पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया चीन दौरे में दोनों देशों ने फिर एक बार यारी दोस्ती की कमसें खाईं. ऐसे में, पाकिस्तानी उर्दू मीडिया को फिर एक बार चीन का गुणगान करने का मौका मिल गया है. बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भी वे सब बातें कहीं जो पाकिस्तान सुनना चाहता है. उन्होंने न सिर्फ दुनिया से आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान की तथाकथित कुरबानियों का सम्मान करने को कहा, वहीं हर हाल में पाकिस्तान के साथ खड़े रहने का वादा भी दोहराया.
इस सिलसिले में, पाकिस्तानी मीडिया में भारत का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. अखबारों ने भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए खतरा बताया है और अमेरिका को उसका सरपरस्त करार दिया है. हालांकि कुछ अखबार पाकिस्तान को अमेरिका से अपने बिगड़े रिश्ते सुधराने की नसीहत भी दे रहे हैं. म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बिगड़ते हालात पर भी पाकिस्तानी अखबारों में टिप्पणियां की गई हैं.
‘नवा ए वक्त’ ने अपने संपादकीय को हेडलाइन दी है- पाक चीन दोस्ती में अड़चन डालने की भारत की कोशिशों को हर हाल में कामयाब नहीं होने देना चाहिए. अखबार की नजर में, भारत के ‘विस्तारवादी इरादों’ से चीन और पाकिस्तान, दोनों को ही खतरा है, लेकिन अखबार को चीन की दोस्ती पर पक्का भरोसा है. अखबार के मुताबिक, भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान का मिसाली गठबंधन कायम हो चुका है. इसके साथ ही अखबार ने पाकिस्तान के ऊपर की गई चीन की तमाम मेहरबानियों को गिनाया है, जिसमें यूएन में पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक पाबंदियां लगवाने की भारत की कथित साजिशों पर वीटो करना और भारत को एनएसजी का सदस्य न बनने देना, खास तौर पर शामिल है. अखबार की राय में ट्रंप प्रशासन की तरफ से घेरा तंग किए जाने की वजह से पाकिस्तान को अब चीन जैसे दोस्त की पहले से भी ज्यादा जरूरत है. इसलिए अखबार की टिप्पणी है कि पाकिस्तान ऐसा कोई मौका न पैदा होने दे जिससे चीन की झुकाव भारत की तरफ हो.
डेली पाकिस्तान ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री के चीन दौरे को बेहद अहम बताया है. अखबार लिखता है कि हाल ही में ब्रिक्स देशों के घोषणापत्र में कुछ संगठनों के नाम लेकर आतंकवाद की निंदा की गई थी. जिसके बाद प्रोपेगेंडा का एक तूफान उठ गया और कुछ लोग चीन पाक दोस्ती को लेकर फिजूल के विश्लेषण भी करने लगे. अखबार के मुताबिक चीनी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि घोषणापत्र में ऐसा कुछ नहीं है जो उसमें डालने की कोशिश हो रही हैं और जिन संगठनों के नाम लिए गए हैं वे पहले से ही प्रतिबंधित हैं. अखबार के मुताबिक चीनी विदेश मंत्री ने एक बार फिर पाकिस्तान की उन कोशिशों की तारीफ की है जो वह आतंकवाद के खिलाफ कर रहा है.
रोजनामा दुनिया ने 1962 में सीमा विवाद को लेकर चीन और भारत के बीच छिड़ी लड़ाई का जिक्र करते हुए लिखा है कि उस वक्त चीन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से कटा था और पाकिस्तान ने उसका भरपूर साथ दिया. अखबार के मुताबिक, इसी वजह से पाकिस्तान और चीन दोस्ती के मजबूत रिश्ते में बंधने शुरू हो गए. अखबार ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर समझौते को पूरी दुनिया के लिए गेमचेंजर बताया है और साथ ही भारत, इजरायल और अमेरिका जैसे देशों पर इसमें रोड़े अटकाने का आरोप लगाया है. अखबार ने पाकिस्तानी विदेश नीति को बेहतरीन बताते हुए यह भी सुझाव दिया है कि किसी एक देश पर पूरी तरह निर्भर होना सही नहीं है, इसीलिए पाकिस्तान को अमेरिका समेत पूरी दुनिया से रिश्ते बेहतर करने चाहिए. अखबार के मुताबिक अमेरिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह दुनिया का सबसे प्रभावशाली देश है.
मुश्किल में रोहिंग्या
उधर ‘जंग’ ने म्यांमार में रोहिंग्या संकट को अपने संपादीय में उठाते हुए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से तुरंत इस तरफ ध्यान देने को कहा है. अखबार लिखता है कि पाकिस्तान और दूसरे मुसलमान देशों के अलावा अमेरिका और यूरोप में भी रोहिंग्या मुसलमानों के लिए प्रदर्शन हुए और उन पर हो रहे जुल्मों का विरोध किया गया है. लेकिन तुर्की को छोड़ कर किसी भी देश ने सरकारी स्तर पर इन मजलूमों की मदद के लिए ठोस कदम नहीं उठाया है.
अखबार लिखता है कि 57 इस्लामी देशों का संगठन आईओसी, पूरी दुनिया की नुमाइंदी करने वाला संयुक्त राष्ट्र और दर्जनों मानवाधिकार संगठन जुबानी जमा खर्च से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं. अखबार के मुताबिक यह बेहद संगीन मामला है जिसे जल्द से जल्द नहीं हल किया गया तो यह इतिहास के बदतरीन मानवीय संकटों में से एक बन जाएगा.
वहीं ‘औसाफ’ ने रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर अरब देशों की चुप्पी पर सवाल उठाया है. अखबार के मुताबिक बदकिस्मती की बात है कि अरब देश और खास कर सऊदी अरब और खाड़ी देशों में शासक और वहां के अरब बाशिंदे बदस्तूर अपनी मौज मस्ती में डूबे हैं और कोई भी एक मुसलमान रोहिंग्या लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए अपने घर से नहीं निकला. खास कर सऊदी अरब को आड़े हाथ लेते हुए अखबार लिखता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को बेशकीमती तोहफे देने वाले, तलवार पेश करने वाले और ट्रंप का मुंह चूमने वाले शासक भारत के कट्टरपंथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेपनाह उल्फत दिखाते हैं लेकिन मुसीबतों के मारे रोहिंग्या मुसलमानों के लिए उन्होंने कोई सरगर्मी नहीं दिखायी है और इस बात से मुस्लिम दुनिया में चिंता की लहर दौड़ गयी है.
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