‘इमरान खान ने ऐसी गूगली फेंकी कि हिंदुस्तान को मजबूरन अपने मंत्रियों को सरहद पार भेजना ही पड़ा’. गूगली का मकसद ही धोका देना या भुलावे में डालना होता है, ये क्रिकेट प्रेमी हिंदुस्तान और पाकिस्तान में हर कोई समझता है. करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का ये बयान पाकिस्तान की चाल और नीयत दिखाता है.
ये चाल थी कि उद्घाटन के बहाने भारतीय मंत्री पाकिस्तान जाएं और गूगली से भारत और दुनिया इस धोखे में आ जाए कि पाकिस्तान की नीयत दोस्ती की है, लेकिन करतारपुर गलियारे के उद्घाटन को अमन की राह हरगिज़ नहीं माना जाना चाहिए. इसमें कोई शक नहीं कि ये एक अच्छी शुरुआत है और लोगों के बीच संपर्क बढ़ना हमेशा बेहतर होता है लेकिन इस पर हद से ज्यादा उम्मीद टिका देना सही नहीं होगा.
विदेश मंत्री किसी राज्य के चुनाव कैंपेन को इस से ज्यादा तरजीह क्यों दे रही थीं
पाकिस्तान की यारी दिलदारी और दरियादिली पर मीडिया में वाह-वाह हुई और इत्तेफाक ये कि सरकार ने उद्घाटन के लिए दिन चुना 26 नवंबर का दिन. दस साल पहले इसी दिन पाकिस्तानी आतंकियों ने मुंबई पर हमला कर हिंदुस्तान के दिल को हिला दिया था. 26 /11 के दस साल को भुलाकर सारा ध्यान करतारपुर पर लगा दिया गया.
करतारपुर गलियारा अमन का गलियारा नहीं हो सकता ये विदेश मंत्री ने भी साफ कर दिया. शांति वार्ता और करतारपुर एक दूसरे से अलग हैं लेकिन इसके बावजूद भारत सरकार का करतारपुर पर रवैय्या बड़ा असमंजस वाला रहा है, जिसके पीछे नीति या साफ सोच की कमी झलकती है. प्रधानमंत्री मोदी ने आदतन इस मौके को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हुए करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन का मुकाबला बर्लिन की दीवार गिरने से कर दिया. अगर ये इतना ही अहम लम्हा था तो फिर विदेश मंत्री किसी राज्य के चुनाव कैंपेन को इस से ज्यादा तरजीह क्यों दे रही थीं.
सवाल उठता है कि ऐसी मिसाल देने से पहले क्या सरकार का इतिहास बोध बिलकुल ही शून्य हो गया था? शायद एहसास भी.. क्योंकि दिन भी चुना गया वो जिस दिन पाकिस्तान ने मुंबई पर हमला करवाया था..
न ही ये मौक़ा बर्लिन की दीवार गिरने जैसा था, न ही radcliffe रेखा जल्द मिटने वाली है. भारत के सार्क शिखर सम्मलेन में शामिल होने से इनकार से ही ये साफ है. भारत ने साफ़ किया है कि जबतक पाकिस्तान आतंकवाद का निर्यात बंद नहीं करता तबतक द्विपक्षीय या किसी और स्तर पर आधिकारिक बातचीत का कोई मतलब नहीं.
ये भी पढ़ें: सऊदी अरब झूठ बोल रहा है, लेकिन फिर भी ट्रंप मेहरबान क्यों हैं?
बावजूद इसके करतारपुर पर भारत सरकार की हां और एक तरह से U टर्न पर सवाल बना हुआ है. पाकिस्तान ने जो किया उसकी उससे उम्मीद थी.. सवाल भारत की प्रतिक्रिया पर है. कुछ महीने पहले भारत ने पाकिस्तान के इस खेल को ताक़ पर रख दिया था, लेकिन अचानक कैबिनेट ने इसे हरी झंडी दिखा दी. तो सवाल उठता है कि कुछ हफ़्तों में क्या बदल गया?
