क्या अब 'हिंदी-चीनी बाय-बाय' का वक्त आ चुका है क्योंकि चीन ने भारत को धमकी दी है कि वो 1962 की जंग से सबक ले. वाकई भारत को चीन के इतिहास से सबक लेने की जरूरत होनी भी चाहिए. 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत को लेकर हुए पंचशील समझौते और हिंदी चीनी भाई भाई के नारों के बावजूद भारत को ‘62 की जंग देखनी पड़ी थी.
55 साल बाद भी चीन का चाल-चरित्र-चेहरा बदला नहीं है. उसकी फितरत का ड्रैगन हमेशा जमीन निगलने का काम करता रहा है. सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में सीमा विवाद पर बढ़ता टकराव चीन की अतिक्रमणकारी नीति का ताजा उदाहरण है.
डोकलाम की आड़ में चीन ने भारतीय सेना पर चीन की सीमा में घुसपैठ का आरोप लगाया है. चीन ने नाराज़गी जताते हुए नाथू ला दर्रा बंद कर मानसरोवर की यात्रा पर भी रोक लगा दी . चीन की छटपटाहट की बड़ी वजह ये है कि भारतीय सेना ने चीन को उस अतिक्रमण से रोका जो भूटान के हिस्से में आता है.
सबसे पहले भूटान के ही गश्ती दल ने चीन की सेना को रोकने की कोशिश की थी. दरअसल चीन डोकलाम में सड़क बना रहा है. इस इलाके का एक हिस्सा भूटान के पास भी है. चीन का इस इलाके को लेकर भूटान के साथ विवाद है.
चीन इसी विवादित इलाके में सड़क निर्माण कर रहा है जिसे भारतीय सेना ने रोकने की कोशिश की. इसकी बड़ी वजह ये है कि इस इलाके में चीन की हलचल भारत की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक साबित हो सकती है.
चीन दे रहा है युद्ध की धमकी
चीन ने शर्त रखी है कि भारत पहले अपनी सेना हटाए तो उसके बाद ही मानसरोवर यात्रा जारी रखने के बारे में सोचा जाएगा. साथ ही नई धमकी ये दे रहा है कि चीन अपनी सीमा की सुरक्षा के करने के लिये युद्ध तक कर सकता है.
रक्षा मंत्री अरूण जेटली ने चीन को चेता दिया कि साल 1962 और साल 2017 में बहुत फर्क है. जिस पर चीनी ने कहा है वो भी अब 1962 की स्थिति से काफी अलग है.
1962 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि चीन और भारत के सैनिक सीमा पर इतने लंबे समय से आमने-सामने हैं. डोकलाम के तनाव के बाद सेना प्रमुख बिपिन रावत ने सिक्किम के फॉरवर्ड पोस्ट का भी दौरा किया. संदेश साफ है कि भारत कुछ मौकों पर भूटान के साथ अपने रिश्तों को लेकर मजबूती से खड़ा है. अब भारत ने आक्रामक रणनीति अपनाते हुए सीमा पर तैनात जवानों की संख्या को बढ़ा दिया है.
चीन का धोखेबाजी का है पुराना रिकॉर्ड
भूटान की सड़क से चीन की धमकी साठ के दशक की शुरुआत की याद ताजा करती है. 1962 के युद्ध से पहले चीन विवादास्पद सीमा पर सड़क निर्माण कर रहा था. उस वक्त मिली जानकारी के मुताबिक भारत-चीन की सीमा के नजदीक सड़क निर्माण हो रहा था.
इस उकसावे वाली कार्रवाई से पहले साल 1958 में चीन की सरकारी पत्रिका चाइना पिक्टोरियल ने एक विवादास्पद नक्शे में अरूणाचल प्रदेश और लद्दाख को चीन का हिस्सा बता दिया था. जिस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कड़ा एतराज जताया था. जिसके बाद मैकमोहन लाइन को चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ इन लाइ ने ब्रिटेन की बनाई हुई रेखा करार दिया था और मानने से इनकार कर दिया था.
हिंदी-चीनी भाई भाई के नारे नफरत में बदल गए जब चीन ने अचानक 1962 में हमला कर दिया. भारत के लिये अप्रत्याशित हमला सबसे बड़ा धोखा था क्योंकि चीन के प्रधानमंत्री भारत का दौरा करके लौटे थे.
चीन ने डोकलाम के जरिये एक दूसरा दांव भी खेला है. चीन को ये उम्मीद थी कि उसके और भूटान के इस मामले में भारत दखल नहीं देगा. जिससे भूटान और भारत के बीच में दूरियां भी आ सकती हैं. लेकिन भारत ने भूटान के पक्ष में मजबूत रुख दिखाया.
चीन बार-बार कर रहा है उकसावे वाले कार्रवाई
साल 2012 में भारत और चीन के बीच एक सहमति बनी थी. जिसके तहत विवादित डोलकम इलाके में भारत,चीन और भूटान की बातचीत के आधार पर सीमा निर्धारण किया जाएगा. लेकिन अब चीन की गतिविधियां सहमति का उल्लंघन कर रही हैं. चीन ने बुलडोजर का इस्तेमाल कर सिक्किम के डोंगलोंग में भारतीय सेना के एक पुराने बंकर को नष्ट कर दिया.
जिसके बात भारतीय सैनिकों ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के पास चीनी सैनिकों को रोकने के लिए ह्यूमन चेन बना कर रोका. 127 साल पुरानी 1890 की सिनो-ब्रिटिश संधि का हवाला देते हुए वो सिक्किम सेक्टर को अपना बता रहा है.
भारत-अमेरिका की करीबी से चिढ़ा है चीन
चीन ने उकसावे वाली कार्रवाई ऐन उस वक्त की जब पीएम मोदी का अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप गर्मजोशी से स्वागत कर रहे थे. भारत और अमेरिकी की दोस्ती पर चीनी मीडिया लगातार फब्तियां कस रहा था. वैसे भी चीन और अमेरिका के बीच दक्षिण चीन सागर विवाद तीसरे विश्वयुद्ध की वजह बन सकता है.
ऐसे में भारत की अमेरिकी से बढ़ती दोस्ती को चीन पचा नहीं पा रहा है. वो एक तरफ अमेरिका को भी अपनी दादागीरी का संदेश दे रहा है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को ये जता रहा है कि अब सिर्फ चीन ही अकेला उसका दोस्त है.
ग्लोबल होती दुनिया में एक उम्मीद जगी थी कि कारोबार और बाजार दुश्मनों को भी आपस में जोड़ सकता है. चीन को भी भारत में बड़ा बाजार मिला. लेकिन चीन की अतिक्रमण और कब्जे की नीति ने ही उसे किसी का दोस्त नहीं बनने दिया.
आर्मी चीफ रावत ने कहा था कि भारतीय सेना ढाई मोर्चों पर जंग लड़ने में सक्षम है. ये बयान आज के हालातों को देखते हुए काफी मायने रखता है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या चीन भारत पर हमला करने की ऐसी गलती कर सकता है जिसकी भरपाई पूरी दुनिया को करने में सदियां बीत जाएं?
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