एक्सॉन मोबिल के मुख्य कार्यकारी रेक्स टिलरसन कोई एक दशक पहले जब पहली बार गोवा आए थे, तब उनके विशालकाय विमान पर एवियां मिनरल वाटर की पूरी खेप रखी थी.
ऐसा उनके दफ्तर के कहने पर किया गया था. उनके दफ्तर की सख्त हिदायत थी कि भारत दौरे पर केवल अपने साथ लाया पानी ही पियें.
लेकिन टिलरसन जो अब नए विदेश मंत्री नामित किए गए हैं और जिनका चुनाव अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया है, उन्होंने तब भी वैसी कोई अकड़ नहीं दिखाई जैसा आमतौर पर उनकी हैसियत के लोग किया करते हैं.
उन्होंने ताज एग्जोटिका होटल के एक बटलर को बेहद शालीनता से एवियां की बोतलें टेबल से हटाने को कहीं.
इसके बाद वे डाइनिंग हॉल के दूसरी छोर पर रखे हिमालया मिनरल वॉटर की बोतल लेने गए ताकि वे वहां मौजूद भारतीयों के साथ आत्मीय रिश्ता बना सके.
पास ही बैठे सऊदी एरामको तेल कंपनी के प्रमुख अब्दुल्ला जुमा ने टिलरसन की इस पसंद पर मुस्कुराते हुए इसे एक शालीन व्यवहार बताया. क्योंकि एक्सॉन मोबिल के प्रमुख कभी कंपनी की सलाह या प्रोटोकॉल के खिलाफ नहीं जाते हैं.
वोगा में नॉर्वे की एक मीडिया कंपनी द्वारा आयोजित की गई वर्ल्ड ऑयल एंड गैस एसेंबली में टिलरसन के भाषण को काफी सराहा गया था.
ये सम्मेलन तेल एवं गैस विषय पर एशिया का सबसे महत्वपूर्ण कॉफ्रेंस माना जाता है. इस कॉफ्रेंस का आयोजन एक नार्वे की एक मीडिया संगठन करती है.
इस सम्मेलन में टिलरसन ने जो भाषण दिया था, उसमें उन्होंने जब भारत के संकटग्रस्त हाइड्रोकार्बन सेक्टर की चर्चा वैश्विक संदर्भ में की तो वहां मौजूद लोगों को सहज विश्वास नहीं हुआ.
वहां मौजूद भारतीय तेल और गैस कंपनियों के प्रमुखों ने टिलरसन के भाषण को आंखें खोलने वाला बताया.
वोगा के संयोजक और प्रमुख ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा के अनुसार, 'उन्होंने भारतीय कंपनियों को भारत में अवसरों को देश के भीतर ढूंढने के बजाय बेहिचक दुनिया भर में तेल और गैस ढूंढने की सलाह दी थी.'
भाषण खत्म होते-होते हॉल में मौजूद लोग टिलरसन के सम्मोहन में बंध चुके थे. एक आयोजक ने बताया कि टिलरसन का भाषण खत्म होने के बाद लोग तकरीबन तीन मिनट तक खड़े होकर उनके सम्मान में ताली बजाते रहे.
सम्मेलन के एक अन्य वक्ता ने टिलरसन से पूछा कि क्या वे दूसरे अमीर अमेरिकियों की तरह महल जैसे घरों में रहते हैं?
रैंच में रहते हैं टिलरसन
उन्होंने ये सवाल इसलिए किया क्योंकि उन्होंने अमेरिकी पत्रिकाओं में ये लिखा जाता रहा था कि टिलरसन के काम के महत्व को देखते हुए, टेक्सस के इर्विंग में, एक्सॉन मोबिल के मुख्यालय में उनके विशाल डेस्क को ‘गॉड्स ओन पॉड’ कहा जाता है.
लेकिन टिलरसन उनके इस सवाल पर हंस पड़े. उन्होंने बताया कि वे अपने परिवार के साथ डलस के बाहरी इलाके में एक रैंच में रहते हैं, बिल्कुल ग्रामीण परिवेश में.
टिलरसन ने कहा, 'मैं लकड़ियों से बने एक घर में प्रकृति के करीब रहता हूं, किसी महल में नहीं. यह मेरा स्टाइल है.'
उस समय तक वो अपने स्टाफ को बता चुके थे कि उन्हें गोवा और उसके समुद्र तट कितना भा रहे हैं. दुनिया के सबसे ताकतवर अधिकारी को ताज होटल प्रभावित नहीं कर पाया.
हालांकि, उन्होंने आगरा के ताजमहल तथा रणथंभौर के बाघ अभ्यारण्य और जोधपुर एवं जयपुर जैसे राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जरूर जानकारी हासिल की.
