1947 को भारत की आजादी के लगभग एक महीने के बाद भारत से हजारों किलोमीटर दूर भारत के पक्ष में एक बड़ा फैसला हो रहा था. कनाडा में भारत के नए बने प्रधानमंत्री के साथ घनिष्ठता दिखाने के लिए वहां रहने वाले सिखों को वोट देने का अधिकार दिया गया.
इससे पहले लगभग 40 सालों से कनाडा में रह रहे सिख नागरिक अपने लिए वोटिंग अधिकारों की मांग कर रहे थे, जिसे ठुकराया जा रहा था. इस एक कदम से 70 सालों में कनाडा पंजाबियों के लिए न सिर्फ कनेड्डा बन गया. बल्कि कनाडा की सियासत में सिखों का वर्चस्व भी भरपूर बढ़ा.
इस 1 अक्टूबर को 38 साल के जसमीत सिंह ओंटारियो की संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले पहले भारतीय मूल के व्यक्ति बने. जसमीत को कुल 66000 वोटों में लगभग 50 फीसदी वोट मिले.
ये पहली बार नहीं है जब कनाडा की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी एनडीपी ने सिखों को मौका दिया हो. 1986 में मनमोहन सिंह सिहोटा प्रोविंसियल एसेंबली में इसी पार्टी से चुने गए थे. 1991 में सिहोटा पहले प्रोविंसियल मंत्री भी बने थे.
फिलहाल प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की कैबिनेट में चार मंत्रियों के शामिल हैं. इसके साथ ही जसमीत के चुने जाने से ये दुनिया में किसी भी संसद में सिखों की सबसे बड़ी सफलता है. कनाडा की राजनीति के जानकार बताते हैं कि इसके पीछे कनाडा की प्रगतिशील सोच और खुला वातावरण मुख्य वजह है.
ऐसा भी नहीं है कि कनाडा में सारे लोग इससे खुश हों. वहां हाशिए पर रहने वाले दक्षिणपंथी संगठनों ने जसमीत को शरीया को बढ़ावा देने वाला बताते हुए एक वीडियो वायरल किया था. हालांकि जसमीत कहते हैं कि सिख होना उनकी पहचान का एक हिस्सा है, उनकी एकमात्र पहचान नहीं. वो लोकंतंत्र और धर्मनिपेक्ष्य देश से आते हैं और कनाडा में भी इन्हीं मूल्यों को मानते हैं.
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