दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में सेना प्रमुख की नियुक्ति एक सामान्य प्रक्रिया होती है और मीडिया में इस मुद्दे पर अधिक बहस नहीं होती है. लेकिन पाकिस्तान का मामला बिल्कुल अलग है, जहां 69 साल के इतिहास में 35 साल सेना का शासन रहा है. पिछले छह महीने से पाकिस्तान में इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या नया सेना प्रमुख होगा? यदि होगा तो कौन होगा?
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सेना प्रमुख चुनने में हर बार गलती की है. जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाकर 9 साल राज किया था. 2013 में नवाज शरीफ ने जनरल राहील शरीफ को सेना प्रमुख नियुक्त किया. सभी जानते है कि पिछले एक साल से दोनों शरीफों के बीच शीत-युद्ध चल रहा था.
नवाज शरीफ ने अब 16वें सेना प्रमुख के रूप में ले.जनरल कमर जावेद बाजवा को नियुक्त किया है, जो अभी तक सेना मुख्यालय में प्रशिक्षण और आकलन विभाग के प्रमुख थे. राहील शरीफ भी सेना प्रमुख बनने के पहले इसी पद पर कार्यरत थे.
बाजवा के आने से सुधरेगी पाकिस्तान आर्मी?
भारत-पाकिस्तान के बीच वर्तमान तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारत सरकार भी पाकिस्तान में नए सेना प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया पर नजर लगाए हुई थी. भारतीय मीडिया में चर्चा इस सवाल पर की जा रही थी कि क्या भारत के प्रति नए पाकिस्तानी सेना प्रमुख का रवैया जनरल राहील शरीफ की तुलना में कम शत्रुतापूर्ण होगा?
पाकिस्तान सेना की सुरक्षा अवधारणा में भारत को सदैव दुश्मन नंबर एक का दर्जा दिया गया है. राहील शरीफ के बयानों से भी यह स्पष्ट था कि वे पाकिस्तान की हर समस्या में वो भारत का हाथ देखते हैं.
यदि पाकिस्तानी सेना की इस मूल अवधारणा में परिवर्तन नहीं होता है तो ले.जनरल बाजवा के निजी दृष्टिकोण का कोई अर्थ नहीं है. जनरल जिया-उल-हक के जमाने में पाकिस्तानी सेना का इस्लामीकरण हुआ था और कई भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों को सेना ने पाला-पोसा था. यह कोई रहस्य नहीं है कि लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद जैसे भारत-विरोधी आतंकी संगठनों की गतिविधियां आज भी पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में चलती हैं.
इसलिए भारत को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि बाजवा के नए पाक सेना प्रमुख बनने से भारत के प्रति नीति में कोई अनुकूल बदलाव होनेवाला है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने दो दिन पहले ही संसद में कहा था कि यदि भारत हमारे एक सैनिक को शहीद करता है तो हम उनके तीन सैनिकों को मारेंगे.
बाजवा और राहील शरीफ में कोई फर्क नहीं
पाकिस्तान के हुक्मरानों ने अमेरिका को बेवकूफ बनाया है, जिसने पिछले कुछ सालों के दौरान उसकी 33 अरब डॉलर की आर्थिक व अन्य सहायता की है. पाकिस्तानी सेना ने अमेरिका के दुश्मन नंबर एक अोसामा-बिन-लादेन को छह साल तक सैनिक छावनी ऐबटाबाद में शरण दी. पाकिस्तान अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी हक्कानी गुट को बढ़ावा दे रहा है, जो अमेरिकी सैनिकों की हत्या में शामिल है.
कटु सत्य यह है कि पाकिस्तानी सेना व उसके कथित लोकतांत्रिक हुक्मरान केवल ताकत की भाषा ही समझते हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू. बुश ने जब जनरल मुशर्रफ को पाषाण युग में पहुंचाने की धमकी दी थी, तब वे अफगान तालिबान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में शामिल हुए थे.
पाकिस्तान के साथ बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रखना चाहिए, लेकिन फिलहाल यह बातचीत डीजीएमअो व पाकिस्तानी सेना के स्तर पर ही होनी चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी की यह टिप्पणी सही थी कि पाकिस्तान के लोकतांत्रिक हुक्मरान संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने सेना प्रमुख द्वारा लिखा भाषण पढ़ते हैं.
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