चीन और भारत के बीच सिक्किम की सीमा पर जारी विवाद के बीच चीन बार-बार हमें 1962 के युद्ध की याद दिला रहा है.
चीन की मीडिया ने 5 दशक पुराने इस युद्ध से संबंधित कई संपादकीय और तस्वीरें प्रकाशित की हैं. चीन के सबसे बड़े अखबार पीपल्स डेली ने 1962 की लड़ाई से पहले छपे एक संपादकीय को फिर से प्रकाशित किया है. वहीं एक और मीडिया वेबसाइट ने युद्ध की तस्वीरें छापी हैं. चीन की सरकारी मीडिया में बार-बार भारत को युद्ध के 'परिणाम' का डर दिखाया जा रहा है. इशारा साफ है, चीन 1962 के युद्ध में भारत को मिली हार की याद दिलाकर उसे सीधे-सीधे चेतावनी दे रहा है.
लेकिन इन चेतावनियों में सच्चाई की परछाई भी है? इसमें कोई दो मत नहीं कि उस युद्ध में चीन का पलड़ा ही भारी रहा था और भारत को काफी रणनीतिक, भौगोलिक और सामरिक नुकसान झेलना पड़ा था. क्या भारत ने अगर चीन के खिलाफ कोई भी कदम उठाया तो इस बार भी हालात 1962 जैसे ही होंगे. क्या 1962 के भूत से डरना चाहिए?
कौन कितना ताकतवर?
अगर ग्लोबल देशों की सैन्य ताकत का आंकड़ा रखने वाली साइट ग्लोबल पावर की मानें तो भारत और चीन की सैन्य क्षमता में बहुत अंतर नहीं है. वेबसाइट के अनुसार दुनिया की मिलिट्री ताकतों की रैंक में जहां भारत चौथे नंबर पर है तो वहीं चीन बस एक पायदान ऊपर तीसरे स्थान पर है.
कुल सेना के मामले में भारत के पास 42 लाख सैनिकों से ऊपर की क्षमता है जबकि चीन के पास 37 लाख सैनिकों से अधिक की सेना हैं. हालांकि भारत के पास सक्रिय सेना 13 लाख से ऊपर की है, वहीं चीन के पास 22 लाख की सक्रिय सेना है.
विमानों के मामले में भारत के पास कुल 2100 एयरक्राफ्ट हैं जबकि चीन के पास 2900 से अधिक. वैसे फाइटर्स और अटैक एयरक्राफ्ट की संख्या में चीन हमेशा थोड़ा आगे है. टैंकों के मामले में भारत के पास 4426 तो चीन के पास 6457 टैंक है. चीन का रक्षा बजट भारत का करीबन तीन गुना है.
जाहिर है कि किसी भी देश की सेना की वास्तविक क्षमता वेबसाइट दी गई जानकारी से अलग होगी. फिर भी साफ है कि चीन की सामरिक क्षमता के सामने भारत पीछे जरूर है लेकिन बहुत बौना भी नहीं है. लेकिन दोनों देशों की ताकतों का ऐसा आकलन किसी युद्ध के परिणाम की भविष्यवाणी नहीं कर सकता.
1962 से अलग स्थिति
फ़र्स्टपोस्ट में छपे एक लेख में बिक्रम वोहरा कहते हैं कि आज के समय में यह सवाल बेकार है कि भारत और चीन के युद्ध में कौन जीतेगा? आज की स्थिति में युद्ध के नतीजे किसी भी देश के लिए विनाशकारी होंगे. ऐसे में सीधे-सीधे दोनों देशों की ताकत की तुलना करना बेकार होगा. लेकिन इतना तय है कि भारत की स्थिति इतनी भी कमजोर नहीं जैसी 1962 में थी.
1962 में भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था. उस समय भारत के राजनीतिक नेतृत्व और न ही सैनिक नेतृत्व को चीन की ओर से हमले का कोई आभास था. जब तक भारत युद्ध की स्थिति को समझ पाया था, चीन ने बाजी मार ली थी.
लेकिन आज राजनीतिक, रणनीतिक और सामरिक सभी मोर्चों पर भारत 1962 के मुकाबले अधिक बेहतर स्थिति में है.
ये 62 वाला भारत नहीं
भारत में फिलहाल राष्ट्रवाद उत्थान पर है. सरकार और आम जनता की ओर से भारतीय सेना को नैतिक समर्थन बहुत ऊपर है. तैनाती और तैयारी के मामले में भारत 1962 के मुकाबले स्थिति बहुत बेहतर है. 1965, 1971 और 1999 की लड़ाइयों ने साबित किया है कि भारतीय सेना कमजोर नहीं है. इसके मुकाबले चीन की सेना ने कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा है और उसके भीतर भ्रष्टाचार और तैयारी की कमी समस्या है. सबसे बड़ी बाद कि 1962 की तरह भारत अपनी 'नैतिकताओं' से दबा एक नया देश नहीं है बल्कि आर्थिक और सामरिक शक्ति के रूप में उभर रहा ग्लोबल पावर है.
दूसरी तरफ चीन के लिए यह युद्ध इतना आसान नहीं है. कूटनीतिक तौर पर भारत को चीन के मुकाबले अधिक देशों का साथ मिल सकता है. चीन के करीब 18 देशों के साथ सीमा विवाद हैं. चीन के लिए पाकिस्तान के अलावा कोई मित्र ढूंढना आसान नहीं होगा. साथ ही चीन अपने विशाल आर्थिक साम्राज्य को किसी युद्ध के खतरे से बचाना चाहेगा.
चीन भले ही 1962 की याद दिलाकर भारत को डराना चाहता है लेकिन स्थितियां इस बार काफी अलग हैं. हम 1962 का युद्ध राजनीतिक और रणनीतिक कारणों से हारे थे. इस बार अगर ऐसी कोई स्थिति बनी तो यह मुकाबला सेना बनाम सेना का होगा जहां भारत चीन से बेहतर तैयारी में होगा.
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