चीन के शिंजियांग प्रांत से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां 200 से ज्यादा मुस्लिम व्यापारियों की पत्नियां गायब हो गई हैं. जिन व्यापारियों ने इस बात की शिकायत की है, उनसे कहा गया है कि उनकी पत्नियों को एजुकेशन सेंटर ले जाया गया है.
टीओआई के मुताबित चौधरी जावेद अट्टा की पत्नी भी एक साल पहले गायब हो गई थीं और अब उन्हें अपना वीजा रिन्यू करवाने के लिए दोबारा पाकिस्तान आना पड़ा. अट्टा ने कहा, 'मेरी पत्नी ने कहा था, जैसे ही आप जाएंगे, वे मुझे कैंप में ले जाएंगे और फिर मैं कभी वापस नहीं आऊंगी.'
अट्टा की पत्नी अमीना अगस्त 2017 से लापता हैं. अट्टा का कहना है कि शिजियांग में 200 से ज्यादा मुस्लिमों की पत्नियां लापता हैं. इस बात की जानकारी जब उन्होंने चीनी प्रशासन से की तो उन्होंने कहा कि व्यापारियों की पत्नियों को एजुकेशन सेंटर ले जाया गया है.
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चीन पर पहले भी कई बार यह आरोप लगते रहे हैं कि उसने उइगरों को नजरबंद करके उनकी धार्मिक मान्यताओं को नष्ट कर दिया है और उन्हें अलग तरह की शिक्षा दी जा रही है.
कहा जा रहा है कि सरकार ने यह कदम हिंसा और दंगों की वजह से उठाया है. वहीं अट्टा का कहना है कि उनके बच्चों का पासपोर्ट चीनी अधिकारियों ने जब्त कर लिया है इसलिए उन्हें अपने बच्चों को भी छोड़ना पड़ा. अट्टा बताते हैं कि बीते 9 महीनों से उन्होंने अपने बच्चों को नहीं देखा है.
गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन ने संसदीय सुनवाई के दौरान अपने देश के सांसदों को बताया था कि चीन के नजरबंदी शिविरों में करीब आठ से बीस लाख धार्मिक अल्पसंख्यक बंद हैं. संसदीय सुनवाई के दौरान 'ब्यूरो ऑफ ह्यूमन राइट डेमोक्रेसी एंड लेबर' में उप सहायक विदेश मंत्री स्कॉट बुस्बी ने आरोप लगाया था कि चीन दुनिया के अन्य तानाशाह शासनों के ऐसे दमनात्मक कदमों का समर्थन कर रहा है.
उन्होंने कहा था, 'अमेरिकी सरकार का आकलन है कि अप्रैल, 2017 से चीनी अधिकारियों ने उइगुर, जातीय कजाक और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कम से कम आठ लाख से बीस लाख सदस्यों को नजरबंदी शिविरों में अनिश्चितकाल के लिए बंद कर रखा है.'
सीनेट की विदेश मामलों की उपसमिति के समक्ष बुस्बी ने बताया था कि सूचनाओं के अनुसार हिरासत में रखे गए ज्यादातर लोगों के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया है और उनके परिजनों को उनके ठिकानों के बारे में बेहद कम या कोई जानकारी नहीं है.
चीनी अधिकारी इसे व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र बुलाते हैं
पहले-पहल तो चीन ने ऐसे शिविरों के अस्तित्व से इंकार किया था लेकिन इस संबंध में सार्वजनिक रूप से खबरें आने के बाद चीनी अधिकारी अब बता रहे हैं कि ये केंद्र 'व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र' हैं. बुस्बी ने कहा था, हालांकि यह तथ्य गलत प्रतीत होता है क्योंकि उन शिविरों में कई लोकप्रिय उइगुर बुद्धिजीवी और सेवानिवृत्त पेशेवर भी शामिल हैं.
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इन केंद्रो से सुरक्षित बाहर निकले कुछ लोगों ने वहां के बुरे हालात के बारे में बताया है. उदाहरण के लिए उन शिविरों में नमाज सहित अन्य धार्मिक रीतियों पर प्रतिबंध है. बुस्बी ने कहा कि शिविरों के बाहर भी हालात कुछ ज्यादा अच्छे नहीं हैं. परिवारों को मजबूर किया जा रहा है कि वे चीनी अधिकारियों को लंबे समय तक अपने घरों में रहने दें. सशस्त्र पुलिस आने-जाने के रास्तों पर नजर रख रही है. हजारों मस्जिद तोड़ दी गई हैं, जबकि कुछ अन्य कम्युनिस्ट पार्टी के दुष्प्रचार का केंद्र बन गई हैं.
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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