श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने फैसला किया है कि श्रीलंका में मौजूदा राजनीतिक और संवैधानिक संकट को समाप्त करने के लिए कोई मध्यावधि चुनाव या राष्ट्रीय जनमत संग्रह नहीं कराया जाएगा. राष्ट्रपति के एक करीबी सहयोगी ने यह जानकारी दी.
सिरीसेना की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के महासचिव रोहन लक्ष्मण पियादासा ने पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में बताया, 'संसद नहीं भंग की जाएगी और न ही जनमंत संग्रह होगा.' पियादासा ने इन अफवाहों पर विराम लगाने की कोशिश की कि सिरीसेना संसद भंग करने के साथ समय से पहले चुनाव करा सकते हैं. संसद का कार्यकाल अगस्त 2020 तक है.
दरअसल, सिरीसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर उनकी जगह उनके पूर्व प्रतिद्वंद्वी महिंदा राजपक्षे को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. इससे देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया. विक्रमसिंघे ने इसे मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने संसद में अपनी बहुमत साबित करने के लिए संसद का सत्र बुलाने की मांग की. सिरीसेना ने संसद 14 नवंबर तक निलंबित कर दिया है.
इससे पहले संसद अध्यक्ष कारू जयसूर्या ने सिरिसेना से मुलाकात की थी और इस राजनीतिक संकट को हल करने के लिए संसद बुलाने का आग्रह किया था. श्रीलंका में राष्ट्रपति सिरिसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था. उनकी जगह राजपक्षे को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्ति किया था. जिसके बाद श्रीलंका में ये संकट पैदा हुआ. साथ ही जयसूर्या का कहना है कि उनके पास 125 सांसदों के हस्ताक्षर हैं और सांसदों ने उनसे संसद बुलाने का आग्रह किया है. इससे इस बात का पता चल सकेगा कि किस पार्टी को बहुमत हासिल है.
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