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पाकिस्तान में चुनाव, लेकिन कब बदलेगी बलूचिस्तान की किस्मत?

पाकिस्तान में चुनाव हो रहे हैं और बलूचिस्तान में जनता के बीच नाराजगी काफी ज्यादा है. इस तरह के आक्रोश के कारण बलूचिस्तान को पाकिस्तान से पूरी तरह आजाद करने की मांग भी उठ रही है और विद्रोहियों के लगातार हमले का यही आधार भी है

Updated On: Jul 23, 2018 09:50 PM IST

tara kartha

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पाकिस्तान में चुनाव, लेकिन कब बदलेगी बलूचिस्तान की किस्मत?

पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के लिए बलूचिस्तान में कुछ घटनाक्रम को लेकर चीजें साफ करने का वक्त है. मीडिया की खबर के मुताबिक, तथाकथित 'इस्लामिक स्टेट' (बलूचिस्तान चैप्टर) का एक कुख्यात आतंकवादी पकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा मारा गया है. मुफ्ती हिदायतुल्ला के कलात में मारे जाने की खबर है. कलात कभी उस स्वतंत्र राज्य की राजधानी हुआ करता था, जिसकी आजादी को बंटवारे के बाद पाकिस्तान द्वारा पूरी तरह से खत्म कर दिया गया.

बहरहाल, अगर यह रिपोर्ट सच है, तो यह सिर्फ ऐसे ग्रुप के नेता का अंत है, जिसने एक चुनावी रैली पर जघन्य हमले का दावा किया था, जिसमें 140 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. हालांकि, समस्या यह है कि कोई ठीक-ठीक से यह नहीं कह सकता कि मारा गया शख्स वास्तव में आतंकवादी था या बलूच विद्रोहियों की जमात का हिस्सा. ये विद्रोही पिछले 4 दशक से पाकिस्तानी सुरक्षा बलों से लड़ रहे हैं.

हालांकि, पुलिस ने पहले इस हमले को अंजाम देने वाले की पहचान प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-झांगवी के सदस्य के तौर पर की थी. पुलिस का यह भी कहना था कि इस शख्स को स्थानीय लोगों की तरफ से शरण मुहैया कराई गई. अब इस सिलसिले में फिर से पेश की गई कहानी अविश्वसनीय लगती है, जिसमें आईएस चैप्टर के प्रमुख द्वारा बमबाज को सीधा घटना स्थल पर भेजने की बात कही जा रही है.

बलूच जनता में भारी आक्रोश का माहौल

पाकिस्तान में चुनाव हो रहे हैं और बलूचिस्तान में जनता के बीच नाराजगी काफी ज्यादा है. इस तरह के आक्रोश के कारण बलूचिस्तान को पाकिस्तान से पूरी तरह आजाद करने की मांग भी उठ रही है और विद्रोहियों के लगातार हमले का यही आधार भी है. वहां के कुछ और संगठन इस प्रांत के लिए स्वायत्तता चाहते हैं. और वोट में हिस्सेदारी के लिए लड़ने वाले बहुसंख्यक शासन से जुड़े अपने मामलों में बेहतर प्रतिनिधित्व चाहते हैं. हालांकि, ऐसा कुछ भी होने की संभावना नहीं नजर आ रही है. बलूचिस्तान में सुरक्षा की स्थिति स्पष्ट तौर पर गंभीर है.

सरकार ने इस प्रांत के 6 जिलों में इंटरनेट सेवाएं फिलहाल बंद करने का ऐलान किया है और यह सेवाएं 25 जुलाई यानी चुनाव होने तक बंद रहेंगी. ये सभी जिले विद्रोही गतिविधियों के गढ़ हैं. साथ ही, इनमें तीन जिलों- कलात, कीच और अवरन में फरवरी 2017 से ही इंटरनेट की सेवाएं बंद हैं. यह कहा जा सकता है कि बलूचिस्तान को लंबे समय से खराब शासन और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और इंटरनेट सेवाओं को बंद किया जाना इस सिलसिल में एक और कड़ी है. मिसाल के तौर पर वहां के मुख्यमंत्री रहे सनाउल्ला जेहरी की सरकार को उनकी पार्टी के ही सदस्यों द्वारा कार्यकाल पूरा होने से कुछ महीनों पहले गिरा दिया गया.

