नोटबंदी सफल रही या असफल यह कहना काफी मुश्किल है क्योंकि सरकार हर बार नोटबंदी के उद्देश्य को बदल-बदलकर बताती रही है. सरकार ने शुरू में यह कहा कि नोटबंदी इस वजह से की गई है क्योंकि लोगों ने कालाधन अपने घरों में छिपाकर रखा है. जब उन्होंने यह देखा कि पूरा पैसा वापस आने लगा है तो कहा गया कि यह डिजिटल और कैशलेस इकनॉमी को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया कदम है.
फिर बाद में यह कैशलेस की जगह लेस-कैश में बदल गया. यह भी कहा गया कि इससे पत्थरबाजी, आतंकी और नक्सली घटनाओं पर रोक लगेगी या जाली नोटों पर भी रोक लगेगी. इस वजह से नोटबंदी का असल मकसद क्या था, यह आज तक हमें ठीक से पता नहीं है.
नोटबंदी मनी-लॉन्ड्रिंग स्कीम हो गई है
अब अगर यह माना जाए कि जो काला धन लोगों के घरों में जमा था, उसे खत्म करना इसका मकसद था तो यह मकसद तो पूरा नहीं हुआ क्योंकि 500 और 1000 के सारे पुराने नोट बैंकों में वापस आ गए.
इसके दो अर्थ निकाले जा सकते हैं. पहला यह कि लोगों के पास घरों में कोई काला धन नहीं था, लेकिन इसकी संभावना काफी कम है. खुद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहा था कि दो-तिहाई हिस्सा वापस आएगा और एक-तिहाई हिस्सा नहीं आएगा लेकिन 99% करेंसी वापस आ गई. यानी लोगों ने अपने काले धन को किसी न किसी बहाने सफेद कर लिया. इस तरह तो नोटबंदी एक तरह से मनी-लॉन्ड्रिंग स्कीम हो गई.
अब अगर सरकार उन लोगों पर आने वाले दिनों में कार्रवाई करे जिन्होंने काफी मात्रा में पैसा जमा किया है तो कोई बात बने. लेकिन अगर सरकार का यही उद्देश्य था तो इसके लिए नोटबंदी करने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि सरकार की जो एजेंसियां हैं, उन्हें यह पता होता है कि कौन सही से टैक्स दे रहा है और कौन टैक्स की चोरी कर रहा है. सरकार यह भी कह रही है कि इनकम टैक्स देने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है.
यह इजाफा हर साल होता है और टैक्स देने वालों की संख्या में अगर बहुत अधिक बढ़ोत्तरी होती तो कोई बात होती और इसे नोटबंदी का असर कहा जा सकता था. वैसे भी सरकार द्वारा जो भी आंकड़े दिए जा रहे हैं उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. शेल कंपनियों पर भी कार्रवाई के लिए नोटबंदी की जरूरत नहीं थी.
न कैश हमेशा ब्लैक होता है और न डिजिटल व्हाइट
जो लोग यह कह रहे हैं कि नोटबंदी को डिजिटल इकनॉमी की तरफ बढे़ सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए, उन्हें एक बार ठहरकर सोचने की जरूरत है कि क्या वो जिस कैश का इस्तेमाल नोटबंदी से पहले कर रहे थे वो क्या ब्लैक मनी थी. कैश हमेशा ब्लैक मनी नहीं होता है. कई लोग ऐसे भी हैं जो अपना कालाधन छिपाने डिजिटल ट्रांजेक्शन के जरिए विदेशों में कालाधन जमा करते हैं.
यानी कैश हमेशा ब्लैक नहीं होता है और डिजिटल व्हाइट नहीं होता है. वैसे कैशलेस होने में कोई बुराई नहीं है लेकिन जिस तरह से लोगों को इसमें धकेला गया वो बहुत ही गलत तरीका था. इसमें लोगों को बहुत परेशानी हुई और कई लोगों की जान भी गई.
डिजिटल के कई लाभ भी हैं लेकिन लोगों ने इसकी जो कीमत चुकाई, उनका इन लाभों से भरपाई नहीं की जा सकती.
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कई लोग यह भी कह रहे हैं कि इससे छोटे दुकानदारों के लेन-देन भी अब पता किए जा सकते हैं, लेकिन इससे टैक्स में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. नोटबंदी के बाद कैश को काफी बदनाम किया गया, इससे डिजिटल सेक्टर को सबसे अधिक लाभ हुआ. यह भी कहा गया कि कैश के मुकाबले डिजिटल व्यवस्था सस्ती है, जो सही नहीं है. कैश लेन-देन में कहीं भी कोई ट्रांजेक्शन फीस नहीं है जबकि डिजिटल ट्रांजेक्शन में पर लेवल पर अलग-अलग फीस आपको देनी पड़ती है.
आंकड़े कहते हैं नोटबंदी की कहानी
वैसे भी हमारे देश की अधिकतर जनता खासकर गांव में रहने वाले लोगों के लिए डिजिटल ट्रांजेक्शन करना काफी कठिन काम है. वैसे भी डिजिटल लेन-देन के लिए हम जिन ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं वो हमारा पर्सनल डाटा और जानकारी ले रहे हैं. इनका इस्तेमाल वे कर रहे हैं, जिनपर अब सवाल खड़ा हो रहा है. डिजिटल ट्रांजेक्शन में अब धोखाधड़ी के भी मामले सामने आ रहे हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि नोटबंदी के वक्त सरकार ने जो बातें कहीं उसकी वजह से कई लोगों ने तब इसका समर्थन किया था. अब इनमें से कई लोग यह मान रहे हैं कि नोटबंदी के जितने लाभ बताए गए थे, उतने नहीं मिले. कई लोग आज भी इसका समर्थन कर रहे हैं लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं. इंडस्ट्री कह रही है कि सेल कम हो गए हैं और नौकरियां कम हुईं हैं.
कुल मिलाकर नोटबंदी का फैसला सैद्धांतिक रूप से ही गलत था, इस वजह से इसे असफल होना ही था. यह कहा जा सकता है कि यह कुछ वैसा ही है कि आपने एक चूहा पकड़ने के लिए पूरे घर को आग लगा दी.
(फ़र्स्टपोस्ट के लिए अंकिता विरमानी से बातचीत पर आधारित)
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