पाकिस्तान के उर्दू अखबारों में इन दिनों दो खबरों की भरमार है. एक तरफ आर्थिक मदद का वादा करने के लिए चीन का गुणगान चल रहा है, वहीं ईशनिंदा के मामले में ईसाई महिला आसिया बीबी की रिहाई पर हंगामे की गूंज है. कोई कट्टरपंथियों के साथ सरकार की डील हो जाने पर खुशी मना रहा है तो कहीं आसिया बीबी के हक में आवाज बुलंद करने वाले पश्चिमी देशों को बुरा-भला कहा जा रहा है.
दरअसल इमरान खान की सरकार ने कट्टरपंथियो के आगे घुटने टेकते हुए आसिया बीबी के पाकिस्तान छोड़ने पर रोक लगा ही है. आसिया बीबी को सुप्रीम कोर्ट में बरी किए जाने पर आग बबूला कट्टरपंथी उसे फांसी के तख्ते पर झूलते देखना चाहते हैं और अब वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए याचिका डाल रहे हैं, जिस पर इमरान सरकार को कोई आपत्ति नहीं. यही नहीं, 3 दिन तक देश भर में तोड़फोड़ कर तांडव मचाने वाले कट्टरपंथियों को यूं ही छोड़ दिया गया है.
आफत में आसिया
जसारत अखबार के संपादकीय की पहली लाइन से ही पता चल जाता है कि वो किस कदर कट्टरपंथी रवैया रखता है. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बरी किए जाने के बावजूद अखबार ने आसिया बीबी को 'आसिया मलूना' लिखा है. मलूना का मतलब है वो व्यक्ति जिस पर लानत हो.
इसके साथ ही अखबार ने आसिया बीबी को बरी करने के फैसले का स्वागत करने पर अमेरिका और ब्रिटेन को लताड़ा है. अखबार कहता है कि यह दोनों ही ऐसे देश हैं जहां गैर-ईसाइयों और खास कर मुसलमानों के साथ भेदभाव होता है. अखबार के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन और उनके दूसरे यूरोपीय मुल्क यही बता दें कि अफगानिस्तान और इराक में लाखों मुसलमानों का कत्ल किस बुनियाद पर किया गया. जो आज भी जारी है.
रोजनामा औसाफ लिखता है कि सरकार और कट्टरपंथियों के बीच डील होने के बाद विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला थम गया है जिससे देश भर के लोगों ने राहत की सांस ली है.
अखबार की राय है कि यह डील किसी की हार या किसी की जीत नहीं है बल्कि मौजूदा हालात में ऐसा समझौता एक अच्छी बात है जिससे नागरिक और व्यक्तिगत आजादियां बहाल हुई हैं और सरकार की रिट कायम हुई है. अखबार ने आसिया बीबी को बरी करने के फैसले की समीक्षा के लिए दायर याचिका को मुद्दई का कानून हक बताया है. अखबार ने तोड़फोड़ करने वालों को बिना किसी कार्रवाई के रिहा करने समेत डील के हर बिंदु का स्वागत किया है. इससे कट्टरपंथियों की तरफ उसका झुकाव साफ जाहिर होता है.
देश को बंधक बनाने वाले
नवा ए वक्त ने लिखा है कि जिन लोगों ने तोड़फोड़ की और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, उनके साथ नरमी नहीं होनी चाहिए. अखबार की राय है कि विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए, लेकिन किसी को यह भी नहीं लगना चाहिए कि सरकार कमजोर है. अखबार की राय में, आसिया बीबी के मामले में कानून अपना रास्ता निकालता रहेगा, लेकिन देश को बंधक बनाने की राह पर आगे बढ़ने वाले तत्वों को हर हाल में हतोत्साहित किया जाना चाहिए.
रोजनामा दुनिया लिखता है कि 3 दिन के विरोध, लॉकडाउन और कारोबारी गतिविधियां ठप होने की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को अनुमानित 150 अरब रुपए का नुकसान हुआ है. अखबार की राय है कि जब देश पहले ही आर्थिक संकट से गुजर रहा हो तो इस तरह के नुकसान को कैसे उचित ठहराया जा सकता है. अखबार के मुताबिक, हमें समझना होगा कि 20 करोड़ की आबादी वाले इस मुल्क की जरूरतें पूरी करने की जो चुनौतियां हमारे सामने खड़ी हैं, उन्हें देखते हुए आर्थिक गतिविधियां बाकायदा से चलते रहना जरूरी है.
डूबते को चीन का सहारा
आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहे पाकिस्तान को इस बीच कुछ अच्छी खबरें भी मिल रही हैं. चीन की तरफ से मदद के वादे पर रोजनामा खबरें ने संपादकीय लिखा है: सऊदी अरब के बाद चीन ने भी इमरान खान को गले से लगा लिया. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के पहले चीन दौरे का जिक्र करते हुए अखबार ने लिखा है कि पाकिस्तान को चीन से सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना) से जुड़े कामों के लिए 6 अरब डॉलर का पैकेज जबकि डेढ़ अरब डॉलर का अतिरिक्त कर्ज मिलने की संभावना है. अखबार ने चीन से पहले सऊदी अरब की तरफ से भी इसी तरह के संकेत मिलने के बाद सवाल किया है कि क्या अब भी पाकिस्तान को आईएमएफ से कर्ज लेने की जरूरत है? अखबार के मुताबिक, जनता शायद यह सोचती है कि आईएमएफ से भी कुछ ना कुछ ले लिया जाए और यह बात शायद इमरान खान के जेहन में भी होगी कि उन्हें किफायत से काम लेना है. आखिर में अखबार कहता है कि देश से लूटी गई दौलत को जल्द से जल्द देश वापस लाया जाए.
नवा ए वक्त लिखता है कि इमरान खान की सरकार को विरासत में बर्बाद अर्थव्यवस्था मिली, खजाना खाली और अंदरूनी कर्जे खरबों में थे. अखबार की राय में, नई सरकार पर मित्र देशों के भरोसे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पाकिस्तान के मुश्किल हालात में उसकी मदद करने का संकेत दिया है. अखबार कहता है कि चीन में प्रधानमंत्री इमरान खान का न सिर्फ जोरदार स्वागत हुआ, बल्कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान आने का उनका निमंत्रण भी स्वीकार कर लिया.
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