तीन देशों से होकर भारत आने वाली कई सालों से अटकी पड़ी गैस पाइपलाइन परियोजना की फिर से शुरू होने की उम्मीद जगी है. तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते भारत आने वाली (TAPI) यह परियोजना 7.5 अरब डॉलर की है. अफगानिस्तान में तालिबान के विरोध के चलते ये कई सालों से रुकी हुई थी. अब चौंकाने वाले घटनाक्रम में तालिबान ने इसका समर्थन किया है. ब्लूमबर्ग के एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने पिछले महीने एक बयान में कहा था कि तालिबान देश के पुनर्निर्माण और आर्थिक बुनियाद को दोबारा खड़ा करने में अपनी जिम्मेदारी को जानता है और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से इस मामले में अफगानियों की मदद के लिए कह रहा है.
देश में जब से तालिबान की सरकार थी तब से ही इस गैस पाइपलाइन को लेकर बातचीत चल रही है. इस परियोजना की 500 मील से अधिक की पाइपलाइन अफगानिस्तान के उस इलाके से गुजरेगी जहां तालिबान का नियंत्रण है. जब तालिबान खुद इस परियोजना को समर्थन दे रहा है तब इसके राजनीतिक सुलह की उम्मीद जगी है.
तालिबान के समर्थन के बाद भी इसके लिए सुरक्षा मुहैया करना एक चुनौती
हालांकि इस पाइपलाइन के लिए सुरक्षा मुहैया कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यह पाइपलाइन दक्षिणी अफगानिस्तान से होकर गुजरती है जहां लगातार हमले होते रहते हैं.
तालिबान के समर्थन के पर गनी सरकार ने संदेह व्यक्त किया है. राष्ट्रपति के प्रवक्ता दावा खान मेनापेल के मुताबिक, प्रशासन तालिबान को इसके लिए धन नहीं मुहैया कराएगा. इसलिए तालिबान पर अभी भरोसा करना ठीक नहीं होगा.
तालिबान के इस निर्णय से अच्छे नतीजों की उम्मीद तो की जा रही है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, पिछले साल हिंसा के चलते 10 हजार लोग मारे गए थे या घायल हुए थे. इसी साल राजधानी काबुल में हुए धमाकों में सैकड़ो लोग मारे गए थे. इन धमाकों की जिम्मेदारी भी तालिबान ने ही ली थी.
वॉशिंगटन के वुडरो विल्सन केंद्र में दक्षिण एशिया के एक वरिष्ठ सहयोगी माइकल कुगेलमैन ने कहा कि भले ही तालिबान ने कहा है कि वह समस्या पैदा नहीं करेगा लेकिन इसके अलावा भी कई आतंकवादी समूह हैं जो दिक्कत पैदा कर सकते हैं. इसके अलावा तालिबान अपना मन कभी भी बदल सकता है.
भारत के लिए अब उनता महत्वपूर्ण नहीं रही यह परियोजना
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच भी रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं. दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाते रहते हैं. सवाल यह भी है कि क्या भारत इस पर भरोसा कर पाएगा क्योंकि यह पाइप लाइन भारत के धुर-विरोधी देश से होकर गुजरती है.
लंदन में रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के एक वरिष्ठ रिसर्चर शशांक जोशी ने कहा कि वर्तमान में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ें हुए तनाव और अफगानिस्तान में लगातार खराब होती स्थिति को देखते हुए ये प्रोजेक्ट भारत के लिए अब उतना महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है जितना ये कुछ साल पहले था.
प्रस्तावित पाइपलाइन चार देशों तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व भारत से होकर गुज़रेगी. इस पाइपलाइन से सालाना 33 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी. इससे हजारों लोगों को नौकरियां मिलेंगी और अफगानिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को भी काफी मदद मिलेगी. सरकारी कंपनियां तुर्कमेनगाज, अफगान गैस एंटरप्राइज और गेल इंडिया लिमिटेड इस पर काम कर रही हैं.
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