चुनाव हुए तुर्की में. जीत मिली तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोवान को. और खुशी से झूम रहा है पाकिस्तान का उर्दू मीडिया. कई बड़े पाकिस्तानी अखबारों ने अपने संपादकीय में एर्दोवान की शान में कसीदे पढ़े हैं. कुछ अखबारों ने तुर्की के चुनाव पर पूरे-पूरे पेज छापे हैं. इस तरह एर्दोवान पर फिदा होने की इकलौती वजह है तुर्की के राष्ट्रपति का इस्लामी रुझान और उनके नेतृत्व में धार्मिक रंग में रंगता तुर्की. जिस तुर्की को कभी मुस्लिम दुनिया के सबसे आधुनिक और उदार देश के तौर पर देखा जाता था, वह आज वापस रुढ़िवादी रास्ते पर लौट रहा है.
बीते 15 साल से तुर्की पर राज कर रहे एर्दोवान के हाथ में अब बतौर राष्ट्रपति कई असीमित शक्तियां होंगी. कई मामलों में वो संसद से भी सर्वोपरि होंगे. ऐसे में कई लोग उन्हें एक उभरते हुए नए तानाशाह के रूप में देख रहे हैं. लेकिन पाकिस्तानी मीडिया को लगता है कि एर्दोवान जितने ज्यादा मजबूत होंगे, दुनिया में मुसलमानों का आवाज उतनी बुलंद होगी.
एर्दोवान का तुर्की
‘जंग’ लिखता है कि एर्दोवान एक ऐसे नेता के तौर पर उभर रहे हैं जिन्हें मुस्लिम जगत की समस्याओं की पूरी जानकारी है और इनसे वह सरोकार भी रखते हैं इसीलिए तुर्की के चुनाव पर न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया और खास कर मुस्लिम दुनिया की नजरें टिकी थीं.
अखबार लिखता है कि राष्ट्रपति एर्दोवान ने अपने देश को न सिर्फ बदतरीन आर्थिक तंगी से निकाला है, बल्कि शिक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी समेत जीवन के सभी क्षेत्रों में तरक्की पर भरपूर तवज्जो दी है.
अखबार की टिप्पणी है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर कुछ हल्कों को तुर्की के राष्ट्रपति से सख्त शिकायतें हैं, लेकिन उम्मीद है कि अपने देश की खुशहाली और तरक्की के साथ-साथ वो इन शिकायतों को दूर करने पर भी ध्यान देंगे.
‘नवा ए वक्त’ ने इतिहास के पन्ने पलटते हुए लिखा है कि पहले विश्वयुद्ध के बाद एक समय ऐसा आया जब तुर्की का अस्तित्व खतरे में पड़ गया, लेकिन मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने कमाल की होशियारी और बहादुरी दिखाते हुए दुश्मनों के इरादों को नाकाम किया और आधुनिक तुर्की की बुनियाद रखी. लेकिन तुर्की को आधुनिक और उदार राष्ट्र बनाने की कोशिशों को बदकिस्मती करार देते हुए अखबार कहता है कि नए तुर्की ने इस्लाम से अपने सारे संबंध तोड़ लिए. अब तुर्की पर फिर से इस्लामी रुझान वाले एर्दोवान की मजबूत होती गिरफ्त से अखबार फूला नहीं समाता है.
अखबार की टिप्पणी है कि एर्दोवान का राष्ट्रपति चुना जाना तुर्की, उसकी जनता, मस्लिम दुनिया और जुल्मों के शिकार मुसलमानों के लिए बहुत ही खुशी की बात है. अखबार को उम्मीद है कि एक विकसित तुर्की बाकी मुस्लिम देशों को राह दिखाएगा और दुनिया भर के मुसलमानों का सहारा साबित होगा.
एर्दोवान को नसीहत
‘जसारत’ ने इस विषय पर अपने संपादकीय में लिखा है कि मुस्तफा कमाल पाशा ने तुर्की की इस्लामी पहचान को बिल्कुल ही बदल कर रख दिया था. अखबार के मुताबिक यहां तक कि तुर्क भाषा को अरबी लिपी की बजाय रोमन में लिखने का चलन शुरू किया गया और कुरान पढ़ने और अजान देने पर रोक और पाबंदी लगा दी गई थी.
अखबार ने एर्दोवान की जीत को इस्लाम समर्थकों की जीत बताते हुए उनसे खबरदार रहने को भी कहा है. अखबार ने धर्मनिरपेक्षता को एक बुराई बताते लिखा है कि वह तुर्की में कमजोर जरूर पड़ी है, लेकिन इस्लाम दुश्मनों की शह पर वह कभी भी सिर उठा सकती है.
रोजनामा ‘दुनिया’ ने भी अपने संपादकीय में एर्दोवान को जीत पर बधाई देते हुए लिखा है कि उनकी जीत से मुस्लिम जगत में स्थिरता आएगी. अखबार के मुताबिक पाकिस्तान को भी तुर्की से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. अखबार कहता है कि तुर्की में चुनाव शांतिपूर्वक हुए और नतीजों पर भी सबने भरोसा जताया, ठीक इसी रास्ते पर पाकिस्तान की चुनावी सियासत को भी चलना चाहिए.
एर्दोवान का करियर
रोजनामा ‘पाकिस्तान’ लिखता है कि एर्दोवान ने सबसे पहले तुर्की के ऐतिहासिक शहर इस्तांबुल के मेयर के रूप में शोहरत पाई थी और अपनी इसी कामयाबी के बलबूते वह 2002 में चुनाव जीतने के बाद तुर्की के प्रधानमंत्री बने. अखबार कहता है कि 3 बार प्रधानमंत्री रहने के बाद उन्होंने राष्ट्रपति बनना पसंद किया और एक जनमत संग्रह के जरिए राषट्रपति की शक्तियों में अभूतपूर्व इजाफा कर लिया.
अखबार कहता है कि इस वक्त एर्दोवान अपनी लोकप्रियता के शिखर पर हैं और वह अपने देश के निर्वाचित नेता के तौर पर दुनिया में तुर्की का नाम ऊंचा कर रहे हैं. अखबार के संपादकीय की आखिर लाइन है- एर्दोवान को उनकी ताजा कामयाबी मुबारक, पाकिस्तान के साथ तुर्की के रिश्ते दोस्ताना और मिसाल देने लायक है. उम्मीद है कि उनके दौर में यह और भी मजबूत होंगे.
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