पाकिस्तान चुनाव में सिंध दूसरा सबसे अहम राज्य है, जहां नेशनल असंबली की 61 सीटें हैं. सिंध की राजधानी करांची में चुनाव प्रचार अपने चरम पर है. लेकिन चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि हर बार की तरह इस बार चुनाव नतीजों की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है.
इसकी कई वजह हैं. दरअसल कराची में मत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) का ही दबदबा रहा है. 80 के दशक से शहर की 40 प्रतिशत मुजाहिरों की आबादी एमक्यूएम को ही वोट देती आई है. लेकिन 2016 में ये पार्टी 2 धड़ों में बट गई थी. एमक्यूएम लंदन और एमक्यूएम पाकिस्तान. वहीं कराची से एक तीसरा धड़ा भी निकला है जिसमें पूर्व मेयर मुस्तफा कमाल ने पाक सरजमीन पार्टी बनाई है.
इनके बीच है टक्कर
इस बार एमक्यूएम लंदन चुनावों में नहीं उतर रही है. ऐसे में मुकाबला अब एमक्यूएमपी और पीएसपी के बीच है. दैनिक भास्कर के मुताबिक, ऐसे में मुजाहिरों का वोट बंट सकता है. इससे कहीं न कहीं पीटीआई और पीपीपी को फायदा पहुंचेगा.
विश्लेषकों के मुताबिक इससे पहले हर चुनाव में ज्यातर लोग एमक्यूएम को ही वोट करते थे जिससे चुनाव नतीजों की भविष्यवाणी करना आसान होता था. इसकी एक मुख्य वजह ये भी होती थी कि एमक्यूम इलेक्शम मशीनरी और चुनावी प्रकिया को प्रभावित करना भी जानती थी. लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है. ऐसे में कोई भी पूरे विश्वास के साथ भविष्यवाणी करने में नाकाम है.
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