अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 दिसंबर को अचानक घोषणा की कि वो पिछले नौ सालों से सीरिया में इस्लामिक स्टेट से लड़ रही अमेरिकी सेना को वो वापस बुला रहे हैं, तो पूरी दुनिया सकते में रह गई थी. इसका मतलब है कि वाइट हाउस ने इस्लामिक स्टेट पर जीत की घोषणा कर दी है. वैसे तो 2017 में ही अमेरिका ने सीरिया से आईएस के लगभग सफाए की घोषणा कर दी थी लेकिन अब अमेरिका का वहां से जाना आधिकारिक हो गया है. अब इसका मतलब है कि अब सीरिया के पूरे मसले पर तुर्की का दखल होगा और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोवान मिडिल ईस्ट में और बड़ी शख्सियत बन जाएंगे.
एक तो अर्दोवान ने ट्रंप को इतने बड़े फैसले के लिए मना लिया है कि वो अपनी सेना को वापस बुला लें और दूसरे अब जब ट्रंप ने सीरिया को तुर्की के भरोसे छोड़ दिया है, तो सब कुछ उनके हिसाब से होगा.
टाइम की खबर के मुताबिक, ट्रंप की अर्दोवान से 14 दिसंबर को ही फोन पर लंबी बातचीत हुई थी, जिसके बाद ट्रंप ने अपने इनर सर्कल में सीरिया से सेना को वापस बुलाने की संभावना पर बात की थी, जिसके बाद घोषणा की तैयारियां शुरू कर दी गई थीं.
ट्रंप के इस फैसले के बाद उनके शासन अब तक संतुलन बनाकर चल रहे उनके रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे हंगामा मच गया. साथ ही सांसद ब्रेट मैक्गर्ग ने भी इसी मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था. जिम मैटिस का कार्यकाल यूं तो फरवरी में खत्म होना था लेकिन सीरिया से अमेरिका के जाने के फैसले पर उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया, जिसे ट्रंप ने स्वीकार कर लिया. ट्रंप ने फिलहाल पैट्रिक शनैहन को एक्टिंग डिफेंस मिनिस्टर नियुक्त किया है.
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सीरिया में आईएसआईएस के खिलाफ हुए ग्लोबल कॉलिशन के स्पेशल इन्वॉए ब्रेट मैक्गर्क ने भी इस घोषणा के बाद इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने अपने इस्तीफे के कुछ दिन पहले ही सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि आईएस को हराने में अभी बहुत साल लगेंगे.
सीरिया में अब कौन होगा बड़ा खिलाड़ी?
सीरिया में आईएस के खिलाफ लड़ाई कुर्द लड़ाकों (मिलिटेंट संगठन YPG) ने अमेरिका के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है. लेकिन अब जब लड़ाई पूरी तरह खत्म भी नहीं हुई है, तभी अमेरिका कुर्द लड़ाकों को अकेले छोड़कर जा रहा है. तो क्या अब मिडिल ईस्ट में दोबारा कोई अमेरिका में भरोसा कर पाएगा? कुर्दों के लिए ये बहुत ही मुश्किल वक्त होगा क्योंकि ट्रंप ने बोला है कि यहां आईएस की जो भी बची-खुची समस्या है, उससे तुर्की निपट लेगा लेकिन तुर्की की नजर कुर्दों पर भी है. तुर्की यहां की आंतरिक समस्याओं के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराता रहा है और उनके खिलाफ वो बहुत नरम कदम नहीं उठाएगा.
मिडिल ईस्ट में तुर्की के राष्ट्रपति सबसे बड़े खिलाड़ी के रूप में नजर आ रहे हैं. एक तरफ वो मिडिल ईस्ट में बड़े फैसलों की कहानी लिख रहे हैं, दूसरे उनका अमेरिका की विदेशी नीतियों में दखल हो गया है.
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इसके अलावा रूस और ईरान भी यहां बड़ी भूमिका रखते हैं. सीरिया में बशर अल असद की सरकार को रूस और ईरान का समर्थन हासिल है. ये तीनों ही देश सीरिया को लेकर एक साथ रणनीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन तुर्की इन दोनों पर ज्यादा भरोसा नहीं करता, ऐसे में अभी सबकुछ बहुत अनिश्चित है.
उधर सीरिया के राष्ट्रपति के बशर अल असद के पास अभी दो साल और हैं. 2021 में वहां राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं, तब तक वो अपनी सत्ता को और मजबूत करने और अपनी मुट्ठी शक्तिशाली करने की पूरी कोशिश करेंगे. रूस और ईरान से उन्हें सैन्य सहायता मिली ही हुई है.
अब आगे क्या होगा?
