‘पाकिस्तान में विस्फोट’... यह बात आपने हाल के सालों में न जाने कितनी बार पढ़ी और सुनी होगी. लेकिन बीते दिनों हुए एक ‘विस्फोट’ ने पूरे पाकिस्तान को हैरान कर दिया. यह ‘विस्फोट’ वहां दो दशकों में पहली बार हुआ है. यह है जनसंख्या विस्फोट. 19 साल बाद पाकिस्तान में हुई जनगणना बताती है कि दो दशकों में देश की आबादी 57 फीसदी वृद्धि के साथ 20 करोड़ को पार कर गई है.
अब जनसंख्या का इस कदर बढ़ना अच्छी बात है या बुरी, इसी सवाल का जवाब पाकिस्तानी उर्दू अखबार तलाशने में जुटे हैं. कोई इसे मानव संसाधन बताकर पाकिस्तान की तरक्की की उम्मीद लगा रहा है तो किसी के लिए बढ़ती आबादी पाकिस्तान की सभी समस्याओं की जड़ है.
आबादी के साइड इफेक्ट
रोजनामा 'दुनिया' लिखता है कि पाकिस्तान बनने के समय पश्चिमी पाकिस्तान (यानी आज का पाकिस्तान) की आबादी लगभग सवा तीन करोड़ थी जिसमें अब सात गुना इजाफा हो चुका है.
अखबार की राय में अगर पाकिस्तान की आबादी इसी तेज रफ्तार से बढ़ती रही तो 2050 तक यह 30 करोड़ को पार कर जाएगी. अखबार लिखता है कि आज पाकिस्तान में जिन समस्याओं पर सबसे ज्यादा बात होती है, उनमें आर्थिक तंगी, सामाजिक अस्थिरता, महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ता हुआ अपराध और ऊर्जा संकट शामिल हैं, लेकिन इन सब समस्याओं की असल जड़ को तलाशें तो वह बेतहाशा बढ़ती आबादी ही है.
अखबार के मुताबिक तेजी से बढ़ती आबादी किसी खतरे से कम नहीं है क्योंकि संसाधन बढ़ने की बजाय घटते जा रहे हैं और उन पर आबादी का बोझ बढ़ रहा है. अखबार कहता है कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को खास तौर से ध्यान देना होगा.
तरक्की की राह
लेकिन इस मुद्दे पर 'जंग' लिखता है कि दुनिया में ऐसे कई बेहद विकसित देश हैं जिनके पास प्राकृतिक संसाधन ना के बराबर हैं, लेकिन उन्होंने अपनी राष्ट्रीय जरूरतों के मुताबिक अपनी आबादी को बेहतरीन शिक्षा और ट्रेनिंग देकर साइंस और टेक्नोलॉजी, उद्योग, व्यापार और शिक्षा समेत हर क्षेत्र में नायाब मुकाम हासिल किया है. अखबार पाकिस्तान में भी कुछ ऐसा ही करने की जरूरत पर जोर देता है.
अखबार की राय में पाकिस्तान की आबादी में महिलाओं और पुरूष का अनुपात भी अच्छा है, जबकि कई देशों में यह फासला बहुत ज्यादा है और वहां के समाज पर इसके बहुत ही खराब असर देखने को मिल रहे हैं. आकंड़ों के मुताबिक पाकिस्तान की 20 करोड़, 77 लाख, 74 हजार 520 की आबादी में पुरूष 10 करोड़ 64 लाख 50 हैं जबकि महिलाओं की संख्या 10 करोड़ 13 लाख 15 हजार है. यानी पाकिस्तान में पुरुषों की तादाद महिलाओं से सिर्फ 51 लाख ज्यादा है.
रोजनामा 'पाकिस्तान' लिखता है कि जनगणना के जो शुरुआती आकंड़े सामने आए हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए विकास की नए सिरे से योजना बननी चाहिए. अखबार के मुताबिक देहातों को छोड़ कर लोग शहरों की तरफ भाग रहे हैं क्योंकि गांवों में न बिजली है, न रोजगार और न ही बच्चों की अच्छी तालीम का इंतजाम.
शहरों पर बढ़ते दबाव की जिक्र करते हुए अखबार लिखता है कि अगर नए शहर बसाए जाते तो आज कराची, लाहौर, मुल्तान, फैसलाबाद और हैदराबाद की हालत खस्ता न होती. अखबार के मुताबिक अब भी वक्त है और इस तरफ ध्यान देकर आने वाले बरसों में इस परेशानी से बचा जा सकता है.
अंदरूनी खींचतान
वहीं 'नवा ए वक्त' ने पाकिस्तान की जनगणना के संदर्भ में प्रांतों के बीच होने वाली खींचतान को अपने संपादकीय में उठाया है. अखबार लिखता है कि ताजा आंकड़े बताते हैं कि सबसे ज्यादा 11 करोड़ लोग पंजाब में रहते हैं और इसीलिए संसाधनों का सबसे बड़ा हिस्सा उसे ही मिलेगा. अखबार को खैबर पख्तून ख्वाह और सिंध प्रांत के उन राजनेताओं पर आपत्ति है जो अपने प्रांतों के साथ भेदभाव होने का आरोप लगाते हैं.
अखबार कहता है कि अगर सभी प्रांत अपने हिस्से आए संसाधनों का ईमानदारी से इस्तेमाल करें तो विरोध की गुंजाइश ही नहीं बचेगी और पाकिस्तान की एकता को मद्देनजर रखते हुए ऐसी सियासत से बचना ही बेहतर होगा.
'एक्सप्रेस' ने जोर दिया है कि सरकार जनगणना के ताजा आंकड़ों के आधार पर पाकिस्तान की तरक्की और स्थिरता का नया भरोसेमंद रोड मैप तैयार करे. अखबार सरकार से शहरों और गांवों के बीच संतुलन कामय करने को अपनी प्राथमिकता बनाने के लिए कहता है. अखबार की टिप्पणी है कि देश भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है और ऐसे में दूसरी जंग उसे गरीबी के खिलाफ लड़नी चाहिए. अखबार के मुताबिक पाकिस्तान की जनगणना की एक दिलचस्प बात यह रही कि पहली बार किन्नरों की भी गिनती की गई और उनकी संख्या 10418 बताई जाती है.
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