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ताकतवर राजनीति परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस शख्स के बदले एक 'गुमनाम' जैसे शख्स अब्दुल कुद्दस बिजेन्जो को लाया गया. इस प्रांत के तत्कालीन गृह मंत्री मीर सरफराज अहमद बुगती की बर्खास्तगी के बाद यह पूरी कवायद शुरू की गई. सरफराज अहमद भी जानी-मानी शख्सियत नहीं थे. यह बलूचिस्तान में हो रहे दिलचस्प घटनाक्रमों का एक उदाहरण है. बहरहाल, वह अब नई राजनीतिक पार्टी (बलूचिस्तान अवाम पार्टी) का हिस्सा है. यह पार्टी सरकार गिराने में शामिल रहे बागियों ने बनाई है, जो इस प्रांत में हिंसा के लिए 'पड़ोसियों' को जिम्मेदार ठहराते हैं. यहां तक कि बलूचिस्तान में भी खुल्लमखुल्ला इस तरह की राजनीतिक धोखेबाजी असामान्य मामला है.

लिहाजा, यह हैरानी की बात नहीं है कि चुनाव में राजनीतिक गतिविधियां सुस्त हैं. इसके अलावा, बलूचिस्तान में सीमित चुनावी गतिविधियों के बारे में खबर मिलना काफी मुश्किल है. कुछ दिग्गजों की खबरों को छोड़ दिया जाए, तो पाकिस्तान मीडिया एक तरह से इस प्रांत को नजरअंदाज कर देता है. ऐसे में बलूच राजनेताओं को अपना संदेश फैलाने के लिए सोशल मीडिया और रेडियो का सहारा लेने को मजबूर होना पड़ा है.

Residents walk along a street decorated with flags of political parties, ahead of general elections in the Lyari neighborhood in Karachi, Pakistan July 9, 2018. Picture taken July 9, 2018. REUTERS/Akhtar Soomro - RC19E7B37870

चुनाव में चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर है अहम मुद्दा

इस प्रांत में प्रचार का एक अहम मुद्दा चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) है. अपने-अपने उम्मीदवार पेश करने वाली सभी पार्टियां इस प्रोजेक्ट में बलूचिस्तान की व्यापक भागीदारी का वादा कर रही हैं. इस प्रांत में यह मुद्दा काफी अहम रहा है. हालांकि, इसे किस तरह से अंजाम दिया जाएगा, इस बारे में बताना मुश्किल है. खास तौर पर बलूचिस्तान में शिक्षा का स्तर काफी कम है, जिस वजह से कई तरह की दिक्कतें हैं. दूसरा वादा शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ाने को लेकर है. उच्च स्तर पर स्टाफ की दिक्कत के कारण इसे भी पूरा करना मुश्किल है. हालांकि, हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक पार्टियां लोगों से वादा करने के पेशे में हैं.

तीसरा मुद्दा सुरक्षा और हिंसा के खात्मे का है. यह आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान में होने वाली सामान्य बातचीत नहीं है, जो इस मुल्क के प्रमुख हिस्से में साफ तौर पर नजर आती है और इसके तहत नेता आतंकवाद में कमी दिखाने के लिए विभिन्न आंकड़ों का हवाला देते हैं. साथ ही, इसका श्रेय पाकिस्तानी सेना को दिया जाता है. यहां सुरक्षा और हिंसा से खात्मे का मतलब यह सुनिश्चित करना है कि बलूचिस्तान के लोगों को पाकिस्तानी सुरक्षा बल उठाकर नहीं ले जाएं और न ही प्रताड़ित करें. अपनी इन हरकतों के जरिए पाकिस्तानी सुरक्षा बल इन लोगों को 'जबरन गुमशुदगी' के आंकड़ों का हिस्सा बना देते हैं. यह जुमला पाकिस्तान (जिसका आम तौर पर मतलब पंजाब से है) और बलूचिस्तान के बीच औपनिवेशिक संबंधों का प्रतीक बन गया है. किसी को ठीक-ठीक यह नहीं पता है कि कितने सौ लोगों को पकड़कर प्रताड़ित किया गया है. इतना ही नहीं, इस बारे में वही लोग लिखने की हिम्मत जुटाते हैं, जो विदेश में सुरक्षित हैं.

