दूसरे विश्व युद्ध का अंत जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले के साथ हुआ था. इसके साथ ही पूरी दुनिया ने युद्ध की ऐसी विभीषिका देखी कि तब से अब तक तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत नहीं हुई है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दो गुटों में बंटी दुनिया के दोनों बड़े देशों यानी अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के दौरान 80 के दशक में एक स्थिति ऐसी भी आई जब कुछ ही पलों में दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो सकता था. जिसके बाद दुनिया की तबाही निश्चित थी. लेकिन दुनिया को तबाह होने से एक शख्स की समझदारी ने बचा लिया. उस शख्स का नाम था स्टेंसिलाव पेट्रोव.
सोवियत संघ की सेना में उस वक्त लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तैनात स्टेंसिलाव को ‘दुनिया को बचाने वाला’ नाम से भी जाना जाता है. दुनिया को बचाने वाले स्टेंसिलाव अब इस दुनिया में नहीं रहे. वॉशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक इसी साल, 77 वर्ष की आयु में 19 मई को उनका निधन हो गया. स्टेंसिलाव ने कैसे पूरी दुनिया को तबाह होने से बचाया यह जानने के लिए हम घड़ी की सुइयों को थोड़ा पीछे घुमाते हुए साल 1983 में चलते हैं.
कोल्ड वॉर के दौरान खत्म हो सकती थी दुनिया!
शीत युद्ध का वक्त था. पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी थी. पश्चिमी यूरोप के देशों के साथ मिलकर अमेरिका एक खेमे का मुखिया था तो सोवियत संघ दूसरे खेमे का झंडाबरदार. दोनों महाशक्तियों के बीच आपस में कोई जंग तो नहीं होती थी लेकिन दुनिया की शतरंज की बिसात पर दोनों ही देश अपने-अपने मोहरों के साथ हमेशा जंग की हालात में रहते थे. दोनों ही देशों के पास परमाणु हथियारों का इतना बड़ा जखीरा मौजूद था जिससे पूरी दुनिया को कई बार खत्म किया जा सकता था. अचानक हुए किसी भी आक्रमण की स्थिति में दोनों ही देशों की एटमी हथियारों से लैस मिसाइलें हमला करने के लिए तैयार रहती थीं.
स्टेंसिलाव के फैसले से टला परमाणु युद्ध
1983 के उस साल में सोवियत संघ लेफ्टिनेंट कर्नल स्टेंसिलाव मॉस्को के दक्षिण में एक सीक्रेट कमांड सेंटर सर्पुखोव-15 के इंचार्ज थे. इस सेंटर काम अमेरिका की ओर से आने वाले किसी भी मिसाइल के खतरे को परखने का था जिसे हम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम कहते हैं. 26 सितंबर 1983 की रात को कमांड सेंटर को अपनी सेटेलाइट से अतरिक्ष में एक अमेरिकी रॉकेट इंजन के सिग्नल प्राप्त हुए ,ऐसे सिग्नल जो एक इंटर कॉन्टिनेंटल मिसाइल के इंजन के सिग्नल होते हैं. ये सिग्नल उस वक्त की सोवियत संघ की सबसे एडवांस सेटेलाइट ओको नंबर 5 से आ रहे थे. सेटेलाइट का यह डेटा जब स्टेंसिलाव के कंप्यूटर पर पहुंचा तो उसका एक ही आकलन था- अमेरिकी मिसाइल हमला.
इसके बाद इस सेंटर का इंचार्ज होने के नाते स्टेंसिलाव की जिम्मेदारी थी वह अमेरिका की ओर से आ रही इस मिसाइल के बारे में अपनी हेडक्वार्टर को आगाह करें. जिसके बाद सोवियत संघ का नेतृत्व जवाबी मिसाइल हमले का आदेश देता और फिर एटमी जंग में दुनिया का तबाह होना अवश्यंभावी था.
सब कुछ स्टेंसिलोव के फैसले पर निर्भर कर रहा था. ऐसे वक्त में उन्होंने अपने विवेक और धीरज से फैसला किया और अपनी टीम को समझाया कि ये सिग्नल एक टेक्निकल गलती हैं. उनका तर्क था कि अगर अमेरिका, सोवियत संघ पर मिसाइल से हमला करेगा तो फिर महज एक मिसाइल ही क्यों दागेगा? उनका तर्क सही साबित हुआ. यह वाकई एक टेक्निकल गलती थी और उनके इस विवेक भरे फैसले से पुरी दुनिया तबाह होने से बच गई.
स्टेंसिलोव को पूरी दुनिया ने दिया सम्मान
यह घटना कई साल तक गुप्त रही. और 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद ही प्रकाश में आ सकी. इस घटना के एक साल बाद सेना छोड़ चुके स्टेंसिलोव को पश्चिमी यूरोप बहुत लोगों ने खत लिखकर इस दुनिया को बचाने के लिए उनका शुक्रिया अदा किया. साल 2014 में इस वाकिए के ऊपर एक डोक्युमेंट्री भी बनी जिसका नाम था ‘ द मैन हू सेव्ड द वर्ल्ड’. उन्हें अमेरिका समेत पूरी दुनिया में कई जगह सम्मानित किया गया.
इसी साल 19 मई को स्टेंसिलोव उस दुनिया को अलविदा कह गए जिसे बचाने का श्रेय उनके नाम पर है. अब इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस आदमी ने पूरी दुनिया को बचाया उसकी मौत की खबर चार महीने बाद तब पता चली जब उनके एक जर्मन मित्र ने इसके बारे में अपनी ब्लॉग में लिखा.
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