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पाकिस्तान चुनाव: तो इस तरह पीएम पद की दौड़ में आगे निकल गए इमरान खान...

6 जुलाई को नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी और दामाद को जेल भेजने के आदेश और चुनाव में हिस्सा न लेने के निर्देश के बाद अब आसानी के साथ 25 जुलाई के नतीजों की भविष्यवाणी की जा सकती है

Updated On: Jul 10, 2018 07:29 AM IST

Nazim Naqvi

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पाकिस्तान चुनाव: तो इस तरह पीएम पद की दौड़ में आगे निकल गए इमरान खान...

तो क्या इमरान खान के लिए पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेना महज एक औपचारिकता रह गई है. नवाज़ शरीफ को दस साल की कैद के बाद पाकिस्तानी अवाम में ये बहस एक नए रंग में उभर कर आ रही है.

हालांकि अभी 15 दिन बचे हैं जब पाकिस्तान की अवाम अपनी नई हुकूमत के लिए मतदान करेगी. मगर जो हालात हैं वह पहले से ही इशारा करने लगे हैं कि किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना नामुमकिन है. 6 जुलाई को नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी और दामाद को जेल भेजने के आदेश और चुनाव में हिस्सा न लेने के निर्देश के बाद अब आसानी के साथ 25 जुलाई के नतीजों की भविष्यवाणी की जा सकती है.

शक के घेरे में है यह अदालती फैसला

शुक्रवार को घंटों की नाटकीयता और अदालती कशमकश के बाद 174 पृष्ठों पर आधारित जो फैसला आया है उसका सार कुछ यूं है कि ‘यद्यपि अदालत ने अपने फैसले में यह माना है कि लंदन स्थित एवेनफील्ड फ्लैटों का मालिकाना हक स्थापित करना मुश्किल है लेकिन स्वामित्व को अस्वीकार करने के जो दस्तावेज़ शरीफ की तरफ से पेश किए गए हैं उनकी प्रासंगिकता भी साबित नहीं हो सकी है इसलिए अनुमान यही किया जा सकता है कि नवाज शरीफ ही उन संपत्तियों के असली मालिक हैं.'

मतलब कोई भी सुनकर ठहाका लगाएगा कि जिस जुर्म में नवाज़ शरीफ, बेटी-मरियम शरीफ और दामाद- कैप्टन (रिटायर्ड) मोहम्मद सफ़दर को 10साल, 7 साल और 1साल की जेल दी गई है उस भ्रष्टाचार का आधार अनुमान पर टिका है. वे तीनों इसलिए दोषी हैं क्योंकि वे अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए.

इसके साथ ही नवाज़ शरीफ पर 8 लाख मिलियन और बेटी पर 2 मिलियन पाउंड्स का जुर्माना भी किया गया है. फैसले के बाद नवाज़ शरीफ के वकील ने अदालत से बाहर आकर कहा कि वह इसके ख़िलाफ़ हाई कोर्ट में अपील करेंगे. यह सब कुछ या इस तरह के फैसले पकिस्तान में कोई पहली बार नहीं हो रहे हैं.

दूध के धुले नहीं हैं नवाज़ शरीफ

1999 में खुद नवाज़ शरीफ ने बेनज़ीर भुट्टो और ज़रदारी के ख़िलाफ़ भी ऐसा ही दबाव बनाते हुए जस्टिस कय्यूम की कलम से मुजरिम करार करवाते हुए उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था. बाद में, 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने उस अदालती आदेश को निरस्त करते हुए जस्टिस कय्यूम को पक्षपाती करार दे दिया था और उन्हें इस्तीफ़ा देने पर मजबूर होना पड़ा था.

**FILE** New Delhi: In this file photo dated May 26, 2014, Pakistan's former prime minister Nawaz Sharif is seen at AFS Palam on his arrival in New Delhi. An accountability court in Pakistan on Friday sentenced ousted prime minister Nawaz Sharif to 10 years in prison in one of the three corruption cases against him in the high-profile Panama Papers scandal. (PTI Photo/Atul Yadav)(PTI7_6_2018_000098B) *** Local Caption ***

नवाज़ शरीफ भी कोई दूध के धुले हुए नहीं हैं. वह पाकिस्तान की स्टील लॉबी के मुखिया हैं. उनकी ‘इत्तेफाक इंडस्ट्रीज’ पाकिस्तान की इकॉनमी का एक अहम हिस्सा है. अब एक बिज़नेसमैन और करप्शन का चोली दामन का साथ तो होता ही है. करप्शन के जिस इल्ज़ाम के तहत नवाज़ शरीफ को सज़ा हुई है वह सवालों के घेरे में इस आधार पर है कि उन्होंने जो चार हवेलियां खरीदी हैं वह कब खरीदी हैं. मतलब ये करप्शन कब का है, जब वह सिर्फ एक सियासी नेता थे या तब जब वो देश के प्रधानमंत्री थे. यह तय नहीं हो सका है.

