live
S M L

एनएसजी में भारत: चीन साथ आए या अलगाव झेले

एनएसजी के शीर्ष देशों ने चीन को भारत के विरोध की कीमत बता दी होगी.

Updated On: Nov 22, 2016 04:04 PM IST

Rajiv Nayan

0
एनएसजी में भारत: चीन साथ आए या अलगाव झेले

वियना में 11 नवंबर को हुई न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की बैठक में एनपीटी देशों की सदस्यता पर विचार हुआ. प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा और जापान के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौते के कारण इस बैठक पर मीडिया में बहुत चर्चा नहीं हुई. सबसे रोचक यह है कि इस बैठक की तैयारी पर मीडिया में कुछ चर्चा हुई थी. जून, 2016 को सियोल में हुए एनएसजी के अधिवेशन को भारी मीडिया कवरेज मिला था.

हालांकि के मीडिया के एक हिस्से में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के न्यूक्लियर समझौते पर दिए गए बयान की चर्चा हुई थी. एनएसजी की सचिवालय और वेबसाइट ने भी इस बैठक के बारे में बहुत अधिक सूचना नहीं दी है. फिर भी चीनी विदेश मंत्रालय के प्रेस रिलीज से इस बैठक के बारे में कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है.

दो चरणों में बनेंगी, नई सदस्यता के लिए नियम

इस बैठक से पहले परमाणु अप्रसार और निशस्त्रीकरण पर यूरोपियन यूनियन सहायता संघ के अधिवेशन में अर्जेंटीना के राजदूत राफेल मारिआनो ग्रोस्सी (एनएसजी के निवर्तमान अध्यक्ष और वर्तमान अध्यक्ष द्वारा एनएसजी के मददगार के रूप में कार्यरत) के बयान से भी 11 नवंबर को हुए बैठक में बातचीत के मुद्दों के बारे में कुछ अंदाज लगाया जा सकता है.

इस अधिवेशन में एक भागीदार ने यह पूछा कि क्या 11 नवंबर की बैठक में क्या नॉन-एनपीटी देशों को एनएसजी की सदस्यता देने के लिए ‘दो चरण की प्रक्रिया’ पूरी होने जा रही है. इस पर ग्रोस्सी ने कहा- ‘...हम कुछ सामान्य नियमों की खोज कर रहे हैं. हम राष्ट्र ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ के आधार पर काम नहीं कर रहे हैं. अगर कोई परिणाम निकलता है तो यह ऐसा नहीं होगा कि सिर्फ राष्ट्र ए या सिर्फ राष्ट्र बी या सिर्फ राष्ट्र सी को इसका लाभ मिले. इस बैठक में तीनों तरह के नॉन-एनपीटी देशों की सदस्यता से जुड़े चुनौतियों और सवालों पर विचार होगा. खासकर उनके संदर्भ में जो एनएसजी की सदस्यता के लिए सक्रिय हैं. यह सिर्फ इतने भर ही है.’

तस्वीर सौजन्य एनएसजी की वेबसाइट से तस्वीर सौजन्य एनएसजी की वेबसाइट से

इस दो चरण की प्रक्रिया से क्या मतलब है. पहले चरण में एनपीटी की सदस्यता के नियम तय किए जाएंगे और दूसरे चरण में अलग-अलग देशों के आवेदन पर विचार किया जाएगा. उन्होंने यह भले ही कहा कि ‘दो चरण की प्रकिया’ का एनएसजी ने आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किया है लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि व्यवहार में कुछ ऐसा ही हो रहा है.

तब 11 नवंबर 2016 को एनएसजी के सदस्य देश और भागीदार सरकारें क्या करने की सोच रही हैं? ग्रोस्सी ने यह कहा कि वह वर्तमान चेयर की इच्छा के अनुसार, सदस्य देशों के साथ नए देशों की सदस्यता के लिए सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं. निःसंदेह भारत एक खास उम्मीद्वार है, भले ही उन्होंने इसके बारे में खुलकर नहीं कहा हो. सबसे खास यह है कि सहमति बनाने की प्रक्रिया में ‘सभी भागीदार सरकारों का अपना स्वार्थ है.’

यह कहा जा सकता है कि 11 नवंबर की बैठक नॉन-एनपीटी देशों की सदस्यता पर बातचीत के लिए हुई. यहां तक कि चीन भी इस पर सहमत था. अब तक चीन हमेशा तकनीकी कारणों से भारत की सदस्यता का विरोध करता रहा है. चीन ने एक रिलीज में वियना में 11 नवंबर को हुए एनएसजी की बैठक के बारे में सूचना देते हुए कहा- ‘एनएसजी में नॉन-एनपीटी देशों की सदस्यता के तकनीकी, कानूनी और राजनीतिक पहलुओं पर चर्चा हुई. यह इस साल जून में हुए अधिवेशन में लिए गए निर्णय के अनुरूप हुई.’ यह रिलीज यह भी कहता है कि चीन ने अन्य देशों के साथ-साथ नॉन-एनपीटी देशों की सदस्यता के ऊपर कागजात भी जमा किए. इस रिलीज के अनुसार चीन की भागीदारी सकारात्मक रही और ‘विशेष सुझाव’ दिए.

