पाकिस्तान को अब अपना मुस्तकबिल खुद तय करना होगा. उसे तय करना होगा कि उसे आतंकवाद के साथ रहना है या फिर अमेरिका के साथ. अगर अमेरिका के साथ रहना है तो उसे भारत के साथ भी भारत की शर्तों के साथ भी रहना पड़ सकता है. भारत की शर्तें साफ हैं कि पाकिस्तान अपनी सरज़मीं से आतंकी संगठनों का सफाया करे और सीमापार आतंकी घुसपैठ बंद करे. ये भारत की भले ही मांग हो लेकिन अब अमेरिका का पाकिस्तान को फरमान है. इतना साफ इशारा पाकिस्तान को किसी भी अमेरिकी प्रशासन से नहीं मिला है जो ट्रंप प्रशासन ने साफतौर पर पाकिस्तान को सुना दिया.
अमेरिका ने पाकिस्तान को समझाते हुए कहा है कि अगर वो अपनी ज़मीन से आतंकी ठिकानों को बंद कर दे तो भारत से उसे बड़े आर्थिक फायदे मिल सकते हैं. अमेरिका के रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकी ठिकानों को खत्म नहीं करता तब तक भारत, अफगानिस्तान और खुद पाकिस्तान में स्थिरता नहीं आ सकती है. ऐसे में अब पाकिस्तान को अपना रवैया बदलने की जरूरत है. अमेरिका का मानना है कि भारत के साथ रहने में ही पाकिस्तान की भलाई है.
साउथ एशिया में अमेरिका की नई नीति के ऐलान के बाद पाकिस्तान को एक मौका मिला है. अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ सीधे तौर पर सौदेबाजी की है. तराजू के एक पलड़े में पाकिस्तान के आतंकी संगठन हैं तो दूसरे में भारत से मिलने वाले आर्थिक फायदे. दरअसल ट्रंप प्रशासन साउथ एशिया में भारत की बड़ी भूमिका देख रहा है. यही वजह है कि अफगानिस्तान में भी उसने भारत से बड़े सहयोग की अपेक्षा की है.
तभी अमेरिका ने पाकिस्तान को आर्थिक, कूटनीतिक और वित्तीय फायदों के लिए भारत के साथ पड़ौसी धर्म निभाने के लिये ताकीद किया है. जिम मैटिस का कहना है कि अगर पाकिस्तान अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को निभाता है और पाकिस्तान में बने आतंकी संगठनों को खत्म करता है तो उसे भारत से बड़े आर्थिक फायदे मिल सकते हैं.
पाकिस्तान के पास सुधरने का आखिरी मौका
ट्रंप प्रशासन की ये सोच पाकिस्तान के लिए अल्टीमेटम भी है. उसने साफ कर दिया है कि अगर पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता है तो फिर ट्रंप प्रशासन कोई भी जरूरी कदम उठाने के लिए तैयार है.
एक तरफ पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस का दावा कर रहा है तो दूसरी तरफ उस पर लगातार अमेरिकी दबाव बढ़ाता जा रहा है. अमेरिका की पाकिस्तान को सीधी धमकी उसकी नींद उड़ाने के लिये काफी है. क्योंकि अब अमेरिका ने पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों के बीच सांठगांठ का भी खुलासा कर दिया है. अमेरिका ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि आईएसआई की अपनी विदेश नीति है जिस पर पाकिस्तानी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है.
साफ है कि लोकतंत्र के नाम पर पाकिस्तानी सरकार सिर्फ मुखौटे का काम कर रही है जबकि आईएसआई और सेना लगातार आतंकी संगठनों को पनाह देने और आतंकी तैयार करने में जुटे हुए हैं. भारत और अफगानिस्तान कई दफे पाकिस्तान पर आतंकवाद प्रायोजित करने का आरोप लगाते रहे हैं. लेकिन पहली बार अमेरिका ने भी माना है कि पाकिस्तान के मंसूबे नापाक हैं जिन पर नकेल कसने की जरूरत आ चुकी है.
पाकिस्तान के पास पड़ौसी धर्म निभाने का मौका
अमेरिका ने सीधे शब्दों में कहा है कि भारत के साथ अगर पाकिस्तान पड़ोसी धर्म निभाएगा तो वो फायदे में रहेगा. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि पड़ोसी धर्म निभाने के लिये पाकिस्तान क्या कदम उठाएगा?
पाकिस्तान के पास मौका है कि वो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में आतंकवाद प्रायोजित देश की छवि बनाने से बचे. अमेरिका ने साफ कहा है कि अगर पाकिस्तान अपने यहां बने आतंकी ठिकानों को बंद नहीं करता है तो उसे कतर, तुर्की जैसे देशों के साथ आतंकवाद प्रायोजित करने वाले देशों की सूची में डाला जा सकता है.
ऐसे में पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एकदम अकेला पड़ जाएगा. उसकी आर्थिक हालत बद से बदतर हो जाएगी. कतर और तुर्की जैसे देशों की इकोनॉमी पेट्रोल पर आधारित है लेकिन पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति अमेरिकी डॉलरों के भरोसे ही अब तक चलती आई है.
