साल बदल गया है और इसी के साथ पाकिस्तान को लेकर अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया भी बदल गया है. याद कीजिए 2018 के पहले दिन ट्रंप ने अपने पहले ट्वीट में कैसे पाकिस्तान को फटकार लगाते हुए कहा था कि उसने अमेरिका को बेवकूफ बनाकर अब तक अरबों डॉलर ऐंठने के सिवाय कुछ नहीं किया और अब ऐसा नहीं चलेगा. अब वही ट्रंप पाकिस्तान से बेहतर संबंध चाहते हैं. पाकिस्तान के अखबार इसे अपने देश की राजनयिक जीत बता रहे हैं.
'पल में तोला और पल में माशा' मिजाज के मालिक ट्रंप पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की बात पर कब तक टिकेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन उन्होंने अफगानिस्तान के सिलसिले में जिस तरह भारत पर तंज कसा है, उससे पाकिस्तानी अखबार बहुत खुश हैं.
बदले सुर
रोजनामा जंग लिखता है कि तालिबान के साथ बातचीत में सकारात्मक प्रगति के बाद ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंधों की इच्छा जताते हुए कहा है कि वो पाकिस्तान के नए नेतृत्व से मिलना चाहते हैं. अखबार के मुताबिक उन्होंने भारत की सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि भारत अफगानिस्तान में तालिबान से क्यों नहीं लड़ता है. अखबार कहता है कि अमेरिका अब अफगानिस्तान से निकलना चाहता है, इसीलिए उसे पाकिस्तान की जरूरत है.
अखबार ने ट्रंप के रवैये में आई तब्दीली को अमेरिका की हार का प्रतीक बताया है और पाकिस्तान के लिए इसे राजनयिक कामयाबी करार दिया है. अखबार ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार को सोच-विचार के बाद ही कोई फैसला लेने की हिदायत दी है तो अमेरिका से कहा है कि संवाद के अलावा अगर कोई रास्ता अपनाया गया तो उससे सिर्फ नुकसान ही होगा.
रोजनामा पाकिस्तान लिखता है कि अमेरिका ने यह सोचकर अफगानिस्तान में भारत को व्यापक भूमिका दी थी कि वो तालिबान से लड़ेगा लेकिन अमेरिकी सेनाओं का हश्र देखकर शुरू में ही भारत ने वहां अपनी सेनाएं भेजने से इनकार कर दिया, जिस पर अब राष्ट्रपति ट्रंप नुक्ताचीनी कर रहे हैं. अखबार लिखता है कि शायद ट्रंप को अहसास हो गया है कि भारत अफगानिस्तान में अमेरिका की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है.
अखबार की टिप्पणी है कि अमेरिका ने यह बात समझने में बड़ी देर कर दी कि अफगानिस्तान में अफगान तालिबान एक बड़ी हकीकत है. अखबार के मुताबिक, ताकत के नशे में तालिबान को नजरअंदाज कर के यह समझ लिया गया कि वहां इस तरह अमन कायम हो सकता है लेकिन 18 साल चली लंबी लड़ाई ने साबित कर दिया कि ऐसा नहीं हो सकता. अखबार की राय में, तालिबान को सरकार से तो आसानी से हटा दिया गया, लेकिन उन्हें अफगान सरजमीन और समाज से नहीं निकाला जा सकता.
भारत पर अविश्वास
नवा ए वक्त लिखता है कि ट्रंप ने 1 जनवरी, 2018 को किए ट्वीट के बाद अपना रुख बदल लिया है. अखबार लिखता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के आग्रह पर पाकिस्तान अफगान तालिबान के साथ होने वाली बातचीत में मध्यस्थ की भूमिका अदा कर रहा है. अखबार पाकिस्तान को लेकर अमेरिका के रवैये में आई तब्दीली का श्रेय इमरान खान सरकार को देता है, जिसने उसके मुताबिक ट्रंप की धमकियों का उसी लहजे में जवाब दिया और दो टूक अंदाज में कह दिया कि पाकिस्तान अब दूसरों की जंग नहीं लड़ेगा.
अखबार कहता है कि ट्रंप अब भी पाकिस्तान, रूस और अफगानिस्तान से तालिबान के खिलाफ लड़ने को कह रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि 16-17 साल लड़कर क्या हासिल हुआ. अखबार लिखता है कि ट्रंप ने जो बातचीत का विकल्प चुना है, वो उसी पर कायम रहें क्योंकि यही अफगान समस्या का बेहतरीन हल है.
औसाफ लिखता है कि अहम बात यह है कि अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में भारत की दशकों पुरानी भूमिका पर असंतोष जताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का सवाल था कि भारत आखिर अफगानिस्तान की मदद क्यों नहीं करता है और अफगानिस्तान की जो मदद भारत कर रहा है, उससे कोई फायदा नहीं है. अखबार ने ट्रंप के बयान का जिक्र करते हुए लिखा है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार उनसे अफगानिस्तान में लाइब्रेरी बनवाने की बात की है, लेकिन यह किस काम आएगी.
अखबार की टिप्पणी है कि अमेरिका पाकिस्तान की अहमियत समझ कर आगे बढ़ता है तो हालात बेहतरी की तरफ जाएंगे. अखबार कहता है कि नए साल के मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति के संदेश से जाहिर होता है कि पाक-अमेरिकी रिश्तों में जमी बर्फ आखिरकार पिघलने लगी है और अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री पर जिस तरह से खुलकर अविश्वास जताया है, वो तारीफ के काबिल है.
तंज से सावधान
रोजनामा मशरिक लिखता है कि अगर राष्ट्रपति ट्रंप को अपने नामुनासिब रवैये का अहसास हो गया है और वो पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर करना चाहते हैं तो यह एक खुशखबरी है. साथ ही अखबार ने भारत के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति के तंज से सावधान रहने को कहा है. उसका कहना है कि जिस तरह से अमेरिका हमेशा भारत को अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका देने की कोशिश करता रहा है, उसे देखते हुए यह कोई चाल भी हो सकती है. बावजूद इसके, मशरिक भी ट्रंप के रवैये में तब्दीली को दोनों के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने के संकेत मान रहा है.
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