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पाकिस्तान डायरी: क्या कह रहे हैं ट्रंप और शरीफ पर पाक के अखबार

कई अखबारों ने जहां अमेरिका के नए कदमों को उम्मीद बताया है, कुछ इससे असहमत भी हैं

Updated On: Oct 16, 2017 09:51 AM IST

Seema Tanwar

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पाकिस्तान डायरी: क्या कह रहे हैं ट्रंप और शरीफ पर पाक के अखबार

पाकिस्तान में तालिबान की कैद से पांच साल बाद एक अमेरिकी महिला, उसके कनाडाई पति और तीन बच्चों की रिहाई ने पाक-अमेरिकी रिश्तों में बेहतरी की उम्मीद पैदा की है. पाकिस्तानी सेना के अभियान से संभव हुई इस रिहाई को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सराहा है और पाकिस्तान को लेकर अपने तल्ख तेवरों को थोड़ा नरम किया है.

पाकिस्तानी उर्दू अखबार जहां अमेरिका से रिश्तों में बेहतरी की संभावनाओं को लेकर खुशी का इजहार कर रहे हैं, वहीं कुछ अखबार अमेरिका के साथ रिश्तों के पुराने अनुभवों से सीखने को कह रहे हैं. अमेरिका को “मतलब का यार” बताते हुए इनकी सलाह है कि अमेरिका से रिश्ते सिर्फ बराबरी के आधार पर होने चाहिए. इस मौके पर कई अखबारों के संपादकीयों में भारत और अमेरिका के मजबूत होते रिश्तों से जलन की बू भी नजर आती है.

पाकिस्तान की मजबूरी

'नवा ए वक्त' लिखता है कि पिछले 70 साल के दौरान पाकिस्तान हर अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दे पर अमेरिका के साथ खड़ा रहा है और उसके हितों के लिए पाकिस्तान ने बहुत सी जानों की कुरबानी दी और आर्थिक नुकसान भी उठाया लेकिन अमेरिका ने पाकिस्तान को जरूरत ही हर घड़ी में ठेंगा दिखाया है. अखबार की राय में अमेरिका ने भारत के चिर प्रतिद्वंद्वी भारत को अपना नजदीकी सहयोगी बना कर भी पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए खतरों में इजाफा किया है.

अखबार के मुताबिक ट्रंप ने कहा है कि अतीत में भी अमेरिका के संबंध पाकिस्तान के फायदे में रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि इन रिश्तों से पाकिस्तान को नुकसान ही नुकसान हुआ है.

अखबार कहता है कि पाकिस्तान को अमेरिका के साथ संबंध बनाये रखने की मजबूरी बस इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान को अपने मक्कार दुश्मन भारत के खिलाफ अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एफ16 लड़ाकू विमान और सैन्य साजो-सामान की जरूरत है जो सिर्फ अमेरिका के पास है. अखबार ने लिखा है कि अमेरिका ने भारत को तो एफ16 विमान दे दिये लेकिन पाकिस्तान को उनकी सप्लाई रोक दी.

बराबरी के आधार पर संबंध कायम करने की हिदायत देते हुए अखबार लिखता है कि अगर पाकिस्तान अमेरिका के आगे झुककर उसके साथ रिश्ते बरकरार रखना चाहता है तो इस स्थिति में पाकिस्तान की आजादी और खुदमुख्तारी कमजोर होगी.

'औसाफ' लिखता है कि पाकिस्तान दुनिया में खुद को अलग थलग होने से बचाने के लिए सभी देशों के साथ संबंध बेहतर करे, लेकिन देश की सुरक्षा और हितों से कोई समझौता न किया जाए. इस अखबार ने भी अमेरिका से साथ रिश्तों के अतीत और भारत के प्रति अमेरिका के झुकाव का रोना रोया है.

तालिबान की कैद से अमेरिकी-कनाडाई दंपत्ति को रिहा कराये जाने पर अखबार ने लिखा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति और नीति निर्माताओं को यह बात जान लेनी चाहिए कि पाकिस्तान हर तरह के आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ कदम उठाता रहा है और अपनी सरजमीन में ऐसे तत्वों को कोई जगह नहीं देगा.

अखबार ने पाकिस्तान की पीठ ठोंकते हुए लिखा है कि मुश्किलों के बावजूद पाकिस्तान क्षेत्र में शांति के लिए कृतसंकल्प है और इस हकीकत को स्वीकार किया जाना चाहिए कि पाकिस्तान ने बहुत काम किया है.

अविश्वास और गलतफहमियां

'एक्सप्रेस' लिखता है कि अमेरिका और पाकिस्तान को एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए क्योंकि इसके बिना आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती है. अखबार के मुताबिक दोनों देशों के बीच अविश्वास और गलतफहमियों का फायदा आतंकवादियों ने खूब उठाया है.

अखबार की राय में तालिबान और अल कायदा के खिलाफ पाकिस्तान ने ही ऑपरेशन किया है जबकि अफगानिस्तान में मौजूदा गठबंधन सेनाएं वहां मौजूद तालिबान का खात्मा नहीं कर रही हैं. अखबार कहता है कि पाकिस्तानी सेना के अभियान में पांच विदेशी नागरिकों की रिहाई से साफ होता है कि पाकिस्तानी सेना ही आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन कर सकती है. अखबार लिखता है कि इस अभियान के लिए दोनों देशों के बीच जिस तरह की इंफॉर्मेशन शेयरिंग हुई है, अगर ऐसा पहले भी होता तो उनके बीच यह गलतफहमियां पैदा न होतीं.

इसी विषय पर ‘जंग’ का संपादकीय है - पाक अमेरिकी रिश्ते : स्वागतयोग्य प्रगति. अखबार कहता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ढाई महीने पहले अपनी अफगान नीति में पाकिस्तान को लेकर जिन नकारात्मक बातों का जिक्र किया था, वे बहुत थोड़े से ही समय में बेबुनियाद साबित हो गई हैं.

अखबार लिखता है कि अमेरिकी नेतृत्व नए सिरे से पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्तों की अहमियत और जरूरत को स्वीकार करते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाता नजर आ रहा है. लेकिन जंग के संपादकीय की सुई भी भारत पर अटकती दिखती है. अखबार ने एक तरफ ट्रंप प्रशासन को यह नसीहत दी है कि वह भारत को कश्मीर मुद्दा हल करने बातचीत की मेज पर आने को कहे, वहीं अफगानिस्तान में भारत को मिल रही अहमियत को लेकर पाकिस्तान की आपत्तियों पर ध्यान देने को कहा है.

सकारात्मक उम्मीद

वहीं रोजनामा ‘दुनिया’ ने तालिबान की कैद से पांच विदेशी नागरिकों की रिहाई को इंटेलीजेंस शेयरिंग का सकारात्मक नतीजा बताया है. () अखबार लिखता है कि पांच विदेशियों की रिहाई ऐसा कारनामा है जिसके लिए पाकिस्तानी सेना की जितनी तारीफ की जाये, कम है.

अखबार लिखता है कि यह स्वागतयोग्य बात है कि अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने पाकिस्तान से विदेशी जोड़े और उनके तीन बच्चों की रिहाई को सकारात्मक कदम करार देते हुए भविष्य में आतंकवाद के खात्मे के लिए पाकिस्तान के साथ मजबूत साझीदारी की उम्मीद जाहिर की है.

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