एनएसजी के इतिहास में पहली बार सदस्यता पर हुई खुली चर्चा 

चीन की सरकार ने यह भी कहा है कि एनएसजी के इतिहास में (एनएसजी की स्थापना 1975 को हुई थी) यह पहला मौका है, जब नॉन-एनपीटी देशों की सदस्यता पर ‘खुली और साफ’ बातचीत हुई. इससे यह साफ नहीं है कि चीन क्या कहना चाहता है. अगर यह एनएसजी की कार्यवाही में खुलेपन और साफगोई के बारे में है तो यह विवाद का विषय हो सकता है. अगर इसका मतलब यह है कि नॉन-एनपीटी देशों के बारे में पहली बार विचार हुआ तो यह एनएसजी के इतिहास का खास मोड़ है.

यह खुली बात है कि एनएसजी की स्थापना फ्रांस जैसे नॉन-एनपीटी देशों को नियंत्रित करने के लिए हुई थी. इस तथ्य की पुष्टि सिर्फ एनएसजी की स्थापना से जुड़े कूटनीतिज्ञ ही नहीं करते रहे हैं बल्कि इसके अभिलेखीय सबूत भी मौजूद हैं. इस बारे में बहुत से जर्नल्स, अखबारों और लेखों में भी बताया गया है. यहां तक कि अमेरिका और कनाडा की लाइब्रेरियों के अभिलेखों से यह भी पता चलता है कि भारत जैसे देशों को एनएसजी सदस्यता देने के बारे में बहुत पहले से चर्चा हो रही थी, जबकि भारत 1974 में शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण कर चुका था.

अगर चीनी प्रेस रिलीज पर भरोसा किया जाए तो यह बैठक अधूरी ही रह गई. चीन के लिए इस बैठक का आयोजन इस लिहाज से खास था क्योंकि इसमें ‘दो चरण की प्रक्रिया’ के पहले चरण का निर्धारण होना था. यह रिलीज आगे यह भी कहता है ‘चीन खुली और साफ प्रक्रिया का समर्थन करता है ताकि ग्रुप के लिहाज से सुसंगत नियम बनाए जा सकें और पहले चरण के लिए ठोस फार्मूला जल्दी से तैयार हो जाए. इससे दूसरे चरण में ग्रुप नॉन-एनटीपी देशों के सदस्यता के आवेदन पर जल्दी-से-जल्दी विचार कर पाएगा.’ यह बयान यह भी कहता है कि किसी भी देश के आवेदन पर विचार करने से पहले, पहले चरण के नियम को बना लेने चाहिए.

pm modi china

क्या चीन अभी भी है, भारत की सदस्यता में रोड़ा

इस रिलीज का सबसे संदिग्ध हिस्सा चीन की सोच को दिखाता है- ‘कोई भी फार्मूला भेदभाव-रहित होना चाहिए और सभी नॉन-एनपीटी देशों पर लागू होना चाहिए. यह फार्मूला एनएसजी के मूल मूल्यों के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह और अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधि के प्रभाव, अधिकार और सम्मान को ध्यान में रखते हुए बनना चाहिए. एनपीटी इसका आधार होना चाहिए और यह परमाणु-अप्रसार के अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध न हो.’

यह सभी को पता है कि चीन इस ग्रुप में भारत के प्रवेश को रोकने के लिए पाकिस्तानी कार्ड खेलता रहा है. जेनस् ग्रुप और किंग्स कॉलेज द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में परमाणु-अप्रसार पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये को दिखाया है. पाकिस्तान के परमाणु नेटवर्क पर अन्य रिपोर्ट भी लोगों के बीच में हैं. पूरी दुनिया यह जानती है कि पाकिस्तान परमाणु-अप्रसार के नियमों पर क्या कर रहा है. यहां तक कि एक साल पहले, अमेरिकी कांग्रेस कमिटी ने इस पर विचार किया कि क्या भारत को 2008 में दी गई छूट की तरह पाकिस्तान को भी छूट दिया जा सकता है. चीन यह जानता है कि पाकिस्तान को एनएसजी की सदस्यता के लिए ‘दो चरण की प्रक्रिया’ से अधिक की जरूरत है.

भारत की सदस्यता पर, चीन हुआ अलग-थलग 

अब आगे क्या होगा? भारत को जल्दी ही सदस्यता मिलने जा रही है. अन्य सदस्य देशों से मिलने वाली संकेतों के अनुसार चीन इस पर निर्णय लेने के लिए बाध्य है. हो सकता है कि 11 नवंबर की बैठक में एनएसजी के शीर्ष देशों ने चीन को भारत की सदस्यता के विरोध की कीमत बता दी होगी. कुछ वैसे भी देश जो सैद्धांतिक तौर पर भारत की सदस्यता का समर्थन करते रहे हैं, लेकिन सियोल अधिवेशन में नॉन-एनपीटी देशों के लिए सदस्यता के नियम तय करने में चीन का साथ दिया था, उन्होंने भी चीन को सहमति के लिए तैयार होने को कहा होगा. अब यह साफ दिख रहा है कि चीन को छोड़ कर भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए, एनएसजी के भीतर ही एक ठोस गुट बन गया है. इसका विचार चीन को पूरी तरह अलग-थलग करना है.

अगर चीनी प्रेस रिलीज की तह में जाएं तो चीन भी भारत जैसे देशों को एनएसजी की सदस्यता देने पर फिर से विचार कर रहा है. भारत की सदस्यता पर अभी एनएसजी कुछ और बैठकें होंगी. भारत को चीन के साथ अपने द्विपक्षीए बातचीत जारी रखनी चाहिए और चीन को यह समझाना चाहिए कि वैश्विक और एशियाई राजनीति को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों को सहयोगी रवैया अपनाना होगा.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi