जुलाई 2017 में इस्लामिक स्टेट से मोसुल की आजादी का ऐलान किया गया. एक महीने बाद जब भारतीय अधिकारी वहां पहुंचे तो उन्होंने पाया कि तथाकथित खलीफा के आतंकवादियों द्वारा बंदी बनाए गए 39 भारतीयों का कुछ पता नहीं है. भारतीय अधिकारियों को मोसुल के उत्तर-पश्चिम में बादूश गांव में एक सामूहिक कब्र के बारे में बताया गया, जहां इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों की एक जेल थी.
एक सामूहिक कब्र में ठीक 39 लाशें मिली थीं और भारत की सबसे बुरी आशंका सच साबित हो गई. इस्लामिक स्टेट द्वारा मोसुल में तकरीबन 700 लोग बंदी बनाए गए थे, जिन्हें बादूश में ले जाकर खत्म कर दिया गया. इसके बाद नई दिल्ली को एक पत्र भेजा गया, जिनमें राज्य सरकारों से संपर्क करके 39 गुमशुदा लोगों के परिवार के सदस्यों के डीएनए सैंपल भेजने को कहा गया. संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों की मदद से यह प्रक्रिया अक्टूबर-नवंबर 2017 में पूरी हो गई.
2011 में इराक गए बिहार के संतोष सिंह के भाई पप्पू सिंह ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि वह उनकी बहन और मां ने सीवान के जिला मजिस्ट्रेट दफ्तर में सैंपल दिया था. परिवार के सदस्य जनवरी 2017 विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से नई दिल्ली में मिले थे. जब उनसे डीएनए सैंपल देने को कहा गया तब उन्हें नहीं बताया कि 28 वर्षीय संतोष जिंदा हैं या मर चुके हैं.
पप्पू कहते हैं, 'हमसे कहा गया था कि यह कुछ जरूरी पहचान प्रक्रिया को पूरा करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन हमें नहीं बताया गया कि संतोष की मौत हो चुकी है. हमारे पास जिला अधिकारियों से कुछ पूछने की कोई वजह नहीं थी. उन्हें कम से कम हमारी मां को तो सच्चाई बता देना चाहिए था.'
2014 में शुरू हुई थी तलाश
2014 में 40 गुमशुदा भारतीयों की तलाश तब शुरू हुई, जब बगदाद में भारतीय दूतावास ने विदेश मंत्री को सूचना दी कि उनका 40 कंस्ट्रक्शन मजदूरों से संपर्क खत्म हो गया है. अनौपचारिक बातचीत में वहां की खुफिया एजेंसियों ने भारतीय खुफिया एजेंसियों को बता दिया था कि इस्लामिक स्टेट ने शहर में सामूहिक हत्याएं की हैं और सुन्नी बंदियों को छोड़ दूसरे लोग शायद जिंदा नहीं बचे हैं.
खुफिया एजेंसियों के सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और तत्कालीन इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) प्रमुख आसिफ इब्राहीम ने युद्धग्रस्त देश से भारतीयों को बाहर निकालने के अभियान के साथ-साथ गुमशुदा भारतीयों का पता लगाने के वास्ते इराकी गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ चर्चा के लिए जून के अंतिम हफ्ते में बगदाद की यात्रा की थी.
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मोसुल और तिकरित के पतन के बाद खुफिया जानकारी ही सब कुछ थी. आतंकवादियों के हाथों कत्ल किए जाने से बचकर भागे लोगों से कुछ जानकारियां मिली थीं. बांग्लादेशियों के साथ बच कर भागे हरजित मसीह ने दावा किया था कि सभी 39 लोगों की हत्या हो चुकी है, लेकिन उसके बयान बार-बार बदल रहे थे, जिससे भारत सरकार ने इनको मृत घोषित करने के बजाय तलाश जारी रखी. सूत्रों ने बताया कि दिसंबर 2014 में, एक इनपुट मिला था कि शायद गुमशुदा भारतीय अब जिंदा नहीं हैं.