उनसे निजी तौर पर बातचीत करने वाले एक भारतीय तेल कंपनी के पूर्व अधिकारी ने बताया, 'उन्हें भारत एक दिलचस्प देश लगा और मुस्कुराते हुए वहां मौजूद भारतीयों से कहा कि यदि इस महान देश को वे वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली देखना चाहते हैं तो एकजुट होकर इसके लिए कोशिश करें.'
मित्र और शत्रु दोनों ही टिलरसन को ‘मिस्टर पर्फेक्शनिस्ट’ के रूप में याद करते हैं. एक बार की घटना का जिक्र करते हुए तनेजा बताते हैं कि एक बार टिलरसन के एक सहायक ने उनकी बात पूरी होने से पहले ही एक स्लाइड चला दी थी और कैसे टिलरसन के घूरकर देखने मात्र से ही उस सहायक की घिग्घी बंध गई थी.
एक वाक्या उस कॉफ्रेंस के शुरू होने से पहले का है. टिलरसन के आने से पहले उनका स्टाफ जिनमें तीन अग्रिम दस्ता शामिल था...उन्होंने गोवा में मिलने वाली सुविधाओं और सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना कर टिलरसन को बताया कि उनका भारत दौरा छोटा किया जा सकता है.
ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय नौसेना के पास उनके विशाल जहाज को लैंड कराने की जरूरी सुविधाएं नहीं हैं.
विजय माल्या ने जहाज के लिए जगह नहीं दी
दिलचस्प बात यह है कि विमान के लिए मिलने वाली इकलौती जगह शराब व्यापारी विजय माल्या ने ले ली थी जिससे वो पीछे हटने को तैयार नहीं थे.अंत में टिलरसन के विमान को पार्किंग के लिए मुंबई एयरपोर्ट भेजना पड़ा.
यह नियमों के बिल्कुल उल्टा था क्योंकि कंपनी नियमों के मुताबिक एक्सॉन मोबिल का बॉस उस शहर में नहीं रह सकता जहां उसका जहाज पार्क नहीं किया गया हो.
गोवा में लैंड करने से पहले टिलरसन दो घंटे के लिए नई दिल्ली में रुके थे जहां उन्होंने तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री राम नाईक से मुलाकात की थी. उस मुलाकात का ब्योरा न तो नाईक के दफ्तर ने जाहिर किया है न ही एक्सॉन मोबिल की मीडिया टीम ने.
रूस में एक्सॉन के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में तैनात होने के कारण उनकी वहां की सरकार के साथ निकट संबंध थे. इसी कारण टिलरसन ने सरकारी कंपनी ओएनजीसी-विदेश और रूस की राष्ट्रीय तेल कंपनी रोजनेफ्ट के बीच सौदा कराने में भी अहम् भूमिका निभाई थी.
इस सौदे के तहत भारतीय कंपनी ने उत्तरी प्रशांत की सर्द गहराइयों में स्थित सखालिन-1 प्रोजेक्ट में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की थी. साल 2001 में हुए इस सौदे की अनुमानित लागत उस समय 1.7 अरब डॉलर थी.
लेकिन यह सौदा होना उतना आसान नहीं था. बहुत सारे लोगों ने प्रोजेक्ट के फायदेमंद होने पर संदेह जताया था. उस समय विपक्ष में रही कांग्रेस ने तो सौदे को संदेहास्पद और आर्थिक रूप से नुकसानदेह करार दिया था. लेकिन तत्कालीन एनडीए सरकार ने सौदे को मंजूरी दी और अगस्त 2001 में संसद में अपने फैसले का बचाव भी किया.
आलोचनाएं 2006 में तब बंद हो गई जब सखालिन-1 प्रोजेक्ट में भारत की हिस्सेदारी के पहले प्रतिफल के रूप में कच्चे तेल से लदा एक विशालकाय रूसी टैंकर पोत न्यू मंगलोर पोर्ट पर आकर लगा.
कांग्रेस को अपना रुख बदलते देर नहीं लगी और उसने आगे बढ़कर इस परियोजना की तारीफ की.
कांग्नेस पार्टी ने एक तरह से वो भी इसे एक तरह से इस प्रोजेक्ट को अपना बताते हुए तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा और रूसी राजदूत की उस तस्वीर को खूब प्रचारित किया जिसमें वो दिल्ली में सखालिन-1 के उत्पाद का बोतलबंद नमूना उनसे लेते हुए दिखाई दे रहे हैं.
टिलरसन ने अपनी ख्याति के ही अनुरूप दूरदर्शिता दिखाई थी, जिसकी दरकार विदेशों में अधिग्रहण के मौके ढूंढती भारतीय कंपनियों को है.
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