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शुक्रवार के फैसले पर चुटकी लेते हुए पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक और पाकिस्तान से निष्काषित हुसैन हक्कानी अपने उर्दू के ट्वीट में कहते हैं ‘अजीब लोग हैं पहले लीडर बनाने पर कई साल मेहनत करते हैं. खुद क़ानून तोड़कर उसे इलेक्शन के लिए पैसे मुहैय्या कराते हैं. फिर गिराने, तबाह करने पर और मेहनत और वक़्त लगते हैं. लीडर बनाते वक़्त करप्शन नहीं दिखती इन्हें’.

बिलकुल इसी तर्ज़ पर एक और निष्कासित पाकिस्तानी तारेक फतह भी पाकिस्तानी फ़ौज और अदालत पर व्यंग करते हुए ट्वीट करते हैं: ‘अदालत ने फ़ौजी बोली बोलते हुए अपदस्थ प्रधानमंत्री को 10 साल कैद की सजा सुना दी ताकि तालिबान खान के नाम से मशहूर हो रहे पाकिस्तान-तहरीके-इंसाफ के रहनुमा और पूर्व क्रिकेटर इमरान खान को आंख बचाकर कठपुतली प्रधानमंत्री के रूप स्थापित किया जा सके.'

फिलहाल नवाज़ शरीफ लंदन में हैं. उनकी बेटी और बेटा भी उनके साथ हैं. वजह है उनकी पत्नी की बीमारी जो सूत्रों के मुताबिक़ लंदन के अस्पताल में हैं और वेंटीलेटर पर हैं. फैसले के बाद लंदन में बैठे नवाज़ शरीफ ने फ़ौरन भारतीय समाचार एजेंसी पीटीआई का रुख किया (ऐसे हालात में सभी पाकिस्तानी शख्सियतें अपनी बात कहने के लिए भारतीय मीडिया को सबसे असरदार मानती रही हैं) और अपना बयान दर्ज कराया.

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पीटीआई से बातचीत में नवाज़ शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तान के 70 वर्षीय इतिहास की धारा मोड़ने की उनकी कोशिशों को यह सज़ा मिली है. ‘मैं वादा करता हूं कि इस संघर्ष को तब तक जारी रखूंगा जब तक पाकिस्तानियों को उन जंजीरों से आज़ादी नहीं मिल जाती जिनमें वे सच बोलने की वजह से कैद हैं.’

उन्होंने जोर देकर कहा ‘मैं अपने संघर्ष को तब तक जारी रखूंगा जब तक कि पाकिस्तान के लोग कुछ जनरलों और न्यायाधीशों द्वारा थोपी गई गुलामी से आज़ाद नहीं हो जाते.'

Pakistan Army

ज्यादातर समय फौजी हुकूमत के साये में रहा है पाकिस्तान

अब आता है मामला फ़ौज का जिसे निशाना बना रहे हैं मियां नवाज़ शरीफ़. नवाज़ शरीफ़ का ये इल्ज़ाम गलत भी नहीं है. लेकिन यह इल्ज़ाम कोई नया इल्ज़ाम भी नहीं है. विभाजन के बाद कि स्थितियों से लेकर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बन जाने तक, कमोबेश पाकिस्तान हमेशा फौजी हुकूमत में ही रहा.

बीच के दो साल (1971-1973) जिसमें ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने एक लोकतांत्रिक और चुनी हुई सरकार चलाई लेकिन जल्दी ही उसे एक और फ़ौजी ने लपक लिया और अगले 15 साल फिर एक फौजी के कब्ज़े में आ गए जिसने पाकिस्तान को इस्लामाबाद देकर एक ख़ास सम्प्रदाय के मजहबी जूनून को उसमें बसा दिया. उसके बाद परवेज़ मुशर्रफ़ की शक्ल में एक और फ़ौजी पकिस्तान को चलाता और तबाह करता रहा.

