प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक खासियत है. वह जब किसी विदेशी नेता से मिलते हैं तो पूरी गर्मजोशी से. डोनाल्ड ट्रंप से उनकी मुलाकात में भी वह गर्मजोशी दिखाई दे रही थी. अपनी ओर से ट्रंप ने भी कोई कसर नहीं रखी.
हाथ मिलाने से शुरू हुआ सिलसिला गले मिलने से पूरा हुआ. मोदी ने ट्रंप और फर्स्ट लेडी को उपहार दिए तो ट्रंप ने मोदी को अपने वर्किंग डिनर का मेहमान बनाया. ट्रंप ने मोदी को एक महान प्रधानमंत्री बताते हुए उनके काम की तारीफ भी की. उन्होंने यह बात भी याद दिलाई कि दोनों नेता 'सोशल मीडिया' पर काफी सक्रिय हैं और इसलिए लोगों से सीधे जुड़े हुए हैं.
संकेतों और प्रतिमानों से नजरियों से देखें तो भारत और अमेरिका के रिश्तों के लिए इससे अच्छा क्या हो सकता था. ऐसा लगा कि बराक ओबामा से 'दोस्ती' की बातें करने वाले पीएम मोदी ने ट्रंप के साथ भी साथी वाला मुकाम हासिल कर लिया है. लेकिन इन संकेतों के परे जाएं तो मोदी की यात्रा और दोनों देशों के बीच वार्ता को इस बात पर परखने की जरूरत है कि आखिर इससे हमें क्या मिला?
सुरक्षा और आतंकवाद पर शुभ संकेत
भारत-अमेरिका के साझा बयान में आतंकवाद के खतरे पर खुलकर बात की गई है और कट्टर इस्लामिक आतंकवाद को मिलकर खत्म करने का संकल्प लिया गया है. इस बयान में पाकिस्तान और चीन की ओर इशारों-इशारों में प्रहार भी किए गए हैं. पाकिस्तान की 26/11 मुंबई हमले और भारत में अन्य आतंकी हमलों पर उचित कार्रवाई न करने के लिए भी खिंचाई की गई. साथ ही उसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया आतंकी गतिविधियों को पनाह न दे.
जाहिर है भारत के लिए यह अच्छी खबर है. लेकिन आतंकवाद के खिलाफ ऐसे संकल्प पहले भी लिए जाते रहे हैं. अतीत में अमेरिकी हित हमेशा आतंकवाद के मामले में ठोस कार्रवाई में आड़े आते रहे हैं. भारत के लिए जरूरी है कि बयान से आगे बढ़कर अमेरिका कुछ कड़े कदम भी उठाए. ट्रंप चीन और पाकिस्तान के बड़े फैन नहीं हैं और भारत को इसका फायदा उठाने की जरूरत है.
अमेरिका ने इस बैठक से ऐन पहले हिजबुल प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर अच्छी पहल की. अब इस पहल को आगे बढ़ाने की जरूरत है.
ट्रंप का मंत्र- डिफेंस, डिफेंस, डिफेंस
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को एक कुशल बिजनेसमैन और डीलमेकर मानते हैं. वह इसी क्षमता का बखान कर सत्ता तक भी पहुंचे हैं.
भारत के साथ रिश्तों में भी ट्रंप का फोकस डील पर ही रहा. ट्रंप ने इस बात पर खुशी जताई कि भारत अमेरिका से लड़ाकू विमानों की खरीद कर रहा है. साथ ही दो अरब डॉलर के ड्रोन सौदे की भी चर्चा है.
भारत को यह समझने की जरूरत है कि ट्रंप के लिए भारत और अमेरिका के बीच मजबूत संबंध का मुख्य पहलू व्यापार है और अगर भारत के साथ अमेरिका को व्यापारिक फायदा नहीं हुआ तो ट्रंप का रुझान भारत से हट भी सकता है. ट्रंप के अधिकांश समर्थकों के लिए भारत एक ऐसा देश है जिसने उनकी नौकरियां छीनी हैं. ऐसे में ट्रंप को उन्हें भरोसा दिलाना होगा कि भारत से दोस्ती फायदेमंद है और इससे अमेरिका में नौकरियां पैदा होंगी.
एच1बी वीजा और अन्य मुद्दों पर खामोशी
ट्रंप ने भारतीय अर्थव्यवस्था की तारीफ की है और उसकी सफलता में निवेश की बात कही है. हालांकि अभी तक ट्रंप ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे भारत को कोई व्यापारिक फायदा हो. एच1बी वीजा पर ट्रंप प्रशासन के नियमों से भारत से अमेरिका जाने वाले पेशेवरों के लिए राह मुश्किल हुई है.
उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्रंप से मुलाकात से दौरान यह मुद्दा उठेगा लेकिन न तो इस पर कोई बात हुई और न ही इसके बारे में संयुक्त बयान में कुछ कहा गया. भारतीय पेशेवरों की इस बड़ी चिंता पर मोदी की इस यात्रा से कोई बड़ी राहत मिलती नहीं नजर आ रही है.
कुल मिलाकर मोदी और ट्रंप की मुलाकात की सफलताएं धरातली से ज्यादा सांकेतिक हैं. सबसे अच्छी बात है कि इससे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और दुनिया के सबसे ताकतवर देश के नेताओं के बाद आपसी समझ और दोस्ती के संकेत मिले हैं.
हालांकि ऐसा पहले भी होता रहा है कि शानदार व्यक्तिगत रिश्तों के बाद भी भारत-अमेरिका संबंध आगे नहीं बढ़े हैं. अमेरिका के लिए जहां भारत में नीतिगत फैसलों की धीमी गति एक बड़ी समस्या रही है, वहीं अमेरिका अपने स्थानीय और वैश्विक हितों के कारण पाकिस्तान और अन्य मुद्दों पर खुलकर भारत का समर्थन नहीं कर पाया है.
मोदी और ट्रंप की मुलाकात गर्मजोशी और खुशनुमे माहौल में हुई है लेकिन इस मुलाकात के ठोस परिणाम दिखने तक बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है.
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