पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी उनके पूर्व में प्रधानमंत्री पद पर रहे लोगों की तरह ही भारत का नाम लेकर पाकिस्तान में राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशों में जुट गए हैं. शायद तभी वह भारत के आंतरिक मामलों को अपने तरीके से तोड़ मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपने हितों के लिए कर रहे हैं. आज (मंगलवार) पाकिस्तान के कायद-ए-आजम मुहम्मद अली जिन्ना की जयंती है. इसी उपलक्ष्य में इमरान ने एक के बाद एक लगातार दो ट्वीट किए.
इमरान बोले- जिन्ना थे हिंदू मुस्लिम एकता के राजदूत
इमरान ने पहले ट्वीट में लिखा, 'कायद (कायद-ए-आजम) ने पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक, न्यायपूर्ण और दयालु देश के रूप में परिकल्पित किया. सबसे खास बात यह थी कि वह (मुहम्मद अली जिन्ना) चाहते थे कि हमारे अल्पसंख्यक भी समान नागरिक हों.' साथ ही इमरान ने लिखा, 'यह याद रखा जाना चाहिए कि उनका (जिन्ना) शुरुआती राजनीतिक जीवन हिंदू मुस्लिम एकता के राजदूत के रूप में था.'
इमरान ने जिन्ना के मुसलिम राष्ट्र की मांग की राजनीति में उतरने का भी बचाव करते हुए कहा, 'मुसलमानों के एक अलग राष्ट्र के लिए उनका संघर्ष तब शुरू हुआ जब उन्हें महसूस हुआ कि मुसलमानों को हिंदू बहुसंख्यकों द्वारा समान नागरिक नहीं माना जाएगा.'
His struggle for a separate nation for Muslims only started when he realised that Muslims would not be treated as equal citizens by the Hindu majority. Naya Pak is Quaid's Pak & we will ensure that our minorities are treated as equal citizens, unlike what is happening in India. https://t.co/xFPo8ahJnp
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) December 25, 2018
हालांकि इमरान अपनी इस बात को किसी और तर्क के साथ पेश नहीं कर सके तो उन्होंने भारत की आलोचना कर यह बात साबित करने की कोशिश की. उन्होंने कहा, 'नया पाक कायद का पाक है और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारे अल्पसंख्यकों को समान नागरिक माना जाए, ऐसा बिलकुल नहीं जैसा भारत में हो रहा है.'
नसीरुद्दीन शाह के बयान के बाद से शुरू हुआ था यह मसला
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब भारतीय अभीनेता नसीरुद्दीन शाह ने बुलंदशहर की एक घटना का जिक्र करते हुए देश के माहौल पर चिंता जताई थी. इस पर शाह की कई लोगों ने आलोचना की तो कई लोग उनके समर्थन में उतर आए थे. यह भारत की विशेषता ही तो है कि यहां हर समुदाय के नागरिक को समान अधिकार भारत का संविधान देता है.
नसीरुद्दीन शाह की अपने देश के माहौल को लेकर चिंता को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने राजनीतिक लाभ पाने के लिए इस्तेमाल किया. हालांकि इसका माकूल जवाब शाह और उनके ही जैसे कई अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले भारतीयों ने ही दे दिया था. नसीरुद्दीन ने इमरान से साफ लफ्जों में कहा था कि वह अपने देश के मसलों पर ध्यान दे न की उनपर जिनसे उनका कोई संबंध ही न हो.
ओवैसी ने तर्क के साथ समझाया फिर भी न समझे इमरान
हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भारत और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले अधिकार समझाए थे. उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान में सिर्फ मुस्लिम समुदाय से आने वाला नागरिक ही सर्वोच्च पद (राष्ट्रपति) पर पहुंच सकता है. जबकि भारत में अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले कई लोग राष्ट्रपति बन चुके हैं.
हालांकि इन सभी बातों को दरकिनार कर इमरान खान वही पुराना राग अलाप रहे हैं. आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान में नागरिकों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए अब वह भी वही नीति अपना रहे हैं जो उनसे पूर्व के नेता अपनाते थे. वह नीति है 'देश पर संकट आए तो भारत का मसला छेड़ दो.'
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