यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के ऐतिहासिक ऐलान की जल्दबाजी के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मंशा समझ से परे है. अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम शिफ्ट करने की जल्दबाजी दिखाना भी असंवेदनशील लगता है.
यरुशलम तीन प्रमुख धर्मों के संगम का शहर है जो एक दूसरे से बेहद करीब से जुड़े हैं. यहां अल-अक्सा मस्जिद, वेलिंग वॉल और चर्च ऑफ होली सपुखर- इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म के बड़े प्रतीकों में से एक हैं.
हालांकि साल 1980 में इजरायल ने पूर्वोत्तर हिस्से पर कब्जा जमाने के साथ ही यरुशलम को अपनी सनातन राजधानी करार देने में देरी नहीं की थी. लेकिन ना सिर्फ संयुक्त राष्ट्र बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी इजरायल के इस कदम के प्रति कभी सहमति नहीं जताई थी.
हाल ही में पोप फ्रांसिस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इन शब्दों के साथ चेताया था, 'हाल के दिनों में जिन बातों पर गंभीर चिंता जाहिर की गई है उन्हें मैं खामोश नहीं कर सकता. लेकिन मैं पूरजोर अपील करना चाहूंगा कि यूएन रेज्यूलेशन के मुताबिक ही इस शहर की यथास्थिति बनी रहे.'
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संयुक्त राष्ट्र ने अगस्त 1980 में पूर्वी यरुशलम के इलाकों को हड़पने पर आपत्ति भी जताई थी. और इस विकल्प को सिरे से खारिज कर दिया था कि आंशिक या पूर्ण रूप से ये इलाका कभी इजरायल की राजधानी भी बन सकता है. तब संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को चेतावनी तक दी थी कि ऐसा कोई भी दावा अवैध करार दिया जाएगा.
23 दिसंबर 2016 को रेजोल्यूशन 2334 को अपनाया गया. जिसके पक्ष में 14 वोट और विपक्ष में एक भी वोट नहीं दिया गया. जबकि वीटो पावर रखने वाले 5 देशों में सिर्फ अमेरिका ही इस वोटिंग से तब दूर रहा था. इस रेजोल्यूशन में साफ कहा गया था कि ऐसे इलाकों को हड़पने की इजरायल की नीति अंतर्राष्ट्रीय कानून का 'निंदात्मक उल्लंघन' है और इसकी 'कानून वैधता नहीं' है.
अब जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यरुशलम को राजधानी मानने का एकतरफा ऐलान कर दिया है, तब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतरेस ने कहा है कि यरुशलम की स्थिति का निर्णय बातचीत के जरिए होना चाहिए. पेन्सिलवेनिया एवेन्यू में उन्होंने कहा, 'इस वक्त मैं साफ करना चाहता हूं कि दो राज्य समाधान का कोई दूसरा विकल्प नहीं है'.
इस गंभीर मुद्दे पर एकतरफा कदम बढ़ाकर ट्रंप ने पूरी दुनिया से चुनौती मोल ले ली है. फिलिस्तीन में आज सुबह लोग इसे जंग की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं. और हमास पहले ही कह चुका है कि वह हिंसा के लिए तैयारी कर रहा है, जो तीसरे इंतिफादा की शुरुआत हो सकती है. तुर्की नेता कह चुके हैं कि ये इलाका रिंग ऑफ फायर में तब्दील हो चुका है. मौजूदा संघर्ष के चलते मध्य एशिया अब एक ऐसे ग्रेनेड का सामना कर रहा है जिससे पिन निकाला जा चुका है.
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शांति प्रक्रिया की आवाज खामोश हो चुकी है. इस दिशा में राजनीतिज्ञों और महिलाओं की कोशिशें दम तोड़ चुकी हैं. मीडिया इस लाल रेखा को क्रॉस करने पर नाराजगी जताता रहा है और मानता है कि इससे अंसतोष आक्रमक हो जाएगा. जबकि अमेरिकी दूतावास कठोर प्रतिक्रिया के लिए तैयार दिखता है. यहां तक कि फ्रांस और ब्रिटेन भी इस कदम की आलोचना कर रहे हैं. जबकि अमेरिका के सबसे कट्टर दोस्त सऊदी अरब भी इसे 'गैरजिम्मेदार' बता रहा है.
यमन पहले से ही जल रहा है. आतंकी संगठन आईएसआईएस और मित्र राष्ट्रों की सेना के बीच जारी जंग किसी नतीजे पर अभी नहीं पहुंची है. ऐसे हालात में अमेरिकी राष्ट्रपति का ये कदम इस पूरे इलाके को और ज्यादा अस्थिर कर सकता है. यहां तक कि भविष्य में मध्य एशिया में इसके चलते तेल और गैस का संकट पैदा हो सकता है. और तो और इस कदम से अमेरिका और मध्य एशिया के देशों के बीच व्यापारिक संबंधों पर भी असर पड़ सकता है.
विडंबना देखिए कि इराक चाहता है कि अमेरिका इस फैसले को वापस ले. तो ईरान की नजरों में अमेरिका का ऐसा कदम मुसलमानों को उकसा सकता है. यहां तक कि इसके चलते कट्टर और हिंसात्मक प्रवृतियों को बढ़ावा मिलेगा. मतलब साफ है कि इराक और इरान जैसे कट्टर दुश्मन भी ऐसे दैत्य के खिलाफ लड़ने के लिए एक हो सकते हैं. हथियार के लिए जो आवाज बुलंद हो रहीं हैं उनका शोर थमने वाला नहीं है. नतीजा क्या होगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. यह बहुत ही विस्फोटक स्थिति है.
निकट भविष्य में जंग के लिए हमास की अपील चिंता की सबसे बड़ी वजह है. अमेरिकी राष्ट्रपति का ये ऐलान भले किसी धमाके की तरह लगे लेकिन जमीनी स्थिति इसके ठीक उलट है. इस फैसले के खिलाफ आक्रोश की आग लागातार बढ़ती जा रही है जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है, 'मैं ये निर्णय कर चुका हूं कि आधिकारिक तौर पर वक्त आ चुका है कि यरुशलम को इजरायल की राजधानी मान लिया जाना चाहिए'. व्हाइट हाउस में दिए गए एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा, 'ये किसी वास्तविकता को मानने से ज्यादा और कम नहीं है. ये करने को सही बात है.'
यह बयान किसी को खुश नहीं कर सकता है. उल्टे संयुक्त राष्ट्र की नसीहतों को ना मानकर उन्होंने वैश्विक संस्था को एकतरफा नुकसान पहुंचाया है. यही नहीं उन्होंने मध्य एशिया की स्थिति को और विस्फोटक बनाया है तो साथ ही हर अमेरिकी नागरिक को जोखिम में डाल दिया है.
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