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भारत चीन को जवाब दे 'हम किसी से कम नहीं'

हमें चीन को अपने तरीके से बताना होगा कि भारत किसी से कम नहीं

Updated On: Jul 06, 2017 08:56 AM IST

Vivek Katju

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भारत चीन को जवाब दे 'हम किसी से कम नहीं'

पिछले कुछ साल से चीन बेहद आक्रामक विदेश नीति पर अमल कर रहा है. ये सिलसिला शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने से शुरू हुआ था. जिनपिंग के राज में चीन ने खुलकर अपनी आर्थिक और सामरिक ताकत का मुजाहिरा किया है. अक्सर इसका मकसद दूसरे देशों को सख्त संदेश देने के लिए किया गया है.

सिक्किम के डोका ला में चीन और भारत के बीच उठा हालिया विवाद इसी कड़ी में देखा जा रहा है. चीन आमतौर पर भी सीमा विवाद को लेकर आक्रामक रहा है. लेकिन जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद उसका रुख और कड़ा हो गया है.

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सीमा विवाद के बीच भारत ने भी दिखाया है कि वो मजबूती से अपने हितों की रक्षा के लिए खड़ा है और वो चीन के दबाव में झुकेगा नहीं. चीन ने हालिया विवाद को लेकर कुछ ज्यादा ही आक्रामक रुख दिखाया है. उसके प्रवक्ताओं के बयान से ये बात साफ तौर पर जाहिर हो रही है.

मंगलवार को ही भारत में चीन के राजदूत ने विवाद को लेकर बेहद कड़ा बयान दिया. चीन के राजदूत ने भारत के विदेश मंत्रालय के बयान को सिरे से खारिज कर दिया. भारत ने कहा था कि डोका ला में चीन की हरकतें, भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं. लेकिन चीन के राजदूत ने इस दावे को सिरे से नकार दिया.

india china

चीन के राजदूत ने सिक्किम में ताजा विवाद को पिछले कुछ सालों में हुए सीमा विवाद जैसा मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि भूटान और चीन के बीच सीमा को लेकर जो बातचीत चल रही है, उसमें भारत का कोई रोल नहीं. ऐसा कहने में चीन के राजदूत ये भूल गए कि वो पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर और उत्तरी इलाकों में दखल देते आए हैं.

चीन ने इस इलाके को 1962 के बाद से ही लीज पर ले रखा है. आज की तारीख में चीन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और उत्तरी इलाकों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कर रहा है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीइसी) इसी इलाके से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक मानता है.

चीन के राजदूत ने मांग की कि भारत, डोका ला से बिना शर्त अपनी सेना वापस बुलाए. इसके बाद ही दोनों देशों में कोई बातचीत हो सकती है. राजदूत के बयान से चीन की आक्रामक रणनीति साफ होती है. इस मौके पर देश को एकजुट होकर और पूरी मजबूती से चीन के कड़े रुख का सामना करना होगा.

डोका ला में चीन की हरकतों से साफ है कि शांतिपूर्ण तरीके से तरक्की का उसका दावा एकदम खोखला है. भारत के लिए बड़ी चुनौती ये है कि वो पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ से कैसे निपटे. चीन, पिछले कई दशकों से पाकिस्तान की सामरिक ताकत बढ़ाने में मदद करता रहा है. साथ ही भारत की राह में रोड़े भी अटकाता रहा है.

जैसे न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत के दाखिले को चीन ने रोक रखा है. मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को भी चीन कई बार वीटो कर चुका है. यही नहीं, चीन ने पाकिस्तान को एटमी हथियार और मिसाइलें बनाने की तकनीक भी मुहैया कराई है.

जैसे-जैसे भारत की ताकत बढ़ रही है, वैसे-वैसे चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ भी भारत के खिलाफ बढ़ता जा रहा है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा इसी की एक मिसाल है. ये दोनों ही देश भारत को दबाने के लिए एकजुट हुए हैं.

India-China

भारत को अपने हथियारों की संख्या बढ़ानी होगी

चीन और पाकिस्तान की साजिश से हम सब वाकिफ हैं. मई 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को लिखी चिट्ठी में इसका जिक्र किया था.

वाजपेयी ने लिखा था कि, 'हमारा एक पड़ोसी खुले तौर पर एटमी ताकत है. इस देश ने 1962 में भारत पर हमला भी किया था. पिछले कुछ बरसों में इस मुल्क से हमारे रिश्ते सुधरे हैं, मगर सीमा विवाद अभी तक हल नहीं हुआ है. इस वजह से दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हैं. इस माहौल में भारत के इस पड़ोसी देश ने हमारे एक और पड़ोसी को गुप-चुप तरीके से एटमी ताकत हासिल करने में मदद की है.'

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भारत के एटमी टेस्ट से नाराज अमेरिका ने वाजपेयी की ये चिट्ठी लीक कर दी थी. इससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी. चीन भी वाजपेयी की बातों से बेहद नाराज हुआ था. जबकि राजनयिक परंपरा के मुताबिक अमेरिका को ये चिट्ठी लीक नहीं करनी चाहिए थी. अमेरिका की हरकतों से भारत के हितों को चोट पहुंची थी.