तमाम पार्टियों ने इस प्रांत में उतारे हैं अपने उम्मीदवार

इन तमाम नकारात्मक पहलुओं के बावजूद प्रमुख पार्टियों के अलावा कुछ अन्य दल भी बलूचिस्तान में चुनाव मैदान में हैं. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) में अंदरूनी कलह के कारण पार्टी को यहां उम्मीदवार पेश करने में दिक्कत हो रही थी. आखिरकार उसने 28 जून को अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया.

संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML) की अचानक से सरकार गिरने के कारण उसे काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. यह पार्टी अब यहां की टॉप तीन पसंदीदा पार्टियों में शामिल नहीं है. इसकी बजाय पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) लोगों की पसंद के तौर पर उभर रही है. इसी तरह, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की लोकप्रियता गिरती नजर आ रही है. दरअसल, पार्टी ने पंजाब और सिंध के मुकाबले बलूचिस्तान पर काफी कम ध्यान दिया. इस प्रांत से जुड़े पार्टी के पदाधिकारी खुश नहीं हैं.

जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन में गठित पीएमएल (Q) ने भी बड़ी संख्या में अपने उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य के हालिया सीएम कुद्दस का संबंध भी इस पार्टी से था. पीएमएल (Q) ने 65 प्रांतीय और 14 राष्ट्रीय सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. बीएनपी (बलूचिस्तान नेशनल पार्टी) जैसी बलूच पार्टियों को भी चुनाव प्रचार करते हुए देखा जा सकता है, लेकिन इनके लिए ज्यादा संभावनाओं का मामला नहीं जान पड़ता. जम्हूरी वतन पार्टी का वह दौर खत्म हो चुका है, जब नवाब अकबर बुगती इसके प्रमुख थे. पार्टी के मौजूदा प्रमुख नवाबजादा एस बुगती अब सेना की तारीफ में व्यस्त हैं.

पख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी (PKMAP) और नेशनल पार्टी (NP) कम उम्मीदवार उतार रही है. दोनों पार्टियों का पिछली सरकार की सत्ता में योगदान था. इसके अलावा, धार्मिकता से प्रेरित दक्षिणपंथी पार्टियां भी चुनाव मैदान में हैं. इनमें जमात उलेमा इस्लाम-नासरी के मौलाना खलील अहमद, मुत्ताहिद-मजलिस-ए-अमल से जुड़े संगठन शामिल हैं. इसके अलावा, बेहद आक्रामक संगठन अहले सुन्न वल जमात भी नई ऊर्जा के साथ चुनावी मैदान में है.

इन तमाम चीजों को सारांश के रूप में इस तरह से बयां किया जा सकता है- बलूचिस्तान में निष्पक्ष चुनाव की बात भूल जाइए, ऐसा नहीं होने जा रहा है. और यह प्रांत पाकिस्तानी सेना के लिए कई तरह से काफी अहम है. सीपीआईसी के अलावा सुरक्षा बल ऐसी सरकार को बर्दाश्त नहीं कर सकते, जो आंतरिक विद्रोही गतिविधियों पर से पर्दा उठा दे.

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पाकिस्तान सेना बेहद असरदार ढंग से (यहां तक कि निर्ममतापूर्वक) इन गतिविधियों पर शिकंजा कसने में सक्षम रही है. इस प्रांत में जिन पार्टियों का समूह सत्ता में आएगा, उनमें निश्चित तौर पर हाल में बनी बलूचिस्तान अवामी पार्टी, पीटीआई, पीएमएल-Q और उन पार्टियों के कुछ प्रतिनिधि होंगे, जिन्होंने कभी प्रांत के लिए स्वायत्तता की वकालत की थी. एक और गठबंधन की सूरत नजर आ रही है, लेकिन यह रावलपिंडी (सेना मुख्यालय) के नजरिए के बिल्कुल अनुकूल नहीं है.

विद्रोही गतिविधियां जारी रहेंगी, लेकिन यह रावलपिंडी की योजनाओं को विफल करने या बदलने की ताकत से वंचित होगा. अगर इस प्लान में चीन द्वारा इस प्रांत के कुछ हिस्सों पर वस्तुतः कब्जे का मामला भी शामिल है, तो यह भी जारी रहेगा, चाहे जिन पार्टियों का समूह सत्ता में आए. चीजें जितनी बदलती हैं, वह उतनी ही पहले जैसी रहती हैं. यह मुहावरा शायद बलूचिस्तान के लिए लिखा गया होगा.

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