शक दूर कर लेना चाहती थी भारत सरकार
कुछ महीनों बाद एक खुफिया इनपुट मिला जिसमें अज्ञात राहत कार्यकर्ता की तरफ से दावा किया गया था कि गुमशुदा भारतीयों की जून 2014 में हत्या कर दी गई थी, हालांकि भारत सरकार हर तरह की जांच पूरी करके हर तरह के शक को दूर कर लेना चाहती थी. 2015 के अंत में, ऐसी रिपोर्टें आईं कि इस्लामिक स्टेट नियंत्रित क्षेत्र में 39 भारतीय मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं.
खुफिया सूत्रों ने बताया कि 'यह एक युद्ध जैसी स्थिति थी और इराक से छन कर आने वाली किसी भी जानकारी को परखा जा रहा था और सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा जा रहा था. हालांकि खुफिया एजेंसियों में काम करने वाले हममें से कई लोगों को यकीन था कि सभी 39 लोगों की हत्या कर दी गई है, लेकिन यह बात परिवार को आधिकारिक रूप से नहीं बताई गई क्योंकि यह सरकार के लिए ठीक नहीं होता.'
मलबों में दबी हड्डियों का हुआ डीएनए टेस्ट
मोसुल की आजादी के बाद विदेश राज्य मंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) वी.के. सिंह ने दो बार इराक की यात्रा की और बादूश गए- जहां 39 भारतीयों की सामूहिक कब्र समेत कई सामूहिक कब्रें मिली थीं. पूर्व सीबीआई फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. एस.सी. मित्तल ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि डीप पेनीट्रेशन रडार की मदद से जमीन के नीचे मलबे में हड्डियों का ढेर मिल जाने के बाद उन्हें निकाल कर डीएनए टेस्ट कराना गुमशुदा भारतीयों की शिनाख्त पक्की करने का इकलौता रास्ता था.
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मित्तल बताते हैं कि, 'अगर करीबी रिश्तेदार का डीएनए उपलब्ध है, तो पहचान सुनिश्चित करने में सिर्फ चंद दिन लगते हैं. मौजूदा मामले में, पहली पुष्टि के बाद, इराक के मार्टर्स फाउंडेशन ने अन्य लाशों का टेस्ट करना शुरू कर दिया. कोशिकाएं 10 से 15 साल तक जीवित रहती हैं और कुछ मामलों में इससे भी ज्यादा समय तक जीवित रहती हैं. इराक से आई सूचनाओं पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता, क्योंकि डीएनए टेस्टिंग में अगर संबंधित का दांत या बाल का एक छोटा हिस्सा भी उपलब्ध है, तो आसानी से पहचान स्थापित की जा सकती है.'
सुषमा स्वराज ने संसद को बताया कि उन्होंने ठोस सबूत मिल जाने के बाद ही उन्हें मृत घोषित किया है. विपक्ष ने परिवारों को झूठी उम्मीद बंधाने और मौत के ऐलान में देरी के लिए सरकार की आलोचना की. हालांकि पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि मोसुल में तलाश पूरी होने से पहले सरकार की तरफ से उनको मृत घोषित करना ठीक नहीं होता.
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सिब्बल ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि 'सरकार ने अपना काम ठीक से किया. शुरू में हमारे लिए ऐसा मानने की कोई वजह नहीं थी कि यजदी और ईसाइयों को निशाना बना रहा इस्लामिक स्टेट इसी तरह भारतीयों को भी मार सकते हैं, क्योंकि भारत का उनके साथ किसी तरह का सीधा टकराव नहीं था. इस मामले में केंद्र सरकार की आलोचना करके विपक्ष मुद्दे की गंभीरता को कम कर रहा है. यह मुद्दा बीजेपी और कांग्रेस का नहीं है. ऐसी सूचना छिपाकर किसी को भी क्या हासिल होगा? मेरा मानना है कि एक विस्तृत जांच के बाद ऐलान किया जाना सही कदम है.'
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