अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन की ऐतिहासिक मुलाकात के साथ ही इसकी तस्वीरों से सोशल मीडिया की टाइमलाइन भर गई. बंद दरवाजे के पीछे दोनों में क्या बात हुई, इसका ब्योरा अभी सामने नहीं आया है, लेकिन दुनिया के सबसे पुराने और बड़े लोकतंत्र के नेता की कुख्यात तानाशाह से मुलाकात में क्या हुआ होगा, इसको लेकर कोई अंदाजा लगाना मुश्किल है.
इस ऐतिहासिक मुलाकात का श्रेय ट्रंप को दिया जाना चाहिए
फिर भी इस बैठक से मोटे तौर पर दो बातें हुई हैं, एक तो इससे उत्तर कोरियाई सरकार को आंशिक रूप से वैधता मिल गई है- उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर दुनिया के सुपरपावर से मिले, यह बात किम जोंग उन की सत्ता को निश्चित रूप से घरेलू और विदेशी मोर्चे पर राजनीतिक वैधता दिलाएगी. दूसरी बात, एक साल के अंदर ही एक दूसरे पर मिसाइल दागने की धमकियां देने वाले दो नेताओं की मुलाकात ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्यक्तित्व के महत्व को रेखांकित किया है. दशकों के दुश्मनी भरे रिश्ते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक ऐतिहासिक कदम उठा लिया, जो अपने आप में कम जोखिम भरा नहीं था. इस बदलाव का बड़ा श्रेय राष्ट्रपति ट्रंप को जाता है, जिन्होंने किम जोंग उन से संबंध सुधारने के लिए बहुत कुछ किया.
विदेशी नीतियों के निर्धारण में अक्सर व्यक्तित्व को कमतर आंका और समझा गया है. व्यक्तिगत रूप से एक नीति नियंता को कोई अंतिम फैसला करने से पहले अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के दबावों और घरेलू राजनीतिक ढांचे को भी देखना होता है. हालांकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगा-पीछा देखना अंतिम फैसले पर पहुंचने में महत्वपूर्ण कारक होते हैं, लेकिन अंततः यह व्यक्ति पर ही निर्भर करता है कि कब, कैसे और क्या फैसला लिया जाए. ट्रंप-किम संबंधों के मामले में, सम्मेलन को इस मुकाम तक लाने में राष्ट्रपति ट्रंप के व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
ट्रंप को मोल-तोल करने की आदत है
राष्ट्रपति ट्रंप ने विदेश नीति के मोर्चे पर हमेशा मोल-तोल का और फायदे दिलाने वाला नजरिया सामने रखा. यह बात उनके स्टील व एल्युमिनियम के आयात पर भारी शुल्क लगाने से भी जाहिर होती है, जिसके कारण चीन के साथ एक संभावित कारोबारी युद्ध छिड़ जाने की संभावना है, वह ‘कुछ खास नहीं करने’ के लिए यूएस के सहयोगियों की उनकी लगातार आलोचना करते रहते हैं, वह ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से बाहर निकल गए और जी-7 स्टेटमेंट को मंजूर करने से इनकार कर दिया.
उनकी अमेरिका-फर्स्ट नीति में अ-हस्तक्षेप, व्यापार संरक्षणवाद पर ध्यान देने, अमेरिका में नौकरियां वापस लाने और प्रवासियों व शरणार्थियों के अमेरिकी धरती पर आगमन में कमी लाने पर बहुत ज्यादा जोर है. अमेरिका-फर्स्ट नीति दरअसल संरक्षणवाद की पुरातनपंथी विचारधारा में राष्ट्रपति की कारोबारी बुद्धि मिलाकर 'अधिकतम विकल्प सुनिश्चित' करने की नीति है. जैसा कि राष्ट्रपति ने कई मौकों पर दोहराया है 'कई विकल्पों में चुनाव की आजादी' उनके काम करने का पसंदीदा तरीका है.
किम के साथ खट्टा-मीठा रिश्ता
ट्रंप लोकलुभावन वादों के साथ डींगें हांकने, अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने और और ऐसे मौकों की ताक में रहने वाले शख्स के तौर पर जाने जाते हैं जो उन्हें अंतरराष्ट्रीय पटल पर हीरो बना दे. राष्ट्रपति ट्रंप की ज्यादातर नीतियों पर उनके निजी व्यक्तित्व की छाप होती है. किम जोंग उन के साथ उनका कभी नरम कभी गरम बर्ताव भी ऐसा ही है.
एक साल के अंदर ही, अमेरिकी राष्ट्रपति ने किम जोंग को 'प्रकोप और बमबारी' की धमकी देने से लेकर सिंगापुर में आमने-सामने बैठकर सीधी बातचीत की, जिसमें एक अनुबंध पर हस्ताक्षर भी हुए. शुरुआत से ही ट्रंप सरकार के सामने सैन्य विकल्प बहुत सीमित थे. दोनों ही तरफ से धमकी दिए जाने के बाद परमाणु हथियारों की मौजूदगी ने सुनिश्चित किया कि तनातनी ज्यादा ना बढ़े.
इसके साथ ही दक्षिण कोरिया के उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते सुधारने की कवायद ने भी शायद अमेरिकी राष्ट्रपति को मोलभाव के लिए मजबूर किया, जिससे वह एक बार फिर लाइमलाइट में आ सकें. यह उनके उस कदम से भी जाहिर हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस साल के शुरू में घोषणा के बाद दोनों कोरिया के नेताओं की ऐतिहासिक मुलाकात पर कोरियाई प्रायद्वीप में सात दशक पुराने युद्ध को खत्म कराने का श्रेय सबसे पहले खुद को दिया.
यह ट्रंप के स्वभाव के अनुरूप ही है, जिसमें वह सबसे अलग दिखना चाहते हैं. पूरी कीमत वसूलने करने की सोच के साथ उनकी यह निजी खासियत और भी अनगिनत यू-टर्न के लिए जिम्मेदार है, जो उनके शासन में अमेरिकी विदेश नीति में देखने में आए. उत्तर कोरिया के साथ उनके रिश्ते, उनके लंबे समय से चल रहे विवादों को खत्म करने की इच्छा, चाहे वह कूटनीतिक उपाय से हो या सैन्य तरीकों से, से ही निर्देशित दिखते हैं. इस कदम से यूएस-उत्तर कोरिया के रिश्तों में बदलाव आया है और उनका नाम अमेरिकी इतिहास में दर्ज हो जाएगा.
इस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के फैसलों को समझने की कुंजी, इस तथ्य में निहित है कि कोई कदम उठाने से मिलने वाले नतीजों से राष्ट्रपति की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को कितना फायदा मिलेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति इस बात की परख का आदर्श उदाहरण हो सकते हैं कि विदेश नीति के निर्धारण में व्यक्तित्व कितना महत्वपूर्ण है और सर्वोच्च स्तर पर नीति-निर्धारण के लिए थोड़ी गुंजाइश रखते हुए व्यक्तिगत व व्यक्तिपरक कूटनीति का इस्तेमाल किया जा सकता है.
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