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Budget 2019: आम चुनाव से पहले वोट बटोरने का पैंतरा या कुछ और!

Budget 2019: मौजूदा सरकार अगर बजट में कुछ वादे करती है और आम चुनाव के कारण नई सरकार बन जाती है तो पुरानी सरकार के जरिए किए वादे भी ठंडे बस्ते में जा सकते हैं

Himanshu Kothari

एक बार फिर बजट का मौसम आ चुका है. बीजेपी सरकार के इस कार्यकाल का ये आखिरी बजट है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के तेवर देखते हुए माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी बजट के जरिए भी आम जनता में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में पीछे नहीं हटेगी.

पंरपरा ये कहती है कि आम चुनाव से पहले मौजूदा सरकार के जरिए अंतरिम बजट पेश किया जाता है लेकिन खबरें हैं कि मोदी सरकार इस बार भी पूर्ण बजट पेश करने वाली है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के इस बजट के पेश होने से पहले ही विपक्ष बौखलाया हुआ है. बजट को लेकर कई तरह के सवाल विपक्ष पहले ही खड़े किए जा रहा है. हर बार होता ये था कि बजट पेश होने के बाद उस पर टिप्पणियों का दौर शुरू होता था लेकिन इस बार मामला थोड़ा बदल चुका है. बजट पेश होने से पहले ही विपक्ष केंद्र सरकार को घेरे हुए है. माजरा जो भी हो लेकिन इस बार के बजट का मोदी सरकार, विपक्ष और आम जनता पर क्या असर पड़ेगा, इसकी पड़ताल कर ली जानी चाहिए...


मोदी सरकार हर जोर आजमाइश में जुटी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी अपने पांच साल के कार्यकाल का आखिरी बजट 1 फरवरी 2019 को पेश करने वाली हैं. केंद्र में सरकार बनाने के बाद पीएम मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बूते बीजेपी एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है, जो हर मौके का फायदा उठाना बखूबी जानती है. अब बजट 2019 को इस सरकार के आखिरी ओवर के तौर पर देखा जा रहा है. इस आखिरी ओवर में मोदी सरकार जितने ज्यादा रन स्कोर कर ले उतने ही कम है. अगर एक सीधा-सीधा अनुमान लगाया जाए तो मोदी सरकार की कोशिश रहेगी कि इस बार के बजट में वो ऐसी घोषणाएं करें जिससे आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें फायदा हो और घोषणाएं 'वोट' की शक्ल ले ले.

ऐसा तभी मुमकिन है जब बजट में हर तबके, हर वर्ग को ध्यान में रखा जाए. जीएसटी से कुछ कारोबारी वर्ग के लोग अभी-भी नाराज है, ऐसे में जीएसटी स्लैब में कमी लाने का मास्टरस्ट्रोक बजट में खेला जा सकता है. मोदी सरकार में किसानों के जरिए कई बार विरोध प्रदर्शनों को अंजाम दिया जा चुका है. ऐसे में किसानों को राहत की सौगात देना भी मोदी सरकार के लिए जरूरी हो जाता है. किसानों की आय दोगुनी करने की बात एक बार फिर मोदी सरकार के जरिए इस बार बजट के माध्यम से पुख्ता तरीके से रखी जा सकती है.

वहीं किसानों के लिए कुछ नई स्कीम या राहत पैकेज देने की घोषणा भी की जा सकती है. बजट के जरिए मध्यम वर्ग के लोगों को इनकम टैक्स में छूट देकर बीजेपी अपने कोर वोट बैंक को साधने की कोशिश भी करती दिखाई दे सकती है. बेरोजगारी काफी वक्त से भारत में एक समस्या के तौर पर देखी जा रही है. बेरोजगारों के लिए सरकार इस बजट में अगर किसी तरह की कोई घोषणा या कोई आश्वासन दे दे तो, इसमें भी किसी तरह का कोई संदेह नहीं होगा.

गोल्ड पॉलिसी को लेकर काफी समय से चर्चाएं हो रही है, सरकार के जरिए बजट में इस पॉलिसी का ऐलान भी संभव है. जो सीधे तरीके से वोट जुटाने में मददगार साबित हो सकता है. वहीं अलग-अलग इंडस्ट्री और सेक्टर के लिए मोदी सरकार राहत का ऐलान कर सकती है. ऐसे में ये कहना भी गलत नहीं होगा कि मोदी सरकार का ये बजट पूरी तरह से लोकसभा चुनाव 2019 पर केंद्रित रह सकता है.

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विपक्ष को लग सकता है झटका!