अमेरिका के साथ सौदेबाजी का पाक को मिला मौका
पाकिस्तान के पास दूसरा कोई मौका नहीं है सिवाए इसके कि वो ट्रंप प्रशासन में अपना भरोसा बहाल करे. भरोसा बहाल करने के लिए भारत के साथ उसे ईमानदार पहल करनी होगी. इस ईमानदार पहल में उसे भारत की उन 50 वांछित आतंकियों की लिस्ट के बारे में कार्रवाई करनी होगी जिसमें पहला नाम दाऊद इब्राहिम का है. मुंबई ब्लास्ट केस में दाऊद इब्राहिम मोस्ट वांटेड है. खास बात ये है कि दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंपने के लिए अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई भी जुटी हुई है. साल 2003 में अमेरिका ने दाऊद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था.
भारत पाकिस्तान के दाऊद में रहने के कई सबूत सौंप चुका है लेकिन पाकिस्तान खुद इन सबूतों से इनकार करता रहा है. यहां तक पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने भी माना कि दाऊद पाकिस्तान में हो सकता है.
लेकिन पाकिस्तान लगातार भारत के आरोपों से इनकार करता आया है कि उसकी ज़मीन पर भारत के मोस्टवांटेड आतंकवादी और अपराधी छुपे हुए हैं. 50 लोगों की लिस्ट में 26/11 के मुंबई हमले के आरोपी हाफिज सईद का नाम है तो कंधार कांड का मास्टरमाइंड मौलाना मसूद अजहर का भी नाम है. वहीं मुंबई ब्लास्ट के आरोपी दाऊद के गुर्गों में टाइगर मेमन, अनीस इब्राहिम और छोटा शकील सहित कई माफिया डॉन के नाम शामिल हैं.
मोदी-ट्रंप के रिश्तों से बनी नए दौर की बात
पाकिस्तान पर बढ़ते अमेरिका दबाव की बड़ी वजह ये है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते नए दौर में हैं. पीएम मोदी की विदेश नीति की वजह से अमेरिका और भारत के रिश्तों में गर्माहट बढ़ी है. अमेरिका भारत को न सिर्फ एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के तौर पर देख रहा है बल्कि भविष्य के सामरिक साझेदार के तौर भी देख रहा है.
ट्रंप प्रशासन का पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में माना जाएगा जिसकी वजह से अब तक के इतिहास में पहली बार पाकिस्तान को उसी के पाले में पटखनी मिल रही है.
अमेरिका ने इशारों-इशारों में पाकिस्तान को ये भी बता दिया कि बेहतर पड़ोसी विकल्प के तौर पर पाकिस्तान चीन की बजाए भारत को तरजीह दे तो ज्यादा फायदे में रहेगा.
अमेरिका ने इस बहाने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है. लेकिन सवाल पाकिस्तान की फितरत का है जिस पर भरोसा करना खुद अमेरिका के लिए मुश्किल है. तभी जिम मैटिस को ये भी कहना पड़ा है कि अगर अमेरिका की कोशिश नाकाम होती है तो राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान के खिलाफ कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार हैं.
भारत से टमाटर लेकर दाऊद वापस लौटा दे पाक
ऐसे में पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को अपनी ढाल बना सकता है. कश्मीर मुद्दे की वजह से ही उसने भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा नहीं दिया है. भारत से उसका केवल 1999 आइटमों का ही कारोबारी समझौता हुआ है. लेकिन भारत से अगर पाकिस्तान को आर्थिक फायदे लेने हैं तो उसे मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देकर कारोबार के रास्ते भी खोलने होंगे. पाकिस्तान भारत के कारोबारियों को पेरिशेबल आइटम का इंपोर्ट परमिट न देकर अपनी ही फज़ीहत करा रहा है. 9 महीने पहले ही अचानक उसने भारत से टमाटर लेना बंद कर दिया. नतीजतन आज पाकिस्तान में टमाटर 300 रुपये किलो तक पहुंच गया है. सिर्फ टमाटर से ही पाकिस्तान की नीयत को समझा जा सकता है कि वो भारत का फायदा रोकने के लिए अपना दस गुना नुकसान कराने को तैयार है क्योंकि वहां के नीति निर्धारक कट्टरपंथ और आतंकवाद की सोच से बाहर ही नहीं निकल सके हैं.
लेकिन इस बार पाकिस्तान को खुद को बदलना ही होगा. ये सियासी मजबूरी नहीं बल्कि उसके वजूद के लिए जरूरी है. अगर वो अमेरिकी धमकी को गंभीरता से नहीं लेगा तो वो गैर-नाटो से अलग भी हो सकता है. यानी अब पाकिस्तान के पास खोने के लिए बहुत कुछ है.
ऐसे में उसके पास भारत के साथ दोस्ताना बढ़ाने का विकल्प ही बचता है. उस दोस्ती के लिए उसे दाऊद इब्राहिम जैसे आतंकियों की कीमत अदा करनी होगी. क्योंकि यही उसकी ईमानदारी का सबूत भी बनेगी. शायद पाक के हुक्मरान सोच रहे होंगे कि अब पाले गए आतंकियों का सौदा करने का माकूल वक्त आ चुका है.
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