फ्लिपकार्ट और वॉलमार्ट की डील से भारत के ईकॉमर्स बिजनेस पर जरूर फर्क पड़ेगा लेकिन, जिसे सबसे ज्यादा फर्क पड़ सकता है वह एमेजॉन है. इस डील की खबर मिलने के बाद एमेजॉन यही सोच रही होगी कि काश अपने दो एंप्लॉयी को नौकरी छोड़ने से रोक लेती. सचिन और बिन्नी बंसल फ्लिपकार्ट शुरू करने से पहले एमेजॉन में ही काम करते थे. लेकिन एक दिन उन्हें यह लगा कि नौकरी करने में मजा नहीं आ रहा और कुछ अपना काम शुरू करना चाहिए. नतीजा फ्लिपकार्ट के तौर पर सबके सामने था.
इसे संयोग कहे या किस्मत लेकिन अब फ्लिपकार्ट ही वॉलमार्ट की सबसे बड़ी चुनौती बनने वाली है. वॉलमार्ट ने भारतीय ईकॉमर्स कंपनी में 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है और उसकी योजना दुनिया भर में एमेजॉन को टक्कर देगी. वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट के लिए 15 अरब डॉलर खर्च किए हैं. फ्लिपकार्ट के प्रमोटर अपनी कंपनी को बेचने की काफी समय से कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें कंपनी के लिए बेहतर वैल्यू नहीं मिल पा रही थी. हालांकि आखिरकार उनका इंतजार खत्म हुआ. इस डील के बाद फ्लिपकार्ट के एक प्रमोटर सचिन बंसल पूरी तरह कंपनी से बाहर निकल जाएंगे.सचिन फ्लिपकार्ट में अपनी 5.5 फीसदी हिस्सेदारी बेचकर बाहर निकल जाएंगे. जबकि बिन्नी बंसल फ्लिपकार्ट का संचालन करते रहेंगे.
कैसे शुरू हुई फ्लिपकार्ट की कहानी?
फ्लिपकार्ट शुरू करने का आइडिया सबसे पहले आईआईटी दिल्ली के दो ग्रेजुएट के दिमाग में आया. ये दो शख्स थे सचिन बंसल और बिन्नी बंसल. बंसल सरनेम से कंफ्यूज मत होइए. ये दोनों भाई नहीं थे. एक जैसे सरनेम वाले ये दो दोस्त थे जो एमेजॉन में काम करने के दौरान ही दोस्त बने थे.
फ्लिपकार्ट की शुरुआत अक्टूबर 2007 में बेंगलुरु से हुई थी. इसके एक साल बाद मुबंई और दिल्ली में भी इसका दफ्तर खुला. अगर आपको ऑनलाइन शॉपिंग करने का शौक रहा है तो याद कीजिए उस वक्त फ्लिपकार्ट की ऑनलाइन सेल में क्या मिलता था. वह फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक या दूसरे जरूरी सामान नहीं बेचती थी. फ्लिपकार्ट शुरुआत में सिर्फ एक ऑनलाइन बुक स्टोर थी. बेंगलुरु के दो कमरों के फ्लैट से फ्लिपकार्ट की शुरुआत हुई थी. आज इसका ऑफिस 8.3 लाख वर्गफुट में फैला है. सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने इस कंपनी की शुरुआत सिर्फ 2-2 लाख रुपए की जमा पूंजी से की थी.
सबसे रणनीतिक बदलाव?
कंपनी के लिए 2010 का साल सबसे ज्यादा अहम था. अब तक बंसल पार्टनर्स को यह समझ आ गया था कि सिर्फ किताबें बेचने से उनका काम नहीं चलेगा. ऐसा नहीं था कि शुरुआतr अनुभव बहुत अच्छा रहा हो. अपनी पहली सेल के लिए उन्हें 10 दिनों तक इंतजार करना पड़ा. तब जाकर उन्हें अपना पहला ग्राहक मिला था. उन्हें अपना पहला ऑर्डर आंध्रप्रदेश से मिला था.
ऑनलाइन की बढ़ती पैठ की वजह से किताबों के साथ लोगों का रिश्ता कितना कम हो चुका था, यह बंसल पार्टनर्स के फैसले में झलकता है. 2010 में दोनों दोस्तों ने इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल फोन भी बेचने का फैसला किया. इसका फायदा भी उन्हें हुआ क्योंकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में इनकी बड़ी हिस्सेदारी है. ईटी की खबर के मुताबिक, सचिन बंसल फ्लिपकार्ट को लेकर वॉलमार्ट की रणनीतियों से सहमत नहीं थे. लिहाजा उन्होंने अपनी हिस्सेदारी बेचकर कंपनी से बाहर निकलने का फैसला कर लिया.
टैक्स का टंटा
सीएनबीसी-आवाज़ के मुताबिक, वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट की यह डील टैक्स के पचड़े में फंस सकती है. खबर यह भी है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने ईमेल भेजकर कहा है कि अगर संपत्ति भारत में है तो टैक्स की देनदारी बनती है. यह मामला बिल्कुल वोडाफोन और हचिसन एस्सार की डील की तरह है. इस डील में वोडाफोन ने टैक्स नहीं चुकाया था, जिसके बाद आईटी विभाग के साथ लंबी कानूनी लड़ाई चलती रही. रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स नियम के मुताबिक, कोई भी संपत्ति अगर विदेश में रजिस्टर है या कामकाज करती है तो भी उसे भारतीय कंपनी माना जाएगा अगर उसकी संपत्ति भारत में स्थित है. लिहाजा इस तरह की डील में कंपनी को टैक्स चुकाना होगा.
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