ऐसा माना जा रहा है कि मोदी सरकार का ये बजट लोकसभा चुनाव 2019 पर केंद्रित होगा, जिसके चलते कई लोकलुभावने ऐलान इस बजट के माध्यम से किए जा सकते हैं. ऐसे में विपक्ष को डर है कि कहीं इस बजट में होने वाली घोषणाओं के कारण वोट बीजेपी की तरफ ही न शिफ्ट हो जाए. अगर बजट के जरिए बीजेपी जनता के वोटों में सेंध लगाने में कामयाब हो जाती है तो बेशक लोकसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी जीत दर्ज कर फिर से पांच साल के लिए सत्ता में काबिज हो सकती है. वहीं विपक्ष मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता. इसके लिए महागठबंधन की भी तैयारी की जा रही है. बजट के जरिए इस महागठबंधन या विपक्ष को लोकसभा चुनाव में किसी तरह का कोई नुकसान न उठाना पड़े, इसके लिए बजट पेश होने से पहले ही बजट पर विपक्ष हमलावर है. कांग्रेस ने तो बजट पेश होने से पहले ही सरकार की मंशा पर संदेह जाहिर कर दिया और साथ ही कह दिया कि सरकार की मंशा संदिग्ध है. कांग्रेस ने बजट पेश होने से पहले ही मोदी सरकार को घेरते हुए कहा है कि पहले किए गए झूठे वादों के औंधें मुंह गिरने के बाद इस बजट के जरिए सरकार जनता को गुमराह करने के लिए बड़ी घोषणाएं करना चाहती है. जो संविधान और संसदीय मर्यादाओं के खिलाफ हैं. हालांकि बजट का कितना असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा और विपक्ष को इससे कितना नफा-नुकसान होगा, ये तो आने वाले दिनों में साफ होता ही जाएगा.

जनता को क्या मिलेगा?

अब बात देश की जनता की कर ली जाए, जिसके लिए बजट खासतौर पर तैयार किया जाता है. बजट के जरिए देश के पूरे साल भर के खर्चों की एक रूपरेखा तय कर दी जाती है. वहीं कुछ नई स्कीम या घोषणाएं भी की जाती है. जिससे देश की जनता को फायदा मिले. हालांकि ऐसा माना जाता है कि केंद्र सरकार के जरिए पांच साल के कार्यकाल में पांच बजट पेश करने के बाद आखिरी साल में सरकार केवल 'वोट ऑन अकाउंट' पेश कर सकती है. आम चुनाव से पहले देश के खर्चों को नई सरकार बनने तक चलाने के लिए जो बजट पेश किया जाता है, उसे वोट ऑन अकाउंट (अंतरिम बजट/मिनी बजट) कहते हैं. वहीं आम चुनाव के कारण मौजूदा सरकार के पास बजट में ऐलान की गई घोषणाओं को पूरी तरह से लागू करने के लिए वक्त नहीं बचता है और नई सरकार आने के बाद नया बजट नए सिरे से पेश किया जाता है. ताकि बजट में किए गए ऐलानों को बेहतर तरीके से अमलीजामा पहनाया जा सके.

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एक फरवरी को बजट पेश होना है और बजट पेश होने के करीब 3 महीनों में ही लोकसभा चुनाव हो जाने हैं. वहीं बजट के 75 दिन के अंदर वित्त विधेयक पारित करना होता है. ऐसे में सरकार इस बार 'वोट ऑन अकाउंट' की बजाय पूर्ण बजट पेश करती है तो जनता को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि लोसकभा चुनाव के बाद अगर सरकार बदल जाती है तो बेशक नई सरकार के जरिए नया बजट पेश किया जाएगा. तब इस बात की संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाती है कि नई सरकार नए बजट में अपने मुताबिक नई घोषणाएं और नई स्कीम लॉन्च कर दे.

ऐसे में पुराने बजट का कोई महत्व नहीं रह जाएगा. मौजूदा सरकार अगर बजट में कुछ वादे करती है और आम चुनाव के कारण नई सरकार बन जाती है तो पुरानी सरकार के जरिए किए वादे भी ठंडे बस्ते में जा सकते हैं. ऐसे में जनता की उम्मीदों पर भी तगड़ा झटका लग सकता है और सही मायनों में माने तो लोकसभा चुनाव से पहले पेश होने वाला बजट जनता के वोट बटोरना का पैंतरा मात्र भी साबित हो सकता है. वहीं अगर मौजूदा सरकार की वापसी होती है तो बजट में किए गए वादों और घोषणाओं पर कितना फोकस किया जाता है ये देखना भी दिलचस्प रहेगा.