क्या अंतर्राष्ट्रीय दबाव था या फिर वाकई नवजोत सिंह सिद्धू की झप्पियां और कॉमेडी शो ने सरकार को दबाव में डाल दिया. वैसे भी सिद्धू करतारपुर के हीरो बनने में कामयाब रहे हैं. भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इसमें शामिल नहीं थीं, लेकिन उनके दोनों सहयोगी हरदीप सिंह पुरी और हरसिमरत बादल वहां मौजूद होकर भी नवजोत सिंह सिद्धू जैसा इस्तकबाल नहीं ले पाए. वो तस्वीरों से भी अक्सर गायब ही थे. क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू और इमरान खान के सर वो सेहरा बांध दिया गया जो दरअसल 20 साल पुरानी पेशकश और लंबी प्रक्रिया का नतीजा है. सिद्धू और इमरान खान का एक दूसरे के लिए प्यार इस मौके पर बार-बार उमड़ा. इमरान ने कहा, सिद्धू तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत जाएंगे, और सिद्धू ने अपने यार दिलदार को फ़रिश्ता बता दिया..
अब भले ही अमित शाह सवाल उठाए कि कांग्रेस ने बंटवारे के वक़्त क्यों सिखों के सबसे पवित्र स्थल को पाकिस्तान के हवाले कर दिया था.
सवाल पाकिस्तान की पेशक़दमी पर भी है. क्यों इमरान खान दो क़दम आगे बढ़कर करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन अभी करवाने को तत्पर हैं... यकीनन ये क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू का जादू नहीं है जो बजवा पर भी छा गया है. ऐसा भी कोई सबूत सामने नहीं आया है जिससे ये मान लिया जाए कि वाकई पाकिस्तान की नीयत बदल गई है और वो हिंदुस्तान से अमन कायम करना चाहता है.. बल्कि आतंक को हवा देने में अब न सिर्फ कश्मीर बल्कि पंजाब में भी पाकिस्तान के सक्रिय होने की चर्चा है जैसे कि हाल में निरंकारी समारोह पर हुआ हमला.
आतंकवाद के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग पड़ा है पाकिस्तान, अभी-अभी अमेरिकी आर्थिक मदद में भी इस वजह से कम की गई है कि पाकिस्तान ने आतंक पर काबू पाने के लिए कुछ नहीं किया. ऐसे में वो भारत से दोबारा बातचीत शुरू करने का फरेब लगातार फैला रहा है. 2016 में भारत में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ सामने आने के बाद हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच आधिकारिक बातचीत बंद है.
हिंदुस्तान पाकिस्तान के रिश्तों की बुनियादी हकीक़त नहीं बदलते
नीयत तो उस वक़्त भी साफ़ झलक रही थी जब इस अमन की पहल के मौके पर एक खालिस्तानी समर्थक गोपाल सिंह चावला को अगली कतार में जगह दी गई और वो सेनाध्यक्ष बाजवा से हाथ मिलाता नज़र आया, उसी प्लेटफॉर्म से फ़रिश्ते इमरान खान ने फिर कश्मीर का मसला उठाया, कि भारत पाकिस्तान के बीच बस यही एक मसला है और दूसरी तरफ पाकिस्तान की दरियादिली की वाहवाही हुई कि उन्होंने सिख श्रद्धालुओं को गुरु नानक देव के पवित्र स्थल के दर्शन की इजाज़त दी.
ये याद रखना ज़रूरी है कि पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना था लेकिन वो धीरे-धीरे कट्टर होता गया है और इस्लाम में भी अलग-अलग धाराएं इन कट्टरपंथियों को मंज़ूर नहीं. तभी शिया मुसलमानों पर हमले होते रहते हैं. पाकिस्तान की सेना के वजूद की वजह ही हिंदुस्तान के खिलाफ जंग छेड़ना है जिसे फ्रेंच में कहते हैं ‘raison de attre’ पाकिस्तान के नेताओं को अपने मुल्क में अपनी जगह बनाए रखने के लिए ये ख्वाब बेचना है कि हिंदुस्तान के खिलाफ एक दिन जीत होगी. इस बात को ध्यान में रख कर ही पाकिस्तान की दोस्ताना पहल पर ऐतबार करना चाहिए.
ये भी पढ़ें: बॉलीवुड का दीवाना मिस्र, जिसका कभी न हारने वाला शहर अल काहिरा जिंदा है
करतारपुर कॉरिडोर का खुलना एक अहम क़दम है लेकिन याद रखना ज़रूरी है कि अगला क़दम शांति प्रक्रिया की शुरुआत नहीं.. भारत ने पहले भी पाकिस्तान के छल की भारी कीमत चुकाई है. इस मौके पर एक दूसरे को फ़रिश्ता और प्यार का दूत बताने वाले ये भाषण मगर हिंदुस्तान पाकिस्तान के रिश्तों की बुनियादी हकीक़त नहीं बदलते.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.