श्रीलंका के दोनों बड़े नेता अपने-अपने पक्ष में सांसदों को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. उनका मानना है कि देश के संवैधानिक संकट को खत्म करने के लिए सांसद किसी भी ओर अपना वोट डाल सकते हैं.
गौरतलब है कि राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने जब से प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त किया है तब से ही देश की संसद भी स्थगित है. सिरिसेना ने पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को विक्रमसिंघे की जगह प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण कराई थी. इसके बाद से देश में राजनीतिक संकट गहरा गया.
शुक्रवार को हुई इस उथल-पुथल के बाद से ही इस द्वीपीय देश पर राजनीतिक स्थिरता के लिए कई बड़े राष्ट्र दवाब बना रहे हैं. प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को अमेरिका और अन्य देशों का साथ मिल रहा है और यह देश उनके निलंबन को हटाने का समर्थन कर रहे हैं. जबकि दोनों पक्ष सत्ता पर अपनी-अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं.
क्या लंबे समय तक चलेगा श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता का दौर?
ऐसे में विक्रमसिंघे की सरकार के एक उपमंत्री रंजन रामनायके ने चीन पर आरोप लगाया है कि वह सांसदों को खरीदने के लिए राजपक्षे को आर्थिक मदद उपलब्ध करा रहा है. उन्होंने कहा, 'मैनें चीन को कहा है कि श्रीलंका में सांसद खरीदने के लिए अपने अरबों रुपए खर्च न करे. वह (चीन) थोक में श्रीलंका को खरीदना चाहता है.'
हालांकि चीन ने एएफपी को दिए जवाब में इन आरोपों का खंडन किया है. एनडीटीवी की खबर के मुताबिक उन्होंने कहा कि सांसद रंजन रामनायके के आरोप निराधार हैं. चीन के मुताबिक यह श्रीलंका का आंतरिक मामला है और चीन किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की रणनीति का समर्थक है.
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