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पिछले दिनों फ़ौज और पाकिस्तान के संबंधों पर फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी ने इसे आसान शब्दों में समझाते हुए कहा था कि ‘दुनिया के मानचित्र पर पाकिस्तान अकेला वह देश है जिसकी सेना को मसरूफ़ (व्यस्त) रखने के लिए खतरों के रोज़गार को गढ़ा जाता है.’

क्यों पाकिस्तानी राजनीति में इतनी हावी है फौज

दरअसल जब विभाजन हुआ तो ब्रिटिशों की भारतीय फ़ौज के ज़्यादातर सैनिक उसी इलाके के थे जो पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था. ये फ़ौज का वो तबका था जो वहीं का रहने वाला था. तो अचानक जो नया देश ‘पाकिस्तान’ बना उसकी अवाम में सेना का अनुपात बहुत बड़ा था. इसका यह नतीजा यह हुआ कि शुरू से ही पाकिस्तान पर फ़ौज का अधिपत्य बन गया.

पाकिस्तान का जो पहला बजट पेश हुआ था उसमें 75% राशि फ़ौज पर खर्च करने के लिए रखी गई थी. कुलमिलाकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जाकर पाकिस्तान अपने लोकतंत्र का चाहे जितना ड्रामा कर ले, हकीकत यह है कि उसकी लगाम हमेशा फ़ौज के ही हाथ में रही और वही हालात आज भी हैं.

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25 जुलाई को होने वाले देश के आम चुनाव से तीन सप्ताह पहले इस अदालती फैसले का समय बहुत महत्वपूर्ण है. चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण पहले ही बता चुके हैं कि नवाज़ शरीफ की ‘मुस्लिम-लीग (एन)’ और इमरान खान की ‘पाकिस्तान तहरिक-ए-इंसाफ’ (पीटीआई) के बीच कांटे की टक्कर है लेकिन नतीजा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनता हुआ कोई नहीं दिख रहा है.

नवाज शरीफ, उनकी बेटी और दामाद चुनाव के लिए योग्य घोषित हो चुके हैं. ऐसे में मियां शरीफ के भाई शहबाज शरीफ इन चुनावों में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं. भले ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस बात पर ताली बजा ले कि पाकिस्तान की नागरिक सरकार ने एक और पूरा कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया लेकिन अब यह और ज्यादा साफ़ हो चुका है कि दरअसल पाकिस्तान में सेना अब नरमी के साथ अपनी योजनाओं को अंजाम दे रही है, जिसमें अदालत उसकी मुट्ठी में है.

Pakistan Flag

इमरान खान हैं पाकिस्तानी फौज की पसंद

नवाज़ शरीफ को योग्य करार देने के बाद फ़ौजी ताकत इमरान खान की पीटीआई को अपना छिपा समर्थन देकर हुकूमत में लाना चाहती है. साथ ही वह चरमपंथी राजनीतिक दलों, ‘लश्कर-ए-तैयबा’ (जिसके उम्मेदवार अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक के झंडे तले मैदान में हैं), ‘तहरीक-ए-लब्बयक पाकिस्तान’ और अति रूढ़िवादी ‘मुत्तहिदा मजलिस-ए-अमल’ जैसों को भी आगे बढ़ा रही है ताकि इनके जीते हुए उम्मेदवार पीटीआई को समर्थन देकर इमरान खान को देश का प्रधानमंत्री बना दें.

फ़ौजी ताकत ने इमरान के चेहरे को अपना चेहरा ज़रूर बनाया है मगर वह नहीं चाहती कि इमरान खान भी उनकी तरह निरंकुश हो जाएं और उनके लिए ही मुसीबत बन जाएं, इसीलिए चरमपंथियों को सरकार में शामिल करके वह इमरान खान पर अपनी नकेल कसेगी.

ज़ाहिर है कि मियां नवाज़ शरीफ को मिली जेल ने इमरान खान को सियासी तौर पर सुकून पहुंचाया होगा. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘पहली बार पाकिस्तान के एक ताकतवर आदमी को सजा दी गई है. यह अदालत का ऐतिहासिक फैसला है.’ लेकिन जल्दी ही इस पूर्व क्रिकेटर को यह भी ज्ञात हो जाएगा की पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की गद्दी की कीमत क्या है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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