भारत के परमाणु परीक्षण को लगभग बीस साल हो गए हैं. आज पाकिस्तान खुलकर एटमी हथियारों की नुमाइश करता है और हमें धमकियां देता है. उसको चीन की खुली शह हासिल है. दोनों देशों के भारत विरोधी गठजोड़ को देखते हुए हमें अपनी रणनीति को और मजबूत बनाना होगा. हमें अपनी सुरक्षा तैयारियों पर फोकस करना होगा.

चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए हमें अपने हथियारों की ताकत बढ़ानी होगी. साथ ही, जंग की सूरत में हमें एटमी हमले की तैयारियों पर भी ध्यान देना होगा. समंदर से एटमी हमला करने की हमारी ताकत अब भी अधूरी है. हमें इसके ट्रायल पूरे कर के जल्द से जल्द तैयार रहना होगा.

चीन के प्रति हमारी मौजूदा नीति की बुनियाद राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए डाली गई थी. राजीव गांधी ने कहा था कि सीमा विवाद के चलते हमें चीन के साथ बाकी क्षेत्रों में रिश्तों की तरक्की रोक नहीं सकते. इसके बाद हमने चीन के साथ करीबी कारोबारी रिश्ते बनाए.

आज की तारीख में भारत और चीन के बीच लगभग 70 अरब डॉलर का सालाना व्यापार होता है. भारत में चीन ने करीब 4 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है. बहुत से भारतीय नेता चीन के साथ सहयोग की नीति कि वकालत करते हैं. वो मुकाबले की बात को खारिज करते रहे हैं.

A signboard is seen from the Indian side of the Indo-China border at Bumla, in the northeastern Indian state of Arunachal Pradesh, November 11, 2009. With ties between the two Asian giants strained by a flare-up over their disputed boundary, India is fortifying parts of its northeast, building new roads and bridges, deploying tens of thousands more soldiers and boosting air defences. Picture taken November 11, 2009. REUTERS/Adnan Abidi (INDIA POLITICS MILITARY) - RTXQO7W

चीन के बढ़ते निवेश से पाकिस्तान का हौसला बढ़ा है

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि दोनों ही देशों के तरक्की करने की पर्याप्त गुंजाइश है. इसमें मुकाबले जैसी कोई बात नहीं. हालांकि रणनीतिक तौर पर ऐसे बयान ठीक लग सकते हैं. लेकिन, हमें चीन से उस खतरे को नहीं भूलना चाहिए, जिसका जिक्र वाजपेयी ने क्लिंटन को लिखी चिट्ठी में किया था.

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चीन से सहयोग के बीच हमें उसकी तरफ से चौकस रहना होगा. चीन अपनी ताकत के अहंकार में कभी भी भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

चीन और पाकिस्तान को लेकर हमें तीन बातें हमेशा ध्यान में रखनी होंगी.

पहली तो ये कि भारत को तेजी से पूर्वी और दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों से संबंधों का दायरा बढ़ाना होगा. भारत, प्रधानमंत्री मोदी की 'एक्ट ईस्ट' की नीति पर अमल करते हुए इस दिशा में आगे बढ़ रहा है. इससे चीन को संकेत जाएगा कि अगर वो भारत के प्रभाव वाले इलाके में दखल देगा, तो भारत भी चुप नहीं बैठेगा.

चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ को लेकर हमें ये मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान सुधरने वाला नहीं. चीन के बढ़ते निवेश से पाकिस्तान का हौसला बढ़ा है. हमें इस बात की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए कि पाकिस्तान से हमारे संबंध कभी सामान्य होंगे. हमें इसी बुनियाद पर अपनी पाकिस्तान नीति बनानी होगी.

दो देशों के नेताओं के निजी ताल्लुकात, कई बार रिश्ते बेहतर करने में मददगार होते हैं. मगर इन निजी रिश्तों को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी जानी चाहिए. हर नेता को अपने घरेलू मसलों के हिसाब से फैसले लेने होते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, कजाखस्तान के अस्ताना में बेहद गर्मजोशी से मिले थे. इसके बावजूद डोका ला में ये हालात पैदा हुए और सीमा पर दोनों देशों में तनातनी बढ़ गई. इस बात की पूरी उम्मीद है कि दो दिन बाद मोदी और जिनपिंग जर्मनी के हैम्बर्ग में जी-20 देशों की बैठक में मिलेंगे.

A dog rests on the Indian side of the Indo-China border at Bumla

हो सकता है कि इससे दोनों देशों के बीच हालिया तनातनी कुछ कम भी हो जाए. लेकिन हमें याद रखना होगा कि हमें चीन की बढ़ती ताकत से निपटने के लिए अपनी तैयारी पूरी करनी होगी. चीन ये साबित करने पर आमादा है कि वो भारत से बेहतर है. हमें अपने तरीके से बताना होगा कि भारत किसी से कम नहीं.

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