फ्लिपकार्ट ने स्टार्टअप की दुनिया में नया बेंचमार्क बनाया है. रिटेल मार्केटिंग की सबसे बड़ी अमेरिकी कपनी वॉलमार्ट ने इसे खरीदने के लिए 16 अरब रुपए की मोटी रकम लगा दी है. इसने भारतीय कंपनी के 77 प्रतिशत शेयर खरीदने की घोषणा कर दी है.
ई-कॉमर्स को बढ़ावा, रोजगार सृजन
फ्लिपकार्ट भले ही घाटे में हो लेकिन उसका मार्केट वैल्यूएशन 21 अरब डॉलर का माना गया और उसके आधार पर ही वॉलमार्ट ने यह भारी भरकम राशि देने की घोषणा कर दी है. यह न केवल फ्लिपकार्ट के लिए बल्कि देश के लिए भी बहुत बड़ा विदेशी निवेश है और इससे भारत में ई-कॉमर्स को बढ़ावा मिलेगा.
वॉलमार्ट के लिए भी यह भारत में नए सिरे से पैर रखने का बढ़िया मौका है और वह आने वाले समय में यहां के विशाल रिटेल मार्केट में अपनी घुसपैठ कर सकती है. तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह एक अच्छी खबर है. अगर वॉलमार्ट के सीईओ डो मैकमिलन की बातों पर यकीन किया जाए तो यह सौदा भारत में रोजगार बढ़ाने की दृष्टि से भी फायदेमंद होगा. इससे ई-कॉमर्स का भी विस्तार होगा और नए-नए अवसर सृजित होंगे.
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2025 तक 188 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है ई-कॉमर्स
इसका एक कारण यह भी है कि वॉलमार्ट को टक्कर देने के लिए वॉलमार्ट की प्रतिद्वंद्वी अमेरिकी कंपनी अमेजन कोई भी कसर नहीं छोड़ेगी. वह भारत में अरबों डॉलर लगाकर खड़ी है और आने वाले समय में वह और भी निवेश करेगी. भारत में ई-कॉमर्स हर साल 22 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है. इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता से इसमें तेजी आई है और उम्मीद है कि यह 30 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ने लगेगा और 2025 तक 188 अरब डॉलर तक जा पहुंचेगा. इससे देश में मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को मजबूती मिलेगी और उसमें गति आएगी जिसका सीधा असर रोजगार पर पड़ेगा.
2007 में सफल होने के लिए बना था फ्लिपकार्ट
सचिन और बिन्नी बंसल को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने एक विजन के जरिए देश में ऑनलाइन कारोबार को नई दिशा दी. आईआईटी दिल्ली के ये पूर्व छात्र पहले अमेरिकी ऑनलाइन कंपनी अमेजन में काम करते थे लेकिन उसे छोड़कर उन्होंने 2007 में फ्लिपकार्ट की स्थापना की जो अपने शुरुआती दिनों में किताब बेचने का काम करती थी. उन्होंने महज चार लाख रुपए से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी.
बेंगलुरू स्थित इस कंपनी ने जल्दी ही अपने पर फैला लिए. उसकी पहुंच बढ़ती गई और वह पूरी तरह से ऑनलाइन रिटेल में शीर्ष स्थान पर पहुंच गई. 2017 में उसका कुल कारोबार 19,854 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा और उसकी कुल कीमत 20 अरब डॉलर आंकी गई. इस समय हर दस मिनट में फ्लिपकार्ट का एक उत्पाद बिकता है. फ्लिपकार्ट में इस समय 30 हजार कर्मचारी काम करते हैं और यहां वेतनमान अन्य कंपनियों से कहीं बेहतर है. 2014 में कंपनी ने एक दिन में एक अरब रुपए की बिक्री करके एक कीर्तिमान ही नहीं स्थापित किया बल्कि भारत के रिटेल बाज़ार को मजबूती प्रदान कर दी.
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इन दोनों की उद्यमशीलता का नतीजा है कि 2014 में प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम मैगजीन ने उन्हें दुनिया के सबसे प्रभावशाली 100 लोगों की सूची में जगह दी और उनकी बेहद प्रशंसा की. इस सौदे के बाद सचिन बंसल ऑनलाइन रिटेल की इस अग्रणी कपनी का हिस्सा नहीं रहेंगे और बाहर से ही उसे अपना समर्थन देते रहेंगे. बिन्नी बंसल अपने पांच प्रतिशत शेयरों के साथ फ्लिपकार्ट समूह के सीईओ बने रहेंगे और कल्याण कृष्णमूर्ति सीईओ रह जाएंगे.
पहले भी हुए बड़े अधिग्रहण
फ्लिपकार्ट के इस अधिग्रहण के पहले भी कई भारतीय कंपनियों और उनके पॉपुलर प्रॉडक्ट को विदेशी कंपनियों ने मोटी रकम देकर खरीदा है. ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन ने 2007 में भारत के हचिसन एस्सार का 32 प्रतिशत हिस्सा 10 अरब डॉलर देकर खरीदा था. इसके साथ ही उसने भारत के तेजी से बढ़ते हुए टेलीकॉम बाजार में अपने पैर जमा लिए.
