भारत में इन दिनों जहां यह बहस छिड़ी है कि भारत में इमरजेंसी का दौर वापस आ गया है और सरकार ने अप्रत्यक्ष तौर पर मीडिया पर सेंसरशिप लागू कर दी है. वहीं म्यांमार की एक घटना ने यह साफ कर दिया कि मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर चल रही यह बहस केवल भारत तक सीमित नहीं है.
म्यांमार में सेना की तरफ से रोहिंग्या शरणार्थियों पर हो रही हिंसा की रिपोर्टेिंग के दौरान रॉयटर्स के दो रिपोर्टर दिसंबर से जेल में हैं. इनके नाम वा लोन और क्याव सोय हैं. इनपर आरोप है कि उन्होंने कुछ गुप्त दस्तावेज निकालने का प्रयास किया है.
Myanmar judge jails Reuters reporters for 7 years for breach of state secrets act, reports AFP
— ANI (@ANI) September 3, 2018
पत्रकारों को दो पुलिसकर्मियों से मुलाकात के बाद 12 दिसंबर 2017 की रात को गिरफ्तार कर लिया गया था. सरकार का मानना है कि पुलिसकर्मियों ने ही इन पत्रकारों को गोपनीय दस्तावेज सौंपे थे. दोनों ही पत्रकारों को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट (शासकीय गोपनीयता अधिनियम) के तहत दोषी पाया गया है और उन्हें सात साल जेल की सजा सुनाई गई है.
बीते दिसंबर से ही ये दोनों पत्रकार बिना किसी जमानत के जेल में सजा काट रहे हैं. हालांकि मामले की जांच चल रही है, लेकिन सजा काट रहे पत्रकारों में से एक वा लोन का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया इसलिए उन्हें किसी बात की डर नहीं है. न्याय, लोकतंत्र और आजादी पर वह पूरा विश्वास करते हैं.
वहीं रॉयटर्स ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार है. आज का दिन म्यांमार और प्रेस के लिए निराशाजनक है.
United Nations in Myanmar calls for release of two jailed Reuters journalists, reports AFP https://t.co/apnX4mk1Im
— ANI (@ANI) September 3, 2018
मामले में हस्तक्षेप करते हुए आज ही संयुक्त राष्ट्र ने दोनों ही पत्रकारों को जल्द से जल्द छोड़ने की मांग की है.
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