अब जब घोषणा कर दी गई है, तो सबसे बड़ी चुनौती है अपनी सेना को वापस बुलाना. खबर है कि अमेरिकी जवानों को वहां से अगले 30 दिनों में वापस लौटना होगा. पेंटागन अभी कई सवालों के जवाब ढूंढ रहा है, जैसे- जवान कैसे वापस आएंगे, क्या सीरिया में बनाए गए मिलिट्री बेसेस से मिलिट्री इक्विपमेंट वापस लाए जाएंगे या उन्हें वहीं नष्ट किया जाएगा? और सबसे बड़ी बात कुर्द लड़ाकों और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई के लिए बनाए गए ग्लोबल कॉलिशन का क्या?
अमेरिका में अब भी इस फैसले का विरोध हो रहा है. कई रिपब्लिक और डेमोक्रेट सांसदों ने इस फैसले को आत्मघाती बताया है. इस फैसले के बाद वो वक्त याद किया जा रहा है, जब अमेरिका ने इराक को छोड़ा था और उसके बाद के सालों में आईएस को मजबूत बनने का मौका मिला. डर है कि कहीं अमेरिका के इस पुलआउट से अपना 99 प्रतिशत कब्जे का क्षेत्र खो चुका आईएस कहीं फिर से मजबूत न हो जाए. हालांकि, आधिकारिक घोषणा तो हो गई है, लेकिन फिर भी जितनी तेज बहस है, उसके हिसाब से कुछ भी हो सकता है.
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यूं तो कहा जा रहा है कि आईएस यहां लगभग खत्म ही हो गया है, लेकिन फिर भी कुछ भीतरी इलाकों में आईएस की मौजूदगी अभी भी बनी हुई है और रक्का जैसी जगहों पर भी रह-रहकर आईएस की चेतावनियां या स्लोगन लिखे दिख जाते हैं. पेंटागन ने अगस्त में एक इंस्पेक्टर जनरल रिपोर्ट छापी थी, जिसमें कहा गया था कि अब भी सीरिया और इराक में कम से कम 30,000 के आसपास आतंकी बचे हैं. वहीं यूनाइटेड नेशन्स रिपोर्ट ने भी लगभग इतने ही आंकड़ें ही बताए हैं.
ऐसे में आईएस के दोबारा मजबूत होने का डर तो बना रहेगा.
सीरिया में अमेरिका का क्या टाइमलाइन है?
ऐसे में जब अमेरिका सीरिया से वापस जाने की घोषणा कर चुका है, तो एक बार नजर सीरिया में उसके इतिहास पर. आखिर दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका कैसे शामिल हुआ और इन पिछले चार सालों में वहां कैसी स्थितियां बनी हैं, कितनी जंग जीत ली गई है और कितनी जंग बाकी है-
- 2011 में अमेरिका के इराक से जाने के बाद इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट का संगठन शुरू हुआ. अगले दो सालों में ये दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन बन गया. आईएस ने इराक और सीरिया में अच्छा-खासा मिलिट्री संगठन तैयार कर लिया था.
- 2014 के सितंबर महीने में तत्कालीन बराक ओबामा की सरकार ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई शुरू की. अमेरिका ने पहले आईएस के खिलाफ हवाई हमलों की रणनीति अपनाई.
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- 2015 के आखिरी महीनों में सीरिया में अमेरिकी सेना का पहला दस्ता सीरिया में दाखिल हुआ. उस ट्रूप में लगभग 50 अमेरिकी जवान थे. लेकिन अब कैंपेन के आखिरी वक्त में वहां 2,000 से ज्यादा सैनिक हैं.
- अमेरिकी सेना ने यहां सीरिया के कुर्दों और अरब लड़ाकों को रिक्रूट किया, उन्हें एडवांस्ड लड़ाई की ट्रेनिंग दी, सीरिया के डेमोक्रेटिक फोर्स को तेज किया और आईएस को उसके कब्जे वाले इलाकों से बाहर खदेड़ दिया.
- तब से अब तक अमेरिकी सेना सीरिया में 17,000 से ज्यादा लोकेशनों पर एयरस्ट्राइक लॉन्च कर चुकी है.
- अब तक सेना हजारों आईएस आतंकियों को मार चुकी है या पकड़ चुकी है. लेकिन रिपोर्ट्स हैं कि अब भी वहां कुछ हजार आतंकी बचे हुए हैं और दूरस्थ इलाकों में छुपे हुए हैं.
- अमेरिका के इस लड़ाई में शामिल होने के एक साल बाद रूस भी सीरिया के समर्थन में यहां आ गया. ईरान भी अप्रत्यक्ष रूप से इस इलाके में अपनी मौजूदगी बनाए हुए है और सीरियाई सेना को सैन्य हथियारों की सप्लाई करता है. तुर्की सेना भी उत्तरी सीरिया में एक्टिव है और कुर्दों लड़ाकों के सफाए की मंशा रखता है.
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