भारत में दवा बनाने वाली अग्रणी कंपनी रैनबैक्सी लैब को जापानी कंपनी दायिची सैंक्यो ने 2008 में 4.5 अरब डॉलर में खरीद लिया था. यह कंपनी जापान की दूसरी सबसे बड़ी दवा कंपनी थी.
भारतीय मूल के सबीर भाटिया को आज शायद लोग भूल गए हैं लेकिन उन्होंने दुनिया का पहला वेब आधारित मेल हॉटमेल बनाकर आईटी की दुनिया में भारत का परचम लहरा दिया था. माइक्रोसॉफ्ट ने उसे 1997 में 40 करोड़ डॉलर देकर खरीदा था और उसे एमएसएन का हिस्सा बना दिया था.
भारत में जिस कंपनी के ब्रांड ने सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा कमाई थी वह था रमेश चौहान के पार्ले का थम्स अप. जब अमेरिकी कंपनी कोका कोला आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत आई तो उसने यह ब्रांड खरीद लिया ताकि उसकी प्रतिस्पर्धा कोक से न हो. लेकिन थम्स अप इतना बड़ा ब्रांड बन चुका था कि उसे दबाना कोका कोला के लिए घाटे का सौदा होता और इसलिए उसने उसे बढ़ाया. आज भी थम्स अप का भारत के कोल्ड ड्रिंक बाज़ार के 33 प्रतिशत पर कब्जा है.
इसी तरह बच्चों के पसंदीदा ब्रांड अंकल चिप्स को भी पेप्सीको ने मोटी रकम देकर खरीद लिया था ताकि अपने ब्रांड लेज को आगे बढ़ा सके. 1998 तक अंकल चिप्स का भारत के इस बाज़ार के 71 प्रतिशत पर कब्जा था.
दैट्स द कूलेस्ट वन वाला विज्ञापन याद है? वह था भारतीय फ्रिज केल्विनेटर का और उस सफल उत्पाद को व्हर्लपूल ने दस करोड़ डॉलर देकर खरीद लिया था. यह उस समय भारत का सबसे लोकप्रिय फ्रिज था.
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इतना ही नहीं खुद फ्लिपकार्ट ने फैशन ऑनलाइन फर्म मिंत्रा और जबोंग का भी अधिग्रहण करके अपनी स्थिति सुदृढ़ की. इसके अलावा भी उसने कई और कंपनियों को खरीदा. इसके लिए उसे वेंचर फंड कंपनियों का साथ मिलता रहा.
उम्मीदें और भी हैं
फ्लिपकार्ट के इस अधिग्रहण से भारत के मुरझाए हुए स्टार्ट अप सेक्टर को भी नई प्रतिष्ठा मिली है और उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में उन्हें और भी फंडिंग मिलेगी. वेंचर फंड्स का उनकी ओर ध्यान खिंचेगा. पिछले दो वर्षों से उनकी संख्या घटती जा रही थी. अब और भी कई स्टार्ट अप्स की अच्छी कीमतों पर अधिग्रहण की खबरें मिल सकती हैं. विदेशी फंड मैनेजर भारत में पैसे तो लगा रहे थे लेकिन अब इससे उनमें एक उत्साह पैदा हो सकता है. इस सौदे से भारतीय उद्यमों का विश्वास बढ़ा है और वे आगे इस तरह के सौदों के बारे में सोच सकते हैं.
सबकी हो जाएगी बल्ले-बल्ले
हैरान करने वाले इस सौदे ने बंसल मित्रों को अकूत दौलत तो दी ही है, उनके सैकड़ों सहयोगियों को भी करोड़पति बनाने का रास्ता खोल दिया है. उनके शेयर खरीदने के लिए वॉलमार्ट ने 50 करोड़ डॉलर आवंटित किए हैं. इसके अलावा भारत सरकार को इस सौदे से बड़ी रकम कैपिटल गेन्स टैक्स के रूप में मिलेगी. हालांकि फ्लिपकार्ट का मुख्यालय सिंगापुर में है और वॉलमार्ट का फिर भी इस सौदे के लिए उन्हें भारतीय कानून के मुताबिक टैक्स देना ही होगा.
जापानी बैंक सॉफ्ट बैंक को भी इस सौदे से काफी लाभ होगा क्योंकि उसने भी फ्लिपकार्ट में 2.5 अरब डॉलर रखा है. उसके शेयर भी अच्छे दाम में वॉलमार्ट खरीद रहा है. इसके अलावा एस्सेल पार्टनर्स और टाइगर ग्लोबल जैसे निवेशकों को भी अच्छा रिटर्न मिल रहा है. सच तो यह है कि इस सौदे की लगभग आधी रकम इन निवेशकों के पास ही चली जाएगी.
फ्लिपकार्ट की यह दास्तान भारत के युवा और मेधावी उद्यमियों की है जो अपनी दूरदर्शिता और विजन से समय की नब्ज को पकड़ रहे हैं. आने वाले समय में यह और भी रंग लाएगा.