तक इस नेटवर्क ट्रेल को साबित करने का कोई पुख्ता आधार नहीं था.

मोदी सरकार हालांकि काले धन को बैंकिंग व्यवस्था में वापस आने से रोकने में असफल रही, लेकिन इस क्रम में जो डाटा बैंक सरकार ने तैयार किया, उसकी प्रतिध्वनि आने वाले कई वर्षों तक सुनाई देती रहेगी.

ताजा आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के बाद की गतिविधियों के विश्लेषण से सरकार ने 2.24 लाख फर्जी कंपनियों का पता लगाया है और इनमें से ज्यादातर को बंद किया जा चुका है. करीब 35,000 ऐसी कंपनियों की पहचान कर ली गई है, जिनमें विमुद्रीकरण के बाद 17,000 करोड़ रुपये जमा किए और निकाले गए.

इनके अलावा 2 लाख ऐसे खातों की भी पहचान कर ली गई है, जिनमें 50 लाख या उससे ऊपर की रकम पुराने नोटों के तौर पर जमा की गई. इनमें से 1.3 लाख खाताधारकों को नोटिस भेजा जा चुका है और अब उनके जवाब पर आगे की कार्रवाई की तैयारी हो रही है.

इनके साथ ही आयकर विभाग ने 18 लाख ऐसे खातों की भी पहचान की है, जिनमें हुए लेन-देन पर संदेह होने का वैध कारण था. इन्हें नोटिस भेजे गए, जिनमें से 12 लाख ने अपनी सफाई पेश कर दी है.

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बाकी बचे 6 लाख खातों पर अब विभाग आगे की कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. जाहिर है कि समानांतर अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण के असर को पूरी तरह समझने के लिए अभी कुछ और महीनों या शायद वर्षों का इंतजार करना पड़ेगा.

काले धन के अलावा भी हुए कई फायदे

लेकिन काले धन पर सीधे प्रहार के अलावा एक अन्य मोर्चे पर भी नोटबंदी ने खासा असर डाला है और वह है देश में डिजिटल लेनदेन में हुई बढ़ोतरी. प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया अभियान को विमुद्रीकरण से खासी सहायता मिली है और साल दर साल आधार पर इसमें डिजिटल लेनदेन में करीब 41 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

अक्टूबर 2017 में यह रकम 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है. इसी संदर्भ में उस खबर का हवाला देना भी प्रासंगिक होगा, जिसमें बैंकों ने पिछले साल भर में लगभग 350 एटीएम बंद किए हैं. उससे पहले के 3 सालों में करीब 16 प्रतिशत से बढ़ रहे एटीएम की तुलना में होने वाली यह कमी डिजिटल इंडिया की शानदार सफलता का एक पुख्ता सबूत है. और इस सफलता में नोटबंदी के असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

करदाताओं की बढ़ी संख्या

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह भी बताया है कि चालू वित्त वर्ष में आयकर विभाग की सक्रियता के कारण लगभग 9.1 लाख नए करदाता जुड़े हैं. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री और नोटबंदी के समय मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री रहे जयंत सिन्हा ने एक अखबार में लिखे एक लेख में यह भी बताया है कि नोटबंदी के पहले जहां जीडीपी की 11.3 प्रतिशत नकदी चलन में थी, वहीं अब यह घटकर 9.7 प्रतिशत रह गई है.

इसका सीधा अर्थ यह है कि बैंकों के पास अब कंपनियों को कर्ज देने के लिए ज्यादा रकम मौजूद है, जिससे आने वाले दिनों में निवेश चक्र को दोबारा मजबूती देने में मदद मिल सकती है.

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इनके अलावा नकली नोटों की बरामदगी से जुड़े आंकड़े बता रहे हैं कि इस मोर्चे पर भी सरकार को अच्छी-खासी सफलता मिली है. 2015 में जहां कुल 44.2 करोड़ रुपए के नकली नोट बरामद हुए थे, वहीं 2016 में यह रकम बढ़कर 51.3 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी. लेकिन 6 नवंबर को जारी आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2016 से अब तक बरामद हुए नोटों की रकम घटकर केवल 16 करोड़ रह गई.

उसमें भी नकली नोटों की पहचान और धर-पकड़ से जुड़े अधिकारियों का यह कहना काफी अहम है कि पकड़े नोटों में नए नोटों के किसी भी सुरक्षा मानक की नकल नहीं की जा सकी है और ये नए नोटों की भौंडी नकल भर हैं.

आतंकवादी फंडिंग के लिहाज से हालांकि अभी कोई ठोस आंकड़े सामने नहीं आए हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में 75 प्रतिशत तक की कमी का आना एक सकारात्मक संकेत तो है ही.

काली अर्थव्यवस्था का तिलस्म तोड़ने की तैयारी

इन सब आंकड़ों और निष्कर्षों को अगर एक साथ पिरोया जाए तो जो कहानी निकलकर सामने आती है, उससे साफ है कि सरकार भले ही उस रूप में नोटबंदी को सफल न बना सकी हो, जैसा कि उसने उम्मीद थी.

लेकिन उसके बाद की मुस्तैदी और निगरानी तंत्र ने उसे काले धन की अर्थव्यवस्था का तिलस्म खोलने की वो चाभी दे दी है, जिससे आने वाले महीनों में कई अली बाबा और उनके कई सौ चोरों के चेहरे से नकाब हटेगा. न केवल इतना बल्कि भविष्य में समानांतर काली अर्थव्यवस्था को रोकने में भी सरकार ज्यादा प्रभावी तरीके से